नई दिल्लीः महात्मा गांधी की हत्या के करीब 70 साल बाद उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को इस मामले की फिर से जांच कराने के प्रयास पर विराम लगाते हुए कहा कि यह‘‘ निरर्थक कवायद’’ होगी. शीर्ष अदालत ने गांधी हत्याकांड की साजिश की जांच के लिए गठित कपूर आयोग के निष्कर्षों की सत्यता पर गौर करने से भी इंकार कर दिया. न्यायमूर्ति एस. ए. बोब्डे और न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव की पीठ ने कहा, ‘‘ हमें इस एसएलपी( विशेष अनुमति याचिका) में कोई दम नजर नहीं आता और इसे खारिज किया जाता है.’’
पांच पेज के आदेश में पीठ ने कहा कि इस अदालत को हर कीमत पर इस तरह के विवादित मुद्दों से सतर्क रहना चाहिए और अपने क्षेत्राधिकार को इन उद्देश्यों के लिए प्रयुक्त नहीं होने देना चाहिए. याचिका अभिनव भारत चैरिटेबल ट्रस्ट के न्यासी मुंबई के शोधार्थी पंकज फडनीस ने दायर की थी. शीर्ष अदालत ने इस हत्याकाण्ड की जांच नये सिरे से कराने के लिये दायर याचिका पर छह मार्च को सुनवाई पूरी कर ली थी. न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रखते हुए स्पष्ट किया कि वह भावनाओं से प्रभावित नहीं होगा बल्कि याचिका पर फैसला करते समय कानूनी दलीलों पर भरोसा करेगा. यह याचिका दायर करने वाले फडनीस ने इसे पूरे मामले पर पर्दा डालने की इतिहास की सबसे बड़ी घटना होने का दावा किया था.
शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मुकदमे पर फिर से सुनवाई कराने के लिये दायर याचिका अकादमिक शोध पर अधारित है और यह वर्षों पहले हुये किसी मामले को फिर से खोलने का आधार नहीं बन सकता. न्यायमूर्ति एस. ए. बोबडे और न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव की पीठ ने याचिका पर सुनवाई पूरी करते हुये कहा था कि इस पर फैसला बाद में सुनाया जायेगा.
याचिकाकर्ता ने नाथूराम गोड्से और नारायण आप्टे की दोषसिद्धि के मामले में विभिन्न अदालतों की तीन बुलेट के कथानक पर भरोसा करने पर भी सवाल उठाये थे. याचिका में कहा गया था कि इस तथ्य की जांच होनी चाहिए कि क्या वहां चौथी बुलेट भी थी जो गोड्से के अलावा किसी अन्य ने दागी थी.
शीर्ष अदालत ने इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता अमरेन्द्र शरण को न्याय मित्र नियुक्त किया था . अमरेन्द्र शरण ने कहा कि महात्मा गांधी हत्याकांड की फिर से सुनवाई की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इस मामले में फैसला अंतिम रूप प्राप्त कर चुका है और इस घटना के लिये दोषी व्यक्ति अब जीवित नहीं है.
महात्मा गांधी की30 जनवरी, 1948 को राजधानी में हिन्दू राष्ट्रवाद के हिमायती दक्षिणपंथी नाथूराम गोड्से ने काफी नजदीक से गोली मार कर हत्या कर दी थी. इस हत्याकांड में गोडसे और आप्टे को15 नवंबर, 1949 को फांसी दे दी गयी थी जबकि सबूतों के अभाव में सावरकर को संदेह का लाभ दे दिया गया था. फणनीस ने उसकी याचिका खारिज करने के बंबई उच्च न्यायालय के छह जून, 2016 के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी.