हाल ही में मुंबई 1993 बम ब्लास्ट पर आधारित वेब सीरीज ‘नाम गुम जाएगा’ में एक्टर राहुल सिंह पुलिस ऑफिसर की भूमिका में नजर आए हैं। इस सीरीज को लेकर एक्टर ने पिछले दिनों दैनिक भास्कर से खास बातचीत की। इस दौरान उन्होंने डायरेक्टर श्याम बेनेगल की फिल्म ‘जुबैदा’ से जुड़ा एक किस्सा शेयर करते हुए कहा कि जब काम मांगने गए थे तब डायरेक्टर ने कहा था कि तुम्हें रेखा का पति कैसे बना दूं। एक्टर ने नेपोटिज्म के मुद्दे पर भी बात करते हुए अपने लाइफ से जुड़े कुछ और किस्से शेयर किए।
हर कलाकार के जर्नी में सबसे पहले बाधा उसके घर से आती है
बातचीत के दौरान राहुल सिंह ने बताया कि जब उन्होंने एक्टिंग प्रोफेशन के बारे में सोचा तो घरवालों ने इसका विरोध किया। वह कहते हैं, ‘हर कलाकार के जर्नी में सबसे पहले बाधा उसके घर से आती है। वो बाधा शुभचिंतक के तौर पर आती है। घर वाले चाहते हैं कि आप जो भी करो उसमें सेटल हो जाओ। जब घर वालों को एक्टिंग प्रोफेशन के बारे में बताया तो उनका पहला यही सवाल था कि,अच्छा तू करेगा? पहले तो घर वालों को विश्वास दिलाया कि एक्टिंग कर सकता हूं। उन दिनों थिएटर कर रहा था। घरवालों को नाटक दिखाया।’
पहली फिल्म मिली तो सोचा कि बिना धक्के खाए कैसे मिल गई
राहुल सिंह ने कहा- लंदन के रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामा से थिएटर और ब्रिटिश फिल्म इंस्टीट्यूट से एक्टिंग की ट्रेनिंग लेने के बाद जैसे ही मुंबई आया मुझे एक फिल्म गई। मैं सोच रहा था कि आते ही फिल्म कैसे मिल गई। मैंने तो धक्के खाए ही नहीं। खैर, मैंने फिल्म ‘द मैरिज ऑफ रेड साड़ी’ की 15-20 दिन शूटिंग की। इस फिल्म में मेरा लीड रोल था। उस फिल्म में गुलजार साहब के गीत और विशाल भारद्वाज का संगीत था। प्रोड्यूसर और डायरेक्टर के बीच किसी बात को लेकर बहस हुई और फिल्म बंद हो गई।
शोरील बनाकर पहुंचा श्याम बेनेगल के पास
उन दिनों मॉडलिंग भी कर रहा था। काम को लेकर थोड़ा और सीरियस हो गया। उन दिनों कई एपिसोडिक सीरियल कर रहा था। उसकी एक शोरील बन गई। मैंने श्याम बेनेगल साहब के ऑफिस में छोड़ दिया। मुझे पता चला कि बेनेगल साहब ‘जुबैदा’ बना रहे हैं। फिल्म की शूटिंग राजस्थान में होनी थी मैं खुद राजस्थान से हूं। मुझे कल्चर का भी ज्ञान है। एक एक्टर खुद को बेचने के लिए जितना ज्ञान बांटता है। मैंने बेनेगल साहब के सामने वो सब बोल दिया।
पहली फिल्म मिली तो सोचा कि बिना धक्के खाए कैसे मिल गई
राहुल सिंह ने कहा- लंदन के रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामा से थिएटर और ब्रिटिश फिल्म इंस्टीट्यूट से एक्टिंग की ट्रेनिंग लेने के बाद जैसे ही मुंबई आया मुझे एक फिल्म गई। मैं सोच रहा था कि आते ही फिल्म कैसे मिल गई। मैंने तो धक्के खाए ही नहीं। खैर, मैंने फिल्म ‘द मैरिज ऑफ रेड साड़ी’ की 15-20 दिन शूटिंग की। इस फिल्म में मेरा लीड रोल था। उस फिल्म में गुलजार साहब के गीत और विशाल भारद्वाज का संगीत था। प्रोड्यूसर और डायरेक्टर के बीच किसी बात को लेकर बहस हुई और फिल्म बंद हो गई।
शोरील बनाकर पहुंचा श्याम बेनेगल के पास
उन दिनों मॉडलिंग भी कर रहा था। काम को लेकर थोड़ा और सीरियस हो गया। उन दिनों कई एपिसोडिक सीरियल कर रहा था। उसकी एक शोरील बन गई। मैंने श्याम बेनेगल साहब के ऑफिस में छोड़ दिया। मुझे पता चला कि बेनेगल साहब ‘जुबैदा’ बना रहे हैं। फिल्म की शूटिंग राजस्थान में होनी थी मैं खुद राजस्थान से हूं। मुझे कल्चर का भी ज्ञान है। एक एक्टर खुद को बेचने के लिए जितना ज्ञान बांटता है। मैंने बेनेगल साहब के सामने वो सब बोल दिया।
वह फिल्म सत्यकथा पर ही आधारित थी। बेसिक कहानी तो मुझे पता ही था। श्याम बेनेगल साहब से मैंने कहा कि फिल्म मुझे करनी है। वो बोले- तुम्हें रेखा का पति कैसे बना दूं। तुम तो अभी बच्चे हो? मैंने कहा- सर मूंछे लगा दीजिए। श्याम सर बोले- पागल हो गए हो क्या? फिर उन्होंने मुझे उदय सिंह का किरदार दिया और महाराजा विजयेंद्र सिंह का किरदार मनोज बाजपेयी ने निभाया।
जुबैदा के बाद मैंने ‘बस इतना सा ख्वाब है, डरना मना है, तेरे बिन लादेन, देल्ही बेली, स्टेनली का डब्बा, द गाजी अटैक’ खिलाड़ी 786, जैसी कई फिल्में की। ईश्वर की कृपा रही कि जिन फिल्मों को चुना उसमें मेरे काम सराहा गया। रही बात नेपोटिज्म की, तो यह हर बिजनेस में होता है। आदमी अपने बाद अपने बेटे को बैठाता है। वो चाहता है कि उसके बाद बेटे और बेटी उनके बिजनेस को संभाले। लेकिन 99 प्रतिशत लोग इतने योग्य नहीं होते हैं। आप करीब होते हैं, इसलिए दस मौके मिल जाते हैं।