चालीस प्रतिशत कमीशन के चक्कर में मरीज को मौत के मुंह में झोंक देते हैं एंबुलेंस चालक !

-मरीज भर्ती करने से पहले अवैध अस्पताल संचालक से 3500 रूपए लेते हैं टोकन

फतेहपुर। प्राइवेट हॉस्पिटलों को संचालित करवाने में ज्यादातर हाथ एंबुलेंस चालकों का होता है क्योंकि हॉस्पिटलों से मिलने वाली मोटी रकम से प्राइवेट एंबुलेंस चालक जीते है रहीसो की जिंदगी। जिला अस्पताल में आने वाले मरीजों को अत्यधिक गंभीर समस्या होने पर डॉक्टरों द्वारा कानपुर रेफर या भर्ती कर दिया जाता है। जिसमें से कुछ मरीज सरकारी एंबुलेंस का सहारा लेकर कानपुर जाते हैं व कुछ प्राइवेट एंबुलेंस का सहारा लेते हैं। जिसके बाद प्राइवेट एंबुलेंस चालकों द्वारा मरीजों को ले जाते समय कम खर्च में अच्छा इलाज का झांसा देकर शहर के ही विभिन्न हॉस्पिटलों में कमीशन के लिए भर्ती कर दिया जाता है। मरीज के परिजनों से वार्तालाप करते रहते हैं कि आखिर मरीज को डिस्चार्ज करने के बाद कितने रूपयो का बिल बना। जिससे वह प्राइवेट हॉस्पिटलों से अपना हिस्सा ले सकें। जानकारी के मुताबिक एंबुलेंस चालकों द्वारा ऐसे हॉस्पिटलों में ले जाया जाता है जहां पर डिग्री वाले डॉक्टर की व्यवस्था न हो और इलाज के नाम पर मरीजों से अत्यधिक रुपया ऐठा जा सके। एक एम्बुलेंस चालक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि शांति नगर के चर्चित दो हॉस्पिटलों में इन एंबुलेंस चालकों के द्वारा जिला अस्पताल से रेफर मरीज व भर्ती मरीजो को इन्हीं हॉस्पिटलों में भर्ती कराने का कार्य किया जाता है। मरीज के भर्ती होते ही चालकों द्वारा हॉस्पिटल से टोकन के नाम पर 3500 रूपए ले लिए जाते हैं और जब तक मरीज अपने घर नहीं चला जाता तब तक मरीज पर एंबुलेंस चालक निगरानी भी रखते हैं। जिसके बाद वह अस्पताल संचालकों से अपना कमीशन का रुपया ले सकें। जिला अस्पताल के इमरजेंसी व वार्ड में तैनात कुछ भ्रष्ट स्वास्थ्य कर्मियों की मिली भगत से चंद रुपयों के कारण कानपुर रिफर होने वाले व भर्ती मरीजों को इन एंबुलेंस चालकों के हाथ सौंप दिया जाता है। जिससे उनका भी कमीशन मिल सके। वही जिला अस्पताल के सीएमएस द्वारा समय-समय पर एंबुलेंस चालकों को इमरजेंसी में एंबुलेंस लगाने के लिए मना भी किया गया इसके बावजूद इनके हौसले इतने बुलंद हैं कि अभी भी उनकी गाड़ियों पर रोक नहीं लग पा रही है द्य एम्बुलेंस चालकों के इस मकड़जाल से मरीजों को अब केवल जिलाधिकारी ही बचा सकती है।

 

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