कोटा के सरकारी अस्पताल में 60% उपकरण खराब, 6 साल से 900 से ज्यादा नवजातों की मौत हो रही, फिर भी हालात नहीं सुधरे

कोटा. शहर के सबसे बड़े जेके लोन सरकारी अस्पताल में नवजात बच्चों की मौत का आंकड़ा पिछले 35 दिनों में 107 पहुंच गया। जब यहां हो रही नवजातों की मौतों का मामला गरमाया तो अस्पताल के शिशु औषध विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अशोक बैरवा नेकोटा के गवर्मेंट मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल को चिट्‌ठी लिखी। यह चिट्‌ठी भास्कर के पास मौजूद है। इस चिट्‌ठी में विभागाध्यक्ष ने लिखा कि अस्पताल के ज्यादातर उपकरण सही हैं और किसी भी बच्चे की मौत संसाधनों की कमी की वजह से नहीं हुई है। हालांकि, इस दावे के विपरीत अपनी ही चिट्‌ठी में उन्होंने यह भी बताया कि अस्पताल के 533 में से 320 यानी 60% उपकरण खराब हैं।

इस अस्पताल की यह स्थिति है कि यहां मीडिया के लोगों की पाबंदी है। कोई भी अफसर-डॉक्टर बात करने को तैयार नहीं है। भास्कर की पड़ताल में यह सामने आया कि 25 दिसंबर को अस्पताल में 10 बच्चों की मौत का मामला उजागर होने पर विभागाध्यक्ष ने 27 दिसंबर को यह पत्र लिखा। उन्होंने यह भी दावा किया कि जेके लोन अस्पताल का एनआईसीयू जयपुर के एसएमएस मेडिकल कॉलेज के अस्पताल के एनआईसीयू से तीन पायदान ऊपर है। बच्चों की मौत पर इस चिट्‌ठी में यह उदाहरण भी दिया गया कि पिछले दिनों जिन 7 बच्चों की मौत हुई, उन्होंने अस्पताल में भर्ती होने के 24 से 48 घंटे के अंदर दम तोड़ा। चिट्‌ठी में लिखा है, ”यह भर्ती के समय की उनकी गंभीरता की ओर इशारा करता है।”

हर साल 900 से ज्यादा बच्चों की मौत
इस चिट्‌ठी के पॉइंट नंबर 6 में यह दावा किया गया कि अस्पताल में ज्यादातर उपकरण सही हैं। जबकि हर साल अस्पताल में 900 से ज्यादा बच्चों की मौत हुई।

वर्ष भर्ती मौत डेथ परसेंट
2014 15719 1198 7.62
2015 17569 1260 7.17
2016 17892 1193 6.66
2017 17216 1027 5.96
2018 16436 1005 6.11
2019 17137 963 5.61

533 में से 320 उपकरण खराब
चिट्‌ठी यह खुलासा करती है कि जेके लोन अस्पताल में उपकरणों की संख्या 533 है। इनमें 320 उपकरण खराब हैं, जबकि 213 चालू हालत में हैं। यानी बच्चों की यूनिट में उनके उपचार में काम आने वाले 60% उपकरण 27 दिसंबर की स्थिति तक खराब पड़े थे। चिट्‌ठी कहती है कि अस्पताल की चाइल्ड केयर यूनिट में 111 इंफ्यूजन पंप में से 81 खराब हैं। महज 31 चालू हालत में हैं। 19 वेंटिलेटर में से सिर्फ 6 चालू हालत में हैं। वार्मर भी कुल 71 में से महज 27 चालू और 44 खराब पड़े हैं। फोटोथैरेपी की कुल संख्या 27 है, जिनमें 7 खराब है। क्रिटिकल स्थिति के वक्त काम आने वाले वेंटिलेटर की संख्या 19 है। 13 वेंटिलेटर खराब पड़े हैं। सिर्फ 6 चालू हालत में हैं।

केंद्र की गाइडलाइन: 12 बेड पर 10 का स्टाफ हो, जेके लोन में 24 बेड पर महज 12 का स्टाफ
कोटा संभाग के सबसे बड़े जेके लोन अस्पताल की हकीकत ये है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी गाइडलाइन के अनुसार, एनआईसीयू में 12 बेड पर 10 का स्टाफ होना चाहिए। जबकि एनआईसीयू में कुल 24 बेड पर सिर्फ 12 लोगों का ही स्टाफ है।

सीनियर डॉक्टरों की भी कमी, फिर भी इलाज में लापरवाही न होने का दावा
शिशु औषध विभाग में डॉक्टरों के कुल 12 पद स्वीकृत हैं। इनमें से केवल 7 ही डॉक्टर हैं। शिशु रोग विशेषज्ञ के प्रोफेसर और सहायक प्रोफेसर स्तर के डॉक्टर्स के 4 पद खाली पड़े हैं। इसके बावजूद विभागाध्यक्ष के लिखे पत्र में दावा किया गया था कि हॉस्पिटल के एनआईसीयू और पीआईसीयू में राउंड द क्लॉक (24 घंटे) चिकित्सकों की ड्यूटी रहती है, जो गंभीर मरीजों को लगातार देखते हैं। ऐसे में इलाज में कोई लापरवाही नहीं बरती गई। सभी मरीजों की स्थिति अति गंभीर थी।

9 महीने पहले केंद्र की टीम ने जेके लोन को दिए थे 100 में से 0 नंबर, लेकिन हालात नहीं बदले
जेके लोन अस्पताल की असलियत 9 महीने पहले उसी दौरान सामने आ गई थी, जब भारत सरकार के ‘लक्ष्य प्रोजेक्ट’ के तहत एक स्पेशल टीम ने यहां दौरा किया था। भास्कर के पास यह रिपोर्ट मौजूद है, जिसमें 3 सदस्यीय एक्सपर्ट की टीम ने ऑपरेशन थिएटर और लेबर रूम के क्वालिटी मैनेजमेंट को 100 में से 0 नंबर दिया था। आज भी अस्पताल के हालात जस के तस हैं और लगातार हो रही नवजातों की मौत का प्रमुख कारण भी यही है। टीम की निरीक्षण रिपोर्ट में क्वालिटी मैनेजमेंट के मामले में अस्पताल के ओटी और लेबर रूम काे फेल करार दिया गया था। जेके लोन के निरीक्षण के दौरान ही टीम ने साफ शब्दों में वहां मौजूद डॉक्टरों को कहा था, “क्यों जच्चा-बच्चा को संक्रमण दे रहे हो, आप तो हमारी स्कोरिंग के हिसाब से जीरो नंबर लायक हो’’।

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