पाकिस्तान के पंजाब में एयरफोर्स के हाई सिक्योरिटी वाले मियांवाली ट्रेनिंग एयरबेस पर 03- 04 नवंबर की दरमियानी रात को लगभग 2 बजे हमला हुआ। पाकिस्तानी सेना ने कहा कि हमले में 3 नॉन ऑपरेशनल विमानों और एक पोर्टेबल ईंधन ट्रक को नुकसान हुआ। सेना ने प्रेस रिलीज जारी कर 9 हमलावरों को मार गिराने की बात भी कही थी।
एयरबेस पर हमले की जिम्मेदारी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के नए सहयोगी तहरीक-ए-जिहाद पाकिस्तान (TJP) ने ली थी। पाकिस्तानी सेना इस हमले में हुए नुकसान को छिपा रही है। हमले में पाकिस्तानी एयरफोर्स के 3 नहीं, बल्कि UAV समेत 6 विमान पूरी तरह बरबाद हुए थे।
पाकिस्तान में मौजूद सूत्रों से जो जानकारी इकट्ठा की है, उसके मुताबिक, इस हमले में कम से कम 12 सैनिक भी मारे गए थे, जो उस समय एयरबेस के अंदर मौजूद थे। पाकिस्तानी सेना ने अपनी प्रेस रिलीज में सैनिकों और अफसरों के मारे जाने के बारे में कुछ नहीं कहा था।
सूत्रों के यह भी बताया कि रॉकेट लॉन्चर के जरिए एयरफोर्स के एक रडार टॉवर को भी हमले में नष्ट कर दिया गया। साथ ही विमानों के उड़ान भरने और उतरने में गाइडेंस के लिए इस्तेमाल होने वाला कंट्रोल रूम भी इस हमले में पूरी तरह बरबाद हो गया।
हमले में सात लोग शामिल थे, न कि नौ जैसा कि पाकिस्तान की मिलिट्री ने दावा किया है। इस फिदायीन समूह का नेतृत्व कमांडर मौलवी मुहम्मद बिन कासिम कर रहा था। बाकी लोग जो इस हमले में शामिल थे, उनके नाम कारी सलाहुद्दीन अयूबी, हुसैन अहमद मदनी, तारिक बिन जायद, जाफरतियार शहीद, मुतासिम बल्लाह और ओसामा बिन जायद है।
सूत्रों ने कहा कि ये सात लोग एक लकड़ी की सीढ़ी का उपयोग करके परिसर में दाखिल हुए। एयर बेस परिसर में मौजूद पाकिस्तान आर्मी के कुछ सैन्य कर्मियों ने उनको अंदर घुसने में मदद की। सूत्रों ने बताया कि हमले की तैयारी लगभग 40 दिन से चल रही थी।
पाकिस्तानी वायु सेना नवंबर 2017 से इस एयरबेस का उपयोग ‘विंग लूंग’ UAV को रखने के लिए कर रही है। यह UAV चीनी कंपनी, चेंगदू एयरक्राफ्ट इंडस्ट्री ग्रुप (CAIG) ने बनाए हैं। इन UAV का उपयोग हवा से निगरानी करने के अलावा हवा से सतह पर अपने टारगेट पर बम गिराने के लिए किया जाता है।
पाक एयर फोर्स के पास फिलहाल ऐसे 45 UAV हैं। अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर सशस्त्र समूहों के खिलाफ हमले करने के लिए इनका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है। संभावना है कि इस हमले में नष्ट हुए विमानों में ये UAV भी थे।
इस एयरबेस में K-8P (एक चीन निर्मित दो सीट वाला जेट ट्रेनर और हल्का विमान), चेंगदू J-7 (चीन द्वारा बनाया गया एक लड़ाकू विमान) और अलौएट III हेलिकॉप्टर (एक एकल इंजन, हल्के हेलिकॉप्टर) भी रखे हुए हैं।
सूत्रों ने बताया कि वहां एक रडार सिस्टम भी था जिसे हमलावरों ने नष्ट कर दिया। संभवत: यह रडार चीन निर्मित, JY-27A है जो एक 3-डी लंबी दूरी तक वायु निगरानी और मार्गदर्शन करने में उपयोग होता है। यह रडार सिग्नल को जाम करने में भी काम आता है। इसको एक जगह से दूसरी जगह बड़ी आसानी से ले जाया जा सकता है।
इसे अगस्त 2020 में इस एयर बेस पर लाया गया और स्थापित किया गया। यही रडार सिस्टम चीनी सेना ने भारत के खिलाफ पूर्वी लद्दाख के पेंगोंग झील के किनारे पर भी स्थापित किया है।
जमीनी घटनाक्रम से वाकिफ सूत्रों ने बताया कि उक्त एयर बेस को हमले के लिए इसलिए चुना गया क्योंकि अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर लोगों को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले ड्रोन और UAV यहां तैनात हैं। इसकी जानकारी तहरीक-ए-जिहाद के लड़ाकों को पाकिस्तान मिलिट्री के अंदरूनी सूत्रों ने दी थी।
पाकिस्तानी वायु सेना कुल 46 एयर बेस संचालित करती है, जिनमें से 29 को ‘फ्लाइंग बेस’ के रूप में क्लासीफाई किया गया है। इन फ्लाइंग बेस से विमान और ड्रोन संचालित होते हैं, जबकि 17 गैर-उड़ान श्रेणी के एयर बेस हैं, जहां से प्रशासनिक, प्रशिक्षण, रखरखाव कार्य और मिशन सहायता को अंजाम दिया जाता है।
पीएएफ बेस एमएम आलम जो कि पंजाब प्रांत में मियांवाली में स्थित है, को पहले पीएएफ बेस मियांवाली कहा जाता था। इसका नाम 2014 में बदलकर एमएम आलम कर दिया गया। आलम एक एयर कमोडोर थे, जिनके बारे में पाकिस्तान का दावा है कि उन्होंने 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान सात भारतीय विमानों को मार गिराया था। बाद में उन्हें पाकिस्तान का तीसरा सबसे बड़ा सैन्य पुरस्कार सितारा-ए-जुरात दिया गया।
एक सबसे बड़ा कारण इस हमले से जुड़ी सच्चाई को छिपाने का यह है कि पाकिस्तान अपने सैनिकों की मौत और अपने लड़ाकू विमानों के नष्ट होने की बात कबूल कर लेता तो उसके सैन्य ठिकानों की सुरक्षा और उसके सैनिकों की ट्रेनिंग पर सवाल उठने लगेंगे कि कैसे कुछ कबीलाई लड़ाके इतने सुरक्षित एयर बेस में घुस गए और इतनी आसानी से पाकिस्तानी सैन्य अधिकारियों को मार गिराया ।