उत्तर प्रदेश में भाजपा के सहयोगी दल खासकर अपना दल (सोनेलाल) और निषाद पार्टी जातीय जनगणना की खुलकर वकालत करते नजर आ रहे हैं। यूपी में अपने सहयोगियों को साथ रखने की जद्दोजहद और OBC वोटरों को अपनी तरफ बनाए रखने के लिए भाजपा ‘टीम-20 हजार’ पर काम कर रही है।
इसमें पिछड़े वर्ग के वोटर्स पर फोकस करके पार्टी से जोड़ने का काम किया जाएगा। इसमें पार्टी के 20 हजार OBC नेता और कार्यकर्ता जमीन पर काम करेंगे। इसके पहले के चुनावों में भी अमित शाह ने अति पिछड़ा और अति दलित का दांव चला था, जिसका नतीजा था पूर्ण बहुमत की सरकार।
लोकसभा चुनाव के लिए जातीय जनगणना देश की राजनीति का सबसे बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को जोर शोर से उठा कर एक नरेटिव सेट करने की कोशिश की है, तो दूसरी तरफ सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी पिछड़ी जातियों की घेरेबंदी पर फोकस कर रही है।
इस बात को और ज्यादा बल तब मिल जाएगा, जब रोहिणी कमीशन की OBC आरक्षण के लिए बनी कमेटी की पूरी रिपोर्ट सामने आ जाएगी। रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट में ये तो कहा गया है कि पिछड़ों में कई उपजातियां ऐसी हैं, जिनका प्रतिनिधित्व नौकरियों में न के बराबर है। मगर कमीशन उनका वर्गीकरण पिछड़ा, अति पिछड़ा और अत्यंत पिछड़ा में अभी तक नहीं कर पाया है।
अभी हाल ही में दिल्ली में हुई आलाकमान की बैठक में ये बात निकल कर सामने आई कि पार्टी जाति जनगणना के मुद्दे पर बैकफुट पर दिखाई पड़ रही है। इसके चलते भाजपा के रणनीतिकारों ने ये रास्ता निकाला कि पिछड़ों को ध्यान में रखकर जितनी भी योजनाएं चलाई गई हैं, उनका आम जनमानस के बीच प्रचार प्रसार बड़े व्यापक पैमाने पर किया जाए। इस बैठक में नरेंद्र मोदी, अमित शाह, बीएल संतोष, योगी आदित्यनाथ, केशव प्रसाद मौर्य, भूपेंद्र चौधरी सहित पार्टी के 42 बड़े नेता शामिल हुए थे।
भाजपा का मानना है कि पिछड़ी जाति के ही असरदार चेहरों से प्रचार प्रसार कराया जाए, ताकि जनता उनकी बातों पर विश्वास कर सके। लोकसभा चुनावों के मद्देनजर दिल्ली में हुई बैठक में ये भी तय हुआ कि दिवाली के बाद यूपी में पिछड़ी जातियों जैसे कुर्मी, यादव, मौर्य, शाक्य, सैनी, कुशवाहा, निषाद, राजभर के अलग-अलग सम्मेलन भी कराए जाएं।
इसमें मोदी सरकार और राज्य सरकारों द्वारा पिछड़ी जातियों और उपजातियों के लिए चल रही योजनाओं और फैसलों की जमीनी जानकारी साझा की जाएगी। इसके साथ ही अन्य जाति के प्रभावशाली नेताओं को पार्टी में शामिल कराने की बात पर भी जोर दिया गया। छोटे दलों से संवाद और बातचीत करके उनको अपने साथ लाने पर भी काफी जोर दिया गया।
उत्तर प्रदेश की बात करें तो 80 सांसद भेजने वाले प्रदेश में 2014, 2017 और 2019 के चुनावों में भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह ने पिछड़े, अति पिछड़े और दलित, अति दलित का जो संयोजन किया था, उसकी परिणति थी कि भाजपा अपने दम पर सत्ता में आई। चूंकि इस बार विपक्ष ने जातीय जनगणना का मुद्दा छेड़ दिया है, जिसके चलते भाजपा एक-एक सीट पर जातीय समीकरण और सामाजिक समीकरण देखकर रणनीति तैयार कर रही है।
भाजपा ने कभी भी खुल कर जातीय जनगणना की न तो वकालत की और न ही विरोध किया, लेकिन मौजूदा वक्त में जिस तरह से इसके नेता इस मुद्दे पर दबाव महसूस कर रहे हैं, उससे साफ जाहिर है कि विपक्ष इस मुद्दे पर एक कदम आगे निकल गया है।
चुनाव की तैयारियों में जुटे भाजपा रणनीतिकार यूपी में एक-एक सीट का विश्लेषण कर रहे हैं कि कौन सी जाति का प्रभुत्व है वहां, उसी आधार पर प्रत्याशी के चयन से लेकर चुनाव की लाइन-लेंथ तय की जाए। लोकसभा सीटों को A,B, C, D की कैटेगरी में बांटने की तैयारी है। चुनाव में कमजोर सीटों पर पूरी ताकत झोंक कर चुनाव लड़ने की तैयारी की जानी है।
भाजपा के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ”घोसी चुनाव की हार के बाद से पार्टी अलर्ट मोड में है। मिशन-80 के लिए सभी राजनीतिक,सामाजिक समीकरणों को दुरुस्त करने की हिदायत है।”
मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जातीय जनगणना की बात अपनी चुनावी सभाओं में उठायी। भाजपा के जवाब देने से पहले ही सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इस मुद्दे पर राहुल को आड़े हाथों लिया और कहा कि आपकी सरकार 2004-2014 तक देश में रही तब इन्हें नहीं दिखाई दिया अब जातीय जनगणना पर एक्स रे नहीं, MRI की जरूरत है। इस तरह के बयानों को सुनने के बाद ये साफ है कि 2024 लोकसभा चुनावों में जातीय जनगणना एक बड़ा मुद्दा होगा।
राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर रविकांत का कहना है, ”बिहार से उठी जातीय जनगणना की आवाज लोकसभा चुनावों में विपक्ष का नरेटिव बन चुकी है। अब जातीय जनगणना क्षेत्रीय न होकर राष्ट्रीय मुद्दा बन चुका है, चूंकि कांग्रेस भी खुलकर इसके पक्ष में आ चुकी है। भाजपा के पास इस मुद्दे की फिलहाल कोई काट नजर नहीं आ रही है, इसलिए वो पिछड़ों पर ज्यादा फोकस कर रही है।
भाजपा के रुख में भी नरमी आई है। अगर रोहिणी कमीशन की विस्तृत रिपोर्ट टेबल हो जाती है और पिछड़ों का वर्गीकरण सही तरीके से होता है तब तो चुनाव काफी दिलचस्प हो जाएगा।”
सपा के महासचिव शिवपाल यादव कहते हैं, ‘हमारी पार्टी हमेशा से ही पिछड़ों और दलितों को मुख्य धारा से जोड़ने में आगे थी। PDA की बात हमारी पार्टी ने करनी शुरू की। बाद में अन्य दलों ने भी इस मुद्दे को उठा लिया। हमने सरकार में रहते हुए भी समाज के गरीब तबके के लिए काफी काम किया।
हम पिछड़ों और दलितों के लिए काम करना चाहते हैं, जबकि अन्य राजनीतिक दल महज सियासत कर रहे हैं, ताकि सत्ता की कुर्सी तक पहुंचा जा सके। जनता भी जानती है कि कौन काम करता है और कौन सिर्फ जुमलेबाजी करता है। समाजवादी पार्टी सरकार में आने के साथ ही जातीय जनगणना का काम उत्तर प्रदेश में भी पूरा करेगी।”
भाजपा नेता मनीष शुक्ला का कहना है, ”भाजपा ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के सूत्र वाक्य को मानती है, जिसके चलते जनता ने 2014, 2017, 2019, 2022 में जनता ने पार्टी को सत्ता की कुर्सी पर बिठाया। 2024 में पार्टी की सबसे बड़ी जीत यूपी से होगी, 80 सीटों पर भगवा लहराएगा। भाजपा सरकार ने ही OBC आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया।
सबसे ज्यादा OBC सांसद, विधायक भाजपा की सरकारों में हुए हैं। बीजेपी ने महिलाओं के आरक्षण की सिर्फ बात नहीं की, बल्कि संसद से मंजूरी भी दिलाई और कानून बनाया है। हम काम करने में विश्वास करते हैं। हमारी सरकार सब धर्म और जातियों के लिए काम कर रही है। वो भी पूरी प्रतिबद्धता के साथ। विपक्ष सिर्फ राजनीति कर रहा है। जबकि हम भाजपा काम करने में यकीन रखती है।”