नई दिल्ली, Tata Sons के मानद चेयरमैन रतन टाटा ने सायरस मिस्त्री पर नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट टिब्यूनल (NCLAT) के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उन्होंने मिस्त्री को टाटा संस का चेयमैन बहाल करने के एनसीएलएटी के फैसले को रद्द करने की अपील करते हुए कहा कि टिब्यूनल का फैसला गलत, अतार्किक और मामले से जुदा है। अपनी याचिका में टाटा ने कहा कि मिस्त्री के फैसलों से टाटा संस का नाम खराब हुआ और वे कंपनी के निदेशक बोर्ड का भरोसा पूरी तरह खो चुके थे। इसी मामले में गुरुवार को Tata Sons ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर एनसीएलएटी के फैसले को रद्द करने की गुहार लगाई थी।
अपनी याचिका में टाटा ने Mistry के नेतृत्व पर गंभीर सवाल उठाते हुए खुलकर टाटा संस का बचाव किया। याचिका में रतन टाटा ने कहा कि मिस्त्री ने टाटा संस के निदेशक बोर्ड के सदस्यों की शक्तियां अपने हाथों में ले ली थीं और ‘टाटा ब्रांड’ की छवि खराब कर रहे थे। टाटा संस का चेयरमैन बन जाने के बाद भी मिस्त्री खुद को अपने पारिवारिक कारोबार से दूर करने के इच्छुक नहीं दिख रहे थे, जबकि उनके चयन के साथ यह अनिवार्य शर्त की थी उन्हें पारिवारिक कारोबार से अलग होना होगा।
रतन टाटा ने कहा कि मिस्त्री ने सारी शक्तियां अपने हाथों में ले ली थीं। इसके कारण निदेशक मंडल के सदस्य टाटा समूह की ऐसी कंपनियों के परिचालन के मामलों में अलग-थलग महसूस कर रहे थे, जहां कंपनी ने बड़ी पूंजी का निवेश किया था। रतन टाटा ने जापान की कंपनी Docomo के साथ टाटा समूह के विफल संयुक्त कारोबार का उदाहरण देते हुए कहा कि इस मामले को मिस्त्री ने जिस तरह से संभाला, उससे टाटा समूह की प्रतिष्ठा पर आंच आई।
देश के शीर्ष उद्यमियों में एक रतन टाटा ने एनसीएलएटी के फैसले को गलत बताते हुए कहा कि प्राधिकरण ने फैसला सुनाते हुए टाटा संस को दो समूहों द्वारा संचालित कंपनी मान लिया। मिस्त्री को Tata Sons का कार्यकारी चेयरमैन पूरी तरह से पेशेवर तरीके से चुना गया था, टाटा संस में 18.4 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाली कंपनी के प्रतिनिधि के तौर पर नहीं। उन्होंने याचिका में कहा कि एनसीएलएटी ने गलत तरीके से यह मान लिया कि शपूरजी पालोनजी ग्रुप का कोई व्यक्ति किसी वैधानिक अधिकार के तहत टाटा संस का निदेशक बन जाता है।
यह गलत और टाटा संस के संविधान के प्रतिकूल है। टाटा संस का संविधान शपूरजी पालोनजी ग्रुप समेत सभी शेयरधारकों के लिए बाध्यकारी है। रतन टाटा ने कहा कि एनसीएलएटी के फैसले में उनके और मिस्त्री के बीच 550 ईमेल का जिक्र किया गया है। ये ईमेल मानद चेयरमैन और तत्कालीन चेयरमैन सायरस मिस्त्री के बीच के हैं, अदालत में आए व्यक्तियों के बीच के नहीं हैं। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और निराशाजनक है कि एनसीएलएटी ने बिना सबूत उनके खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणियां कीं, जबकि उन्होंने टाटा संस और टाटा ग्रुप कंपनियों को ग्लोबल कंपनियों की श्रेणी में लाने के लिए अपनी आधी से अधिक उम्र लगा दी है।