तनाव मुक्त होगी शिक्षा,अब पाणिनि पद्धति से पढ़ेंगे बच्चे

रांची, पाणिनि पद्धति से बच्चों को पढ़ाने के किसलय विद्यालय के प्रयोग को राज्य के शिक्षा विभाग ने अपनाने की तरफ कदम बढ़ा दिया है। पायलट प्रोजेक्ट के तहत नवागढ़ पंचायत के दस प्राइमरी विद्यालयों के शिक्षकों को इसका प्रशिक्षण शुरू किया गया है। ये शिक्षक प्रशिक्षण के बाद किसलय की पाणिनि पद्धति को अपने-अपने स्कूलों में जाकर उतारेंगे। छह महीने तक इन सभी स्कूलों के बच्चों को निगरानी में रखा जाएगा। यदि बच्चों की सीखने-पढऩे और समझने की प्रवृत्ति बढ़ती है तो फिर इस पद्धति को पूरे राज्य के स्कूलों में लागू किया जाएगा।

बीआइटी मेसरा स्थित किसलय विद्यालय में शिक्षकों का पांच दिवसीय प्रशिक्षण सोमवार से शुरू हुआ है। पहले चरण के प्रशिक्षण के बाद सभी शिक्षक अपने स्कूलों में जाकर इसी पद्धति से पठन-पाठन शुरू करेंगे। पाणिनि पद्धति की सबसे बड़ी विशेषता है कि हर बच्चे के विकास के लिए उसके गुण-दोष को पहचानना और उसके बाद इसकी कमजोरियों को दूर करना। पहले चरण के प्रशिक्षण में शिक्षकों को यही बताया जाएगा, कैसे वह अपनी-अपनी कक्षा के बच्चों को गुण-दोष को पहचानेंगे। अभी स्कूली शिक्षा में इसी बात का बड़ा अभाव है। बच्चे क्या सीख रहें? इसे मापने का सिर्फ एक ही पैमाना है और वह है नंबर आधारित परीक्षा। नंबर कम आए तो बच्चे पर और पढ़ाई का बोझ। स्कूल के साथ-साथ अतिरिक्त पढ़ाई के लिए ट्यूशन। नतीजा, बच्चे से लेकर अभिभावक तक तनाव से ग्रसित हैं।

स्कूली शिक्षा का यह दबाव लगभग हर घर महसूस कर रहा है। पाणिनि पद्धति की खूबी ही यही है कि यहां न बच्चों को तनाव है और न शिक्षकों को। स्कूल में हर कोई दबावमुक्त महसूस करता है। यहां पढ़ रहे बच्चे अपने घरों की पहली पीढ़ी हैं जो स्कूल पहुंचे हैं, लेकिन वह सीखने, समझने और पढ़ाई में अच्छे-अच्छे कांवेंट स्कूलों के बच्चों को मात दे रहे हैं।

किसलय विद्या मंदिर की प्राचार्या रमा पोपली बच्चों को देश का भविष्य बताते हुए कहती हैं कि हमारे बच्चे बहुत सारी क्षमताएं लेकर इस दुनिया में आते हैं। उनकी सारी क्षमताएं मुखर हों तथा उनकी समझ बेहतर हो तभी ये बच्चे देश के बेहतर नागरिक बनेंगे और तभी भारत विश्वगुरु बनेगा। वे कहती हैं कि शिक्षा व्यवसाय बन गई है। अब ऐसा माना जाने लगा है कि बच्चों को शिक्षित करने के लिए बहुत धन चाहिए। जबकि पहले ऐसा नहीं था। पहले हमारे पास सीमित संसाधन हुआ करते थे। धन मायने नहीं रखता था बल्कि पद्धति मायने रखती थी। एक ऐसी पद्धति जिसमें चीजों को ध्यान से देखना, उसका अध्ययन करना। किसी कारणवश इन सब चीजों पर संसाधन हावी हो गए हैं, जबकि हमारे लिए शिक्षक ही संसाधन हैं जिनका विकास कर भारत की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाया जा सकता है।

उन्होंने बताया कि कुछ समय पहले नवागढ़ पंचायत के ही कुछ शिक्षक इस विद्यालय में पठन-पाठन के तरीके जानने आए थे। वे यहां के अध्यापन से बेहद प्रभावित हुए। इसके बाद शिक्षकों ने अपने वरीय अधिकारियों को बताया। शिक्षा अधिकारियों का एक समूह पंद्रह नवंबर को विद्यालय पहुंचा था। उन्होंने यहां के छात्रों तथा शिक्षकों से पाठ्य पद्धतियों के संबंध में जाना। शिक्षाधिकारी बच्चों से बहुत प्रभावित हुए। इसके बाद ही राज्य सरकार ने इस दिशा में कदम बढ़ाए हैं।

तीन चरणों में शिक्षकों को मिलेगी ट्रेनिंग

शिक्षकों का प्रशिक्षण देने का यह कार्यक्रम 15 दिनों का है जो तीन चरणों में पूरा होगा। पांच दिनों का एक चरण सोमवार से शुरू होकर शुक्रवार तक चलेगा। इसके बाद शिक्षक पांच दिनों में सीखी गई चीजों को अपने विद्यालय में छात्रों संग उनकी समझ को बेहतर बनाने के लिए प्रयोग में लाएंगे। इसके बाद पुन: पांच दिवसीय दूसरा तथा इसके बाद तीसरा चरण होगा। इन दोनों फेज में भी ऐसी ही प्रक्रिया दोहराई जाएंगी।

एनपीएस बड़कीगोड़ांग से आए भुवेश्वर मुंडा ने कहा कि इस विद्यालय के परिवेश को पठन-पाठन के अनुकूल बनाया गया है। यहां आकर बेहद अच्छा महसूस हो रहा है। यहां पढ़ाने का ढंग, व्यवस्था, दीवारों पर लिख बच्चों को समझाने का तरीका बहुत सरल व सुंदर है। उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय गढ़टोली के शिक्षक भुवनेश्वर शाही कहते हैं कि अब तक जहां भी वे पढ़ाते आए हैं वहां से यहां का माहौल बेहद बदला हुआ है। यहां के बच्चों में अन्य विद्यालयों की तुलना में अधिक अनुशासन दिखता है। यहां के बच्चों को सिखानेे के लिए यहां जो तरीका अपनाया जाता है वह काफी बेहतर है। यहां विद्यालय के हर हिस्से में बच्चों को सीखने के लिए कुछ न कुछ है।

राजकीय मध्य विद्यालय नवागढ़ में अंग्रेजी के शिक्षक दीपक कुमार मुंडा कहते हैं कि यहां कक्षा में बच्चों को एक साथ सभी विषयों को बेहद कुशलता से सिखाया जाता है। राजकीय मध्य विद्यालय ओबर के जर्नादन प्रसाद स्वांसी कहते हैं कि वह यहां के अध्यापन कार्य को देख बेहद खुश हैं। वह यहां के अध्यापन पद्धति को सीख अपने यहां के बच्चों के पठन-पाठन से जुड़ी समस्याओं को हल करने की कोशिश करेंगे।

यह एक अच्छा प्रयोग है। मैंने और विभाग के प्रधान सचिव ने वहां जाकर बच्चों को दी जा रही शिक्षण पद्धति को देखा जो काफी प्रभावित करने वाला लगा। काफी बेहतर प्रयोग है। पायलट प्रोजेक्ट के तहत नवागढ़ पंचायत के दस स्कूलों में इसे लागू करने का निर्णय लिया गया है। अगर यह सफल होता है तो पूरे प्रदेश में इसे लागू किया जाएगा। –उमाशंकर सिंह, राज्य परियोजना निदेशक, झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद।

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