दरगाह की आय के नुकसान का जिम्मेदार कौन वक्फ बोर्ड या जिला प्रशासन।

दरगाह की आय के नुकसान का जिम्मेदार कौन वक्फ बोर्ड या जिला प्रशासन।

दिनेश कुमार

हरिद्वार पिरान कलियर :- उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के पास सबसे ज्यादा आय प्राप्त करने वाली मात्र एक दरगाह साबिर पाक ही ऐसी जगह बची है जहां पर मौका मिलने पर वक्फ बोर्ड भी नुकसान देने में पीछे नही रहा।लोगो का मामना तो यह भी है की जितनी भी चल अचल सम्पतियों को नुकसान बाहरी लोगो ने पहुंचाया उनमें वक्फ बोर्ड की संलिप्तता को नकारा नही जा सकता।इसी भ्र्ष्टाचार के खिलाफ हाइकोर्ट नैनीताल द्वारा 2012 से यहां की प्रबंध व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिये जिला अधिकारी हरिद्वार व वक्फ बोर्ड सी ई ओ को संयुक्त रूप से दी हुई है।लेकिन जिला प्रशासन के द्वारा दरगाह कार्यालय पर एक प्रबंधक को बैठकर 100 कर्मचारियो की देखरेख का जिम्मा सौंपा गया है।ओर समय समय पर यहां पर दरगाह की आय से कुछ विकास कार्यो के नाम पर भी पैसा खर्च किया जाता रहा है।इस सब गतिविधियों के बावजूद दरगाह साबिर पाक के वार्षिक ठेको को छोड़ने की जिम्मेदारी भी जिला प्रशासन व वक्फ बोर्ड ही निभाता चला आ रहा है ओर बकाया पैसा वसूलने का कार्य भी जिला प्रशासन के नियुक्त अधिकारी ही देखते है।लेकिन सब कुछ होते हुवे व एडवांस चेक लेकर भी 2018-19 के ठेकेदारों को पूरा टाइम देकर दरगाह का करोड़ो रुपया भी इन्ही के द्वारा ठेकेदारों के पेट में सुविधा के अनुसार पहुंचाया गया है।अब बात 2019-20 के वार्षिक ठेको की हुई तो इसमें भी बड़ा खेल तत्कालीन प्रबंधक के द्वारा खेलकर आचार संहिता के बहाने ठेको को लटका कर अधिकारियों को गुमराह कर ठेको को बिना सिक्योरिटी के ही डेली वेसिस पर उठवाया गया है।अब चौथी बार ठेको की नीलामी निकली जा चुकी है लेकिन दरगाह कार्यालय स्टाफ की सांठगांठ के ठेकेदार भी लामबंद होकर देलीवेसिस पर ही बिना सिक्योरिटी के ठेका चलाने पर आमदा कर दिए है।दरगाह कार्यालय स्टाफ के चर्चित कुछ कर्मचारियो ने अब ठेकेदारों को भी अधिकारियों के साथ गुमराह कर बाजी अपने हाथ में लेने की ठान ली है सोची समझी साजिस के तहत नोटिस दिलवाया गया आठ तारिक तक समस्त ठेकेदार दुकान का किराया जमा कर दे ओर फिर दोबारा से ठेको पर दरगाह कर्मियों द्वारा बैठकर लूट का खेल उसी तरीके से किया जाएगा जैसा दरगाह इमाम साहब की दुकान पर बैठकर दरगाह कर्मियों ने लगभग दो साल तक दरगाह का प्रशाद व चादर बेंचकर किया गया जबकि ठेकेदार प्रशाद व चादर भी बाजार से खरीदता है ओर दरगाह को सिर्फ जगह पर बैठने के लिये ही हजारों रुपये प्रतिदिन के अदा करता है।अब देखना यह है की दरगाह के नुकसान को देखते हुवे अधिकारी ठेकेदारों से कुछ सिक्योरिटी तय कर ठेके प्रतिदिन के हिसाब से चलवाते है या फिर वही बेहिसाब किताब दरगाह कर्मचारियो से दरगाह के करोड़ो रुपये की आमदनी को बन्दरबांट कराकर दोबारा दरगाह कर्मियों की लॉटरी खोल पाते है।क्योंकि दरगाह कर्मियों द्वारा जब भी कोई ठेका चलाया गया तो दरगाह खाते में चन्द रुपये जमाकर दरगाह के दान के पैसे का बंटवारा कर दरगाह की आय को ही नुकसान जानबूझकर पहुंचाया गया ।जिसका जीता जगत उदाहरण दरगाह इमाम साहब की दुकान पर लगभग दो साल बैठे दरगाह कर्मियों के द्वारा की गयी जमा चन्द रकम से ही जांच करने पर हो जाएगा जिसमे चादर व प्रशाद दरगाह स्टोर रम से बेच गया था।ओर इसी दुकान पर ठेकेदार द्वारा की गयी छह माह की रकम जिसमे ठेकेदार ने प्रशाद व चादर भी बाजार से ही खरीदकर बेची गयी हों।जिला प्रशासन व वक्फ बोर्ड सी ई ओ दोनों ही आई ए एस अधिकारियों से इस सम्बन्ध में नगर पंचायत के जागरूक पांच सभासदों व क्षेत्र के लोगो द्वारा मांग की जाएगी कि इस पूरे घटनाक्रम को दरगाह के नुकसान से देखते हुवे दरगाह कर्मियों को यदि बैठाया जाता है तो उनके लिये भी ठेकेदार की तरह ही शर्तो का पालन किया जाए।

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