रुद्रप्रयाग। उत्तराखंड में स्थित चारों धामों के कपाट बंद होने का सिलसिला शनिवार से शुरू हो गया है। भैया दूज के पावन पर्व पर सुबह 8:30 बजे सेना के बैंड और पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन के साथ 6 महीने के लिए केदारनाथ के कपाट बंद हुए। इस दौरान 15 हजार से अधिक श्रद्धालु कपाट बंद होने के साक्षी बने। कपाट बंद होने के बाद बाबा केदारनाथ की डोली यात्रा आर्मी बेंड के साथ अपने शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के लिए रवाना हुई। विश्व प्रसिद्ध ग्यारहवें ज्योर्तिलिंग श्री केदारनाथ धाम के कपाट ऊं नम् शिवाय, जय बाबा केदार के जय घोष और भारतीय सेना के बैंड की भक्तिमय धुनों के बीच वैदिक विधि-विधान व धार्मिक परंपराओं के साथ बंद किए गए। ‘
इस दौरान भारी संख्या में मौजूद श्रद्धालु आर्मी की बैंड धुनों पर भक्ति भाव में जमकर झूमते नजर आए। इस दौरान मंदिर को भव्य तरीके से फूलों से सजाया गया था। कपाट बंद होने के अवसर पर बीकेटीसी अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने बताया कि, इस यात्राकाल में रिकॉर्ड साढ़े 16 लाख से अधिक तीर्थ यात्री केदारनाथ धाम पहुंचे। केदारनाथ के कपाट 10 मई को खोले गए थे। 1 नवंबर तक यहां 16 लाख 15 हजार 642 श्रद्धालुओं ने दर्शन किए। हर साल शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद कर दिया जाते हैं।
‘इसके बाद बाबा केदारनाथ की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के लिए रवाना होती है। अगले 6 महीने तक बाबा केदार की पूजा-अर्चना शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में ही होती है। केदारनाथ धाम में 16 लाख 15 हजार 642 श्रद्धालुओं ने दर्शन किए। बद्रीनाथ धाम में अब तक 13 लाख से ज्यादा श्रद्धालु पहुंचे। यमुनोत्री में 7.10 लाख और गंगोत्री में 8.11 लाख श्रद्धालु दर्शन कर चुके हैं। चारों धाम में अब तक 44 लाख दर्शन कर चुके हैं। इन चारों मंदिरों के कपाट हर साल अप्रैल-मई में गर्मियों की शुरुआत के बाद खोले जाते हैं। यमुनोत्री धाम के गेट भी आज दोपहर 12:04 बजे बंद कर दिए जाएंगे।
बद्रीनाथ में 17 नवंबर तक दर्शन किए जा सकेंगे। वहीं उत्तरकाशी में स्थित गंगोत्री धाम के कपाट एक दिन पहले ही यानी 2 नवंबर को दोपहर 12:14 बजे बंद हुए। इस मौके पर गंगोत्री धाम हर-हर गंगे, जय मां गंगा के जयकारे लगे।गंगोत्री मंदिर समित के सचिव सुरेश सेमवाल ने बताया कि समुद्र तल से करीब 10,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित गंगोत्री मंदिर के कपाट अन्नकूट के शुभ अवसर पर धार्मिक अनुष्ठानों के बीच दोपहर 12.14 बजे बंद कर दिए गए। सेना के बैंड और पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन के साथ मां गंगा की डोली यात्रा के साथ अपने शीतकालीन प्रवास मुखवा (मुखीमठ) के लिए रवाना हुईं। जहां पूरे शीतकाल के दौरान उनकी पूजा की जाएगी।