केरल की इस बार जंग कोरोना के नए वेरिएंट से है जिसे जेएन-1 नाम दिया गया है.
यहां इस बार भी जूझने और जीतने की वही ज़िद दिख रही है जो उन दो सालों में दिखी थी जब महामारी ‘मारक’ मानी जा रही थी.
कितने सतर्क हैं लोग
केरल के लोगों का रुख कैसा है, इसका अंदाज़ा कोविड एक्सपर्ट कमिटी के सदस्य डॉक्टर अनीश टीएस के बयान से मिलता है.
पॉजिटिव मिले सौ मामलों में से 50 फ़ीसदी लोगों में कोई लक्षण नहीं दिखते. कुछ एक मौकों पर ऐसे लोग भी टेस्ट करा रहे हैं, जिनके ऐसे रिश्तेदार पॉजिटिव मिले हैं जिनसे उन्होंने दूर से मुलाक़ात की थी. लोग जागरूक हैं. वो डरे हुए हैं. लोग निजी या फिर सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में पहुंच रहे हैं.”
डॉक्टर अनीश तिरुवनंतपुरम मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में कम्युनिटी मेडिसिन के एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं.
प्राइवेट सेक्टर की बात करें तो वहां भी टेस्टिंग को लेकर काफी सतर्कता दिखती है. ऐसे तमाम मामले जिनमें सर्जरी के पहले टेस्ट ज़रूरी है या फिर औचक रूप से होनो वाले टेस्ट मिलाकर निजी क्षेत्र में 82 फ़ीसदी टेस्ट हो रहे हैं.
ये पाया गया है कि इनमें से करीब 50 फ़ीसदी मामलों में नए वेरिएंट के लक्षण नज़र आए हैं. इस वेरिएंट को ‘बेहद संक्रामक’ बताया गया है.
कितना संक्रामक नया वेरिएंट?
जाने माने वायरोलॉजिस्ट डॉक्टर टी जैकब जॉन ने बीबीसी को बताया, “ ये बहुत घातक नहीं है लेकिन बहुत तेज़ी से फैलता है. 40 से ज़्यादा देशों में ये फैल चुका है. ओमिक्रॉन के बारे में हम जानते हैं और इस वजह से इसे लेकर बहुत हैरानी नहीं है. ये छींक से निकलने वाले कणों के जरिए हवा में फैलता है. ओमिक्रॉन के दूसरे सब वेरिएंट्स के मुक़ाबले नाक और गले से निकलने वाले फ्लूड में वायरल लोड ज़्यादा होता है.”
वेल्लोर के क्रिश्चन मेडिकल कॉलेज में माइक्रोबायलॉजी की प्रोफ़ेसर रह चुकीं डॉक्टर गगनदीप कांग ने बीबीसी को बताया, “ये इन्फ्लूएंजा से ज़्यादा ख़तरनाक़ है. इसे लेकर बुजुर्गों और दूसरी बीमारियों से पीड़ित लोगों को चिंता करनी चाहिए. अगर आपको सांस से जुड़े इन्फेक्शन जल्दी पकड़ लेते हैं तो आपको सावधान रहने की ज़रूरत है. आप मास्क पहनिए. भीड़ वाले इलाकों में मत जाइए और ये सोचिए कि ख़ुद को सुरक्षित रखने के लिए आप क्या कर सकते हैं.”
चार लोगों की हुई मौत, तीन की उम्र 65 से ज़्यादा
डॉक्टर कांग ने जो कहा डॉक्टर आनीश ने उसका समर्थन करते हैं, “मंगलवार तक एक्टिव केस की संख्या 1749 थी लेकिन आप देखें तो पाएंगे कि सिर्फ़ 30 या 35 मामलों में लोगों को अस्पताल में दाखिल कराया गया और इनमें से सिर्फ ढाई फ़ीसदी मरीजों को अस्पताल में ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ी.”
चार लोगों की मौत हुई है. उनमें से सिर्फ़ एक की उम्र 65 साल से कम है. बाकी की उम्र काफी ज़्यादा थी और उनमें से हर एक को कोई न कोई बीमारी थी.
उन्होंने कहा, “एक ने कैंसर का इलाज कराया था. एक ऐसे किडनी के मरीज़ थे जो डायलसिस पर थे. एक को लंबे समय से डायबटीज़ थी. ”
बीमारों में 30 फ़ीसदी टीका नहीं लेने वाले
डॉक्टर अनीश ने बताया, “केरल की 70 फ़ीसदी आबादी को कम से कम एक बार टीका लग चुका है. जिन लोगों ने वैक्सीन नहीं ली है, वो कुल आबादी के सिर्फ़ तीन फ़ीसदी हैं. लेकिन अभी जो लोग संक्रमित हुए हैं, उनमें से तीस फ़ीसदी इन्हीं तीन फ़ीसदी लोगों में से हैं. ”
उन्होंने कहा, “इससे साफ़ है कि लोगों ने पहले जो टीका लिया है, वो अब भी काम कर रहा है. आईसीएमआर के अध्ययन के मुताबिक वैक्सीन मौत रोकने में कारगर है और दो ज़्यादा टीके लिए हैं तो जीवन रक्षा हो सकती है लेकिन हमारे पास इस बात के सुबूत नहीं हैं कि आगे की खुराक रक्षण करेंगी या नहीं. ”
वायरस से संक्रमित हुए लोगों में जो एंटीबॉडी बनी, वो बरक़रार रहेंगी, इस सवाल पर उन्होंने कहा, “ये उसी तरह है जैसे कि आपके पास मेन डोर की चाबी हो लेकिन घर के दूसरे दरवाज़ों की चाबी न हो. ज़्यादातर बीमारियों में भी ऐसा ही होता है. कोविड महामारी है, अगर आपने टीका लिया भी है तो भी वेरिएंट बच निकलने की तरकीब विकसित कर लेता है. जेएन-1 के साथ भी ऐसा हो सकता है. जहां तक हम जानते हैं, कोविड वायरस का उम्र और बीमारी को लेकर अलग बर्ताव दिखता है. ”
बूस्टर डोज़ लेना कितना ज़रूरी ?
क्या बूस्टर डोज़ लेना ज़रूरी है, इस सवाल पर डॉक्टर जॉन कहते हैं, “ये ज़रूरी नहीं है.”
वो कहते हैं, “हालांकि, पहले हुए इन्फेक्शन या फिर टीके की वजह से जितनी अधिक प्रतिरोधक क्षमता विकसित हुई है, बचाव की संभावना भी उतनी ज़्यादा होगी. सबसे अच्छा जो है, वो है पूरी तरह सुरक्षित किसी वैक्सीन की बूस्टर डोज़. ”
बाकी दुनिया की तरह यहां भी जेएन-1 वेरिएंट को टार्गेट करने वाली वैक्सीन अभी विकसित नहीं हुई है.
डॉक्टर कांग अमेरिका में बुजुर्गों और दूसरी बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए बनाई गई मोनोवैलेंट वैक्सीन का ज़िक्र करती हैं.
वो कहती हैं, “वो पुराने और नए स्ट्रेन से मुक़ाबले के लिए बाइवैलेंट वैक्सीन बनाते थे. अब अमेरिका पुराने स्ट्रेन को लेकर फिक्रमंद नहीं हैं क्योंकि पुराना स्ट्रेन मौजूद नहीं है. ”
वो कहती हैं, “नोवोवैक्स वैक्सीन जिसे सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया भी बनाता है. ये मोनोवैलेंट स्ट्रेन के लिए अपडेटेड वैक्सीन है. संभावना है कि इसके जरिए कुछ हद तक प्रतिरक्षा मिले.”
डॉक्टर गगनदीप कांग कहती हैं, “आमतौर पर अगर आप स्वस्थ हैं और टीका ले चुके हैं, इसके बाद भी संक्रमित हो जाते हैं तो ऐसे में दूसरी वैक्सीन का फ़ायदा नहीं होगा. वैक्सीन का फ़ायदा उन्हीं लोगों को होता जो ज़्यादा ख़तरे की जद में हैं. ऐसे लोगों में बुजुर्ग लोग शामिल हैं. बूस्टर डोज सिर्फ़ कुछ महीनों तक बचाव कर सकती हैं. ”
सही नीति है ज़रूरी
डॉक्टर जॉन की इस मुद्दे को लेकर अलग राय है.
वो कहते हैं, “किसी नई वैक्सीन की ज़रूरत नहीं है लेकिन बूस्टर डोज़ देना एक अच्छा विचार है. लेकिन लाभ और ख़तरने का आकलन कर लेना चाहिए. कोई भी ऐसी वैक्सीन जिसके गंभीर दुष्परिणाम नहीं होते हों, उन्हें ऐसे लोगों के लिए रख लेना चाहिए जो गंभीर कोविड को लेकर ख़तरे की जद में हैं. वैक्सीन देने के जोखिम से बीमारी का ख़तरा ज़्यादा बड़ा है. ”
डॉक्टर जॉन कहते हैं, “उदाहरण के लिए एडेनो वेक्टर्ड वैक्सीन या फिर एमआरएनए वैक्सीन. भारत की कोवैक्सीन सौ फ़ीसदी सुरक्षित है लेकिन इसका मिल पाना दिक्कत की बात है. इसके लिए ऐसा सिस्टम ज़रूरी है, जहां अच्छी नीतियां बन सकें. ”
इस बीच केरल की स्वास्थ्य मंत्री वीणा जॉर्ज ने अपनी सरकार की तारीफ करते हुए एक अहम बात कही.
उन्होंने कहा, “इस बीच सिंगापुर ने 15 लोगों में जेएन-1 पाया है. ये लोग बीते महीने भारत से सिंगापुर गए थे. इसका मतलब ये है कि कोविड का ये वेरिएंट भारत के दूसरे राज्यों में भी है. ख़ास बात ये है कि ये केरल में हुई टेस्टिंग के दौरान पाया गया. ”