– केवट संवाद की मार्मिक कथा सुन भक्ति सागर में गोते लगाते रहे भक्त
– संवेदना सेवा न्यास द्वारा आयोजित हो रही श्रीराम कथा में बही भक्ति की बयार
फतेहपुर। श्रीरामचरित मानस में भगवान श्रीराम के वनवास के समय का एक बेहद मार्मिक प्रसंग है। तुलसीदास जी द्वारा लिखित मानस का ये प्रसंग केवट की भक्ति और श्रीराम की करुणा को बताता है जिसे सुन भक्त श्रीरामकथा सागर में गोते लगाते रहे। श्रीराम कथा महोत्सव में परम पूज्य आचार्य शांतनु जी महाराज ने केवट संवाद का मार्मिक प्रसंग प्रस्तुत किया। महाराज कहते हैं कि केवट अपने तर्कों से प्रभु को भी निरुत्तर कर देते हैं तथा भक्त वत्सल श्रीराम उन पर अनन्य कृपा बरसाते हैं। इस दौरान उन्होंने गीत संगीत के बीच छुअत सिला भई नारि सुहाई, पाहन तें न काठ कठिनाई गाया तो श्रद्धालु भक्ति रस से ओतप्रोत होकर झूमने लगे। अर्थात् जिसके छूते ही पत्थर की शिला सुन्दरी स्त्री हो गयी (मेरी नाव तो काठ की है )। काठ पत्थर से कठोर तो होता नहीं। मेरी नाव भी मुनि की स्त्री हो जायेगी और इस प्रकार मेरी नाव उड़ जाएगी, मैं लुट जाऊँगा। इस पर भगवान श्रीराम बोले – तुम वही करो जिससे नाव न जाए। जिनका नाम एक बार स्मरण करने से मनुष्य अपार भवसागर से पार उतर जाते हैं आज वही प्रभु केवट का निहोरा कर रहे हैं। केवट श्रीरामचन्द्र जी की आज्ञा पाकर कठौते में जल भरकर ले आया। अत्यन्त आनंद और प्रेम में उमंगकर वह ‘चरन सरोज पखारने लगा’। सब देवता फूल बरसाने लगे क्योंकि जो चरण बड़े-बड़े योगियों के ध्यान में भी नहीं आते उन्हीं चरणों को धोकर केवट ने सपरिवार उस चरणामृत का पान किया, जिससे उनके पितर भी भवसागर से पार हो गए। इसके बाद केवट ने आनंदपूर्वक प्रभु को गंगा पार करवाया और उतरकर दंडवत किया। प्रभु को संकोच हुआ इसे कुछ नहीं दिया। भगवान श्रीराम केवट को अपनी धर्मपत्नी जनकनन्दिनी सीताजी की अंगूठी दे रहे हैं परंतु केवट व्याकुल होकर चरण पकड़ रहे हैं – मानो भगवान हमें सीख दे रहे हैं कि देने वाला चाहे जितना भी अधिक दे परंतु यह सोचे कि मैंने कुछ नहीं दिया है। तभी उसका देना सफल होता है और लेने वाला कम होने पर भी समझे कि नहीं-नहीं बहुत अधिक दिया हैं। तभी उसका लेना सफल होता हैं। अर्थात् देना गरिमामयी हो तो लेना भी महिमामयी हो। केवट प्रसंग को सुनाते हुए महाराज जी ने कहा यदि परमात्मा से मिलन करना हो तो एकदम सरल सहज और भोले हो जाइए भोले भक्ति को परमात्मा बहुत पसंद करते हैं केवट भगवान से चरण धुलवा कर पार उतारने की बात करता है यही तो भक्त और भगवान के बीच का संबंध है। केवट भगवान से अनेक तर्क करता है कि प्रभु मैं आपसे रोना इसलिए रो रहा हूं क्योंकि आप दयालु भक्तों के रुदन बर्दाश्त नहीं कर पाते इसलिए महाराज श्री ने बताया रूदन ही वह भक्ति मार्ग की साधना है जो भगवान से मिलन करा देती है। राम कथा में प्रमुख यजमान सेवा भारती प्रांत अध्यक्ष राकेश श्रीवास्तव के साथ रेलवे वाणिज्यकर अधिकारी महेन्द्र गुप्ता, समाजसेवी कोटेश्वर शुक्ला, भाजपा नेत्री कविता रस्तोगी, व्यवसाई विष्णु रस्तोगी, दीपिका सिंह यजमान के रूप में मौजूद रहे। इस दौरान पूर्व मंत्री रणवेंद्र प्रताप सिंह उर्फ धुन्नी भैया, पूर्व जिलाध्यक्ष भाजपा प्रमोद द्विवेदी, भाजपा महिला मोर्चा अध्यक्ष ज्योति प्रवीण, अनुसूचित मोर्चा अध्यक्ष अभिजीत भारती, नगर पंचायत किशनपुर अध्यक्ष सुरेंद्र सोनकर, ओएसडी समाज कल्याण अभिषेक परिहार, ओएसडी वन पर्यावरण मंत्रालय पार्थ जादौन, ओएसडी वन मंत्री भरत, जिला समाज कल्याण अधिकारी कानपुर त्रिनेत्र सिंह, एडीओ समाज कल्याण बांदा अंशुमान सिंह, शिक्षक हरिओम सिंह चैहान, सच्चा बाबा आश्रम प्रयागराज से पंडित हरिकृष्ण शास्त्री, सुनिधि तिवारी, अपर्णा सिंह गौतम, गायत्री सिंह, स्मिता सिंह, आयोजन समिति के संयोजक स्वरूप राज सिंह जूली, संवेदना सेवा न्यास के संस्थापक अध्यक्ष पंकज, संवेदना सेवा न्यास के आजीवन संरक्षक अनुराग त्रिपाठी, नमामि गंगे संयोजक शैलेंद्र शरन सिंपल आदि भक्त मौजूद रहे।
Prev Post