दिवाली पर धन, वैभव और शोहरत पाने के लिए लोग तरह-तरह के पूजा-पाठ और तंत्र-मंत्र करते हैं। इसके लिए कोई देर रात तक हवन-पूजन करता है, तो कोई किसी जीव की बलि देने तक उतारू हो जाता है। ऐश्वर्य के लोभ में लोग लक्ष्मीजी की सवारी उल्लू की बलि तक दे देते हैं।
इसके लिए लोग 1 लाख से लेकर 1 करोड़ तक के विशेष प्रकार के उल्लू खरीदते हैं। इसी के चलते यूपी के चंबल क्षेत्र में उल्लुओं की तस्करी होती है। दिवाली पर विशेष प्रकार के ढाई किलो और पांच-पांच पंजे वाले उल्लू के लिए लोग एक करोड़ की कीमत में खरीदने के लिए तैयार रहते हैं।
बड़े-बड़े व्यापारी, अधिकारी और नौकरीपेशा लोग इस उल्लू की विशेष डिमांड करते हैं। यही मौका होता है, जब तस्कर मोटी कमाई के लिए एक्टिव हो जाते हैं। तस्कर कुछ और प्रजाति के संरक्षित उल्लू भी पकड़ते हैं, जिनकी कीमत एक-डेढ़ लाख रुपए तक लगाई जाती है।
इटावा के बीहड़ और चंबल के जंगलों में काफी उल्लू पाए जाते हैं। जहां पर दिवाली आते ही उल्लुओं की तस्करी शुरू हो जाती है। सर्वाधिक उल्लू दिवाली के दिन के लिए पकड़े जाते हैं।
तस्कर इन उल्लुओं को उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश-राजस्थान से लेकर बंगाल तक भेजते हैं। तंत्र क्रिया के नाम पर इन उल्लुओं की बलि दी जाती है। बहुत से तांत्रिक व्यापारियों, कर्मकांडियों और नौकरीपेशा लोगों को इस तंत्र से करोड़पति बनाने का दावा करते हैं। इन उल्लुओं की तस्करी रोकने के लिए इटावा में वन विभाग एक्टिव हो गया है।
शाम से ही यहां पर टीम तस्करों पर नजर रखने के लिए तैनात रहती है। वन विभाग की टीम ने कई तस्करों को गिरफ्तार भी किया है। बताया जा रहा है कि 1 महीने के अंदर वन विभाग की टीम ने कई तस्करों को पकड़ा है। उनके कब्जे से लगभग 50 उल्लुओं को आजाद कराया गया है। इनके पास से कई तरह के नकली घोंसले और नशीली दवाएं भी बरामद हुई हैं।
ऐसा माना जा रहा है कि इसका प्रयोग ये लोग उल्लू पकड़ने में करते हैं। तस्करों के पास से नगदी भी बरामद की गई थी। प्रदेश में इटावा, औरैया, जालौन और आगरा के बाह क्षेत्र चंबल और बीहड़ में आता है। इन जिलाें की सीमाएं राजस्थान और मध्यप्रदेश से भी जुड़ी हैं। इसलिए यहां के तस्कर भी बीहड़ के क्षेत्रों में आते हैं। बीहड़ के इस क्षेत्र में विशेष प्रकार के कंटीले पेड़ पाए जाते हैं जिनमें उल्लुओं का प्रवास होता है।
इस मामले में इटावा जिला प्रभागीय वन अधिकारी अतुलकांत शुक्ला ने बताया, वन विभाग पूरी तरह से अलर्ट है। इटावा के बीहड़ों में बड़े पैमाने पर उल्लू पाए जाते हैं। तस्कर उल्लू को ना पकड़ सकें, इसलिए वन विभाग की ओर से विभागीय अधिकारियों कर्मियों को लगा दिया गया है। इसके साथ ही सूत्रों को भी एक्टिव किया गया है। दिवाली के मौके पर तस्कर करोड़ों की काली कमाई करते हैं।
तांत्रिक कैसे-कैसे लालच देकर उल्लू मंगवाते हैं…
तांत्रिक लालच देते हैं कि उल्लू की बलि देने वाले को बेहिसाब पैसा मिलता है। इसी लालच में लोग किसी भी कीमत पर उल्लू खरीदने के लिए तैयार हो जाते हैं। उल्लू भारतीय वन्य जीव अधिनियम, 1972 की अनुसूची-1 के तहत विलुप्तप्राय जीवों की श्रेणी में दर्ज है। इनके शिकारी या तस्करी करने वालों को कम से कम 3 साल या उससे अधिक सजा का प्रावधान है।
“उल्लुओं के लिए लोग करोड़ों रुपए देने के लिए तैयार”
पुजारी दिनेश तिवारी उल्लू की पूजा का दिवाली पर विशेष महत्व बताते हैं। समृद्धि के लिए दिवाली में अमावस्या की रात को विशेष पूजन होता है। उनका कहना है, ”मेरे पास कई ऐसे लोग आ चुके हैं, जो सफेद और मटमैले रंग के उल्लुओं की मांग कर चुके हैं। इन विशेष प्रकार के उल्लुओं के लिए लोग एक-एक करोड़ रुपए देने के लिए तैयार हैं।
इन विशेष रंग के उल्लुओं की मांग करने वाले लोगों का मानना है, अगर उनको ये उल्लू मिल जाएंगे तो वो कई सौ करोड़ रुपए कमा सकते हैं। ऐसे में इटावा में पाए जाने वाले इन विशेष रंग की उल्लुओं की जान पर दीपावली के करीब आते ही मुश्किलें आना शुरू हो जाती हैं।”
“अपने स्वार्थ के लिए किसी को कैद करना पाप है”
”उल्लू मां लक्ष्मी की सवारी है। ऐसे में लोग उल्लू को पूजा के साथ बैठाकर विशेष मंत्रों के साथ उसको पूजते हैं। कुछ लोग उल्लू को पूजा के बाद आजाद कर देते हैं। वहीं कुछ लोग उसको पाल भी लेते हैं, जो गलत है। अपने स्वार्थ के लिए किसी को कैद करना पाप है।
मैं लोगों को सुझाव देता हूं कि लोग उल्लू की विशेष धातु से बनी मूर्ति का प्रयोग पूजा में करें। या फिर मिट्टी के उल्लू को पूजा की थाल में बैठाए और फिर उसको विसर्जित कर दें। ऐसा करने से उनकी पूजा भी पूरी हो जाएगी और किसी की जान भी नहीं जाएगी।”
पुजारी दिनेश तिवारी आगे बताते हैं, ”दिवाली वाले दिन ही तंत्र विद्या की पूजा भी की जाती है। तंत्र साधना से जुड़े लोग दीपावली पर उल्लू की बलि चढ़ाते हैं। जो गलत है। मां की सवारी का प्रयोग ऐसे काम में करने से वो लोग पाप के भागी होते हैं। मेरे पास जो भी उल्लू की डिमांड लेकर आते हैं, मैं उनको भी यही सुझाव देता हूं।”
ऐसे होती है उल्लुओं की तस्करी…
वन विभाग के एक कर्मी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, बीहड़ के जंगलों से बड़े स्तर पर उल्लू की तस्करी होती है। दीवाली आने के 4 महीने पहले से ही यहां तस्कर एक्टिव हो जाते हैं।
उल्लुओं को फंसाने के लिए वो लोग यहां पर नकली घोंसला तैयार करवाते हैं। उसके बाद जब उल्लू उन घोंसले में आ जाते हैं ये लोग ऊपर से जाल छोड़कर उनको कैद कर लेते हैं। यहां जो टीमें तस्करी रोकने के लिए लगाई जाती हैं, वो लोग पहले ऐसे घोसलों की पहचान कर उनको तोड़ते हैं। फिर उस एरिया में और ज्यादा पेट्रोलिंग करते हैं।
बता दें, पूरी दुनिया में उल्लू की लगभग 225 प्रजातियां हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में चंबल के उल्लुओं की कई अलग-अलग प्रजातियों की बहुत ज्यादा मांग है। यही वजह है कि चंबल के बीहड़ इलाकों में उल्लू तस्करों को निशाना बन रहे हैं।
दिवाली सिर्फ खुशियां मनाने का नहीं, खुशियां बांटने का त्योहार है। दिवाली है तो जगमगाते दीये हैं, लाइट्स हैं, मिठाइयां हैं और दोस्तों-रिश्तेदारों को दिए जाने वाले ढेरों गिफ्ट्स भी हैं। पर इस बार थोड़ा ठहरते हैं। दोस्तों-रिश्तेदारों को तो आप दिवाली पर हर साल गिफ्ट्स देते ही आए हैं। इस बार अपनी ये लिस्ट कुछ बदलकर देखिए ना। उन लोगों को भी गिफ्ट्स दें, जो साल भर आपका जीना आसान बनाते हैं।