बेसिक शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार आरोपी बाबू के खिलाफ कमिश्नर ने दिए जांच के सख्त आदेश

आगरा। न्यूज़ वाणी। बेसिक शिक्षा विभाग में नियमों का उल्लंघन कर आगरा में कनिष्क लिपिक के पद पर तैनात एक बाबू के खिलाफ भ्रष्टाचार और अनियमित नियुक्ति की शिकायत मिलने पर आगरा कमिश्नर ने गंभीरता से लेते हुए जांच के सख्त आदेश दिए हैं।
प्राप्त विवरण के अनुसार मनोज खान पुत्र शकूर खान ने कमिश्नर को शिकायती पत्र में लिखा जिसमें बाबू पर भ्रष्टाचार और अनियमित नियुक्ति के गंभीर आरोप लगाए गए। शिकायत के अनुसार बाबू ने अपनी पत्नी के निधन के बाद मृतक आश्रित कोटे से नौकरी भी प्राप्त कर ली और जबकि उसने पहले पुनर्विवाह कर लिया था ।जो कि नियमों के खिलाफ है। इसकी बावजूद बाबू को फतेहाबाद में तैनात किया गया जो कि जिला कार्यालय में भी नियमों के विपरीत अटैचमेंट किया गया। बाबू पर यह भी आरोप लगाया गया कि उसने फतेहाबाद जिला कार्यालय में संयुक्त प्रभार के दौरान के दौरान भ्रष्टाचार किया एंटी करप्शन टीम ने उसके आरोपों की जांच करते हुए उसे पकड़ा था। और वह लगभग दो माह जेल में भी रहा। जेल से छूटने के बाद अधिकारियों से शाटगाठ करके उसने अपनी बहाली नगर क्षेत्र में करवा ली। मनोज ने यह भी आरोप लगाया है की जेल में निरूध रहने के दौरान बाबू के वेतन का आहरण किया गया ।जबकि यह न्यायालय के आदेश पर निर्भर करता था। मनोज खान ने इस मामले की जांच के लिए एडी बेसिक शिक्षा आगरा को भी अवगत कराया ।एडी बेसिक शिक्षा अधिकारी आई पी सिंह सोलंकी ने शिकायत के संज्ञान लेते हुए कहा की पक्षो के तत्वों का अवलोकन किया जाएगा और जांच के बाद उचित कार्रवाई की जाएगी।
शिक्षा विभाग में तैनात बाबू अपने मनमाने तरीके से भ्रष्टाचार अवैध कार्यों का अंजाम देने काआदी है ।यह बाबू अपने प्रभाव इस्तेमाल करके उच्च अधिकारी की मदद से नियमों का उल्लंघन करता रहता है ।जिसमें उसे कोई डर नहीं है। हैरत की बात यह है की फतेहाबाद ब्लॉक के बीआरसी पर कनिष्ठ लिपिक के पद पर तैनात एक बाबू को नियमों के खिलाफ जिले पर तैनाती दी गई। बाबू ने अपने प्रभाव का उपयोग करके अवैध कार्यों को अंजाम दिया भ्रष्टाचार और रिश्वत की शिकायत पर एंटी करप्शन टीम ने रंगे हाथ पकड़ा बाबू दो माह लगभग जेल में रहा इस जेल से बाहर आने पर
उसे तैनाती भी मिल गई। ब्लाक शमशाबाद के बीच का पुरवा गांव में तैनात सहायक अध्यापिका राखी सिंह को आर्थिक लाभ पहुंचाने के लिए इसी बाबू ने आर्थिक लेनदेन करके पूरे 8 साल 8 महीने लगभग वैधानिक अवकाश को गुपचुप तरीके से जारी कर दिया ।यह अवकाश मानव संपदा पोर्टल पर नहीं डाला जबकि विभागीय नियमों के अनुसार 5 वर्ष से अधिक वैधानिक अवकाश जारी नहीं हो सकता। कुछ अधिकारियों के संरक्षण प्राप्त इस बाबू पर किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं हुई। स्पष्ट रूप से कहां जाए तो सही होगा,विभागीय भ्रष्टाचार और प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही का एक उदाहरण है। सहायक अध्यापक शैलेंद्र सिंह के खिलाफ की गई शिकायतों और उनके निलंबन के बावजूद वह अवकाश के दौरान भी वेतन प्राप्त करते रहे स्पष्ट होता है कि विभाग के अंदर भ्रष्टाचारी मिली भगत का खेल चल रहा है प्रारंभिक में जांच के बाद प्रधानाधियापिका द्वारा की गई शिकायतों पर कार्रवाई करते हुए शैलेंद्र कुमार सिंह को निलंबित किया गया था ।बाद में अवकाश के बाद उनकी बहाली और अनुपस्थित तक का वेतन जारी करने में अनियमितता दिखती है। बीएसए द्वारा सीईओ( ब्लॉक शिक्षा अधिकारी )जगनेर को जांच के निर्देश दिए गए थे लेकिन बीईओ द्वारा इसकी जिम्मेदारी दूसरे बाबू विष्णु शर्मा पर डाल दी गई। क्या यह नहीं दर्शाता की जांच में पारदर्शिता और निष्पक्षता की पूरी कमी है ।अभी तक दोषी बाबूओ पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है ,और शैलेंद्र कुमार सिंह से वेतन की रिकवरी भी नहीं कराई गई। इन सब बिंदुओं पर संज्ञान लेते हुए कमिश्नर ने गंभीर आरोपों को अधीनस्थ अधिकारियों को तत्काल जांच के निर्देश दिए हैं और इस मामले में दोषी पाए जाने वाले संबंधित अधिकारी और बाबू के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा सकती है।

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