नई दिल्ली: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इन दिनों अपने ही पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को समझाना पड़ रहा हैं कि आख़िर पार्टी ने एक लोक सभा और दो विधान सभा उप चुनाव से खुद को अलग क्यों रखा.
जहां तक आधिकारिक रूप से इस निर्णय के पीछे का तर्क हैं वहां नीतीश कुमार ने ख़ुद सोमवार को सफ़ाई दी है. उनका कहना है कि पार्टी के नेताओं ने इस आधार पर अलग रहने का फ़ैसला किया कि इनमें से कोई भी एक सीट पिछले लोकसभा या विधानसभा में जनता दल यूनाइटेड नहीं जीती थी. राजद अररिया लोकसभा जीत पर विजयी रही थी. जहानाबाद सीट पर राजद और भभुआ भाजपा के उम्मीदवार जीते थे. जीते उम्मीदवारों की मौत के बाद अब इन जगहों पर फ़िलहाल उपचुनाव हो रहे हैं.
जहां अररिया सीट पर भाजपा का दावा बनता था वही भभुआ सीट पर भी उसके उम्मीदवार के जीत के बाद जनता दल यूनाइटेड के दावा करने का सवाल नहीं होता. लेकिन जनता दल यूनाइटेड के नेताओं का कहना है कि पार्टी जहानाबाद की सीट पर लड़ सकती थी क्योंकि 2010 में इस सीट पर उसके उम्मीदवार की जीत हुई थी लेकिन पार्टी ने अपने को अलग कर गेंद भाजपा के पाले में कर दिया हैं. इस सीट पर दावा जीतन राम मांझी या उपेन्द्र कुशवाह ठोकें. जिसके दावे में उन्हें दम लगता हो उसे अपना उम्मीदवार देने के लिए कह सकते हैं.
जहां तक जनता दल यूनाइटेड के वरिष्ठ नेताओं का सवाल है तो उनका कहना है कि पार्टी उसी उपचुनाव में अपना उम्मीदवार देती रही है जो उनके विधायक या सांसद के निधन या अयोग्य क़रार दिए जाने के बाद खाली हुआ हो. बांका से निर्दलीय सांसद दिग्विजय सिंह की मौत के बाद जहां जनता दल यूनाइटेड ने अपना उम्मीदवार नहीं दिया था.
वही राजद अध्यक्ष लालू यादव ने सार्वजनिक ऐलान करने के बावजूद जयप्रकाश नारायण यादव को मैदान में उतारा था. जहां तक नीतीश के द्वारा प्रचार का सवाल है तब उनके पार्टी के नेता कहते हैं कि 2015 में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के उम्मीदवार के निधन के बाद हुए उपचुनाव में नीतीश लालू यादव के तमाम दबाब के बावजूद प्रचार करने भी नहीं गये थे. लेकिन देखना है कि नीतीश इस बार सहयोगियों के प्रचार के अनुरोध पर क्या रूख अपनाते हैं.