खाड़ी देशों में कोरोना के चलते भारतीय, पाकिस्तानी मजदूर बेरोजगार हुए, सऊदी और यूएई की कई कंपनियों का कर्मचारियों को सैलरी देने से इनकार

भारत में लॉकडाउन से ज्यादा परेशानी दिहाड़ी मजदूरों को हो रही है। इसी तरह खाड़ी देशों में काम कर रहे भारतीय, पाकिस्तानी, नेपाली, बांग्लादेशी मूल के लोग भी बेहद ही खराब दौर से गुजर रहे हैं। वहां काम करने वाले मजदूरों के पास न तो पैसे हैं और न ही पर्याप्त खाना। साथ ही वे ट्रैवल बैन के कारण अपने देश भी वापस नहीं लौट पा रहे हैं।

सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी की वर्ल्ड फैक्टबुक के मुताबिक, सऊदी अरब की कुल आबादी में एक तिहाई विदेशी हैं। यानी बहरीन और ओमान की आधी आबादी के बराबर ये लोग हैं। भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल जैसे देशों से आए लाखों लोग खाड़ी देशों के कारखानों में छोटे-मोटे काम करते हैं। सऊदी अरब और यूएई की कई कंपनियों ने विदेशी मजदूरों को घर पर बैठने का आदेश देकर सैलरी देने से मना कर दिया है।

कोरोनावायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित प्रवासी
सऊदी अरब के स्वास्थ्य मंत्रालय ने 5 अप्रैल को बताया है कि उनके देश में आधे से ज्यादा कोविड-19 के मामले विदेशियों के कारण फैले हैं। यहां विदेशों से आए 4 हजार से ज्यादा लोग कोरोनावायरस से संक्रमित हैं। यहां तक की कुवैत की एक एक्ट्रेस ने टीवी पर कहा कि विदेशियों को रेगिस्तान में फेंक देना चाहिए।

सऊदी के राजा किंग सलमान ने बीते महीने कोविड 19 का इलाज कराने की घोषणा की है। सलमान ने कहा है कि यहां देश के नागरिकों के साथ ही विदेशियों का इलाज भी होगा। हालांकि, सरकार के 240 करोड़ डॉलर का राहत पैकेज प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले नागरिकों पर ही लागू होगा।
संयुक्त अरब अमीरात ने एक नया रेग्युलेशन जारी किया है। इसके तहत कंपनियों को यह आजादी दी गई है कि वे चाहें तो गैर नागरिक कर्मचारियों को पेड और अनपेड लीव पर भेज सकते हैं। इस नए नियम के तहत ही कंपनियां गैर नागरिक कर्मचारियों का भत्ता पूरी तरह से भी काट सकती हैं।
संक्रमण के डर के बीच काम कर रहे मजदूर

खाड़ी देशों की सरकारों ने गैर जरूरी व्यापारों को बंद कर घर में रहने के सख्त आदेश दिए हैं। लेकिन निर्माण, तेल और गैस जैसे कई बिजनेस चल रहे हैं। इन सेक्टर्स में प्रवासी ज्यादा काम करते हैं। यहां पर कई मजदूर कैंपों में रहते हैं। एक कैंप में इनकी संख्या 10 तक होती है।
खाड़ी शोधकर्ता हीबा जायादीन के मुताबिक, अगर यह वायरस कैंप में मिला तो यह जंगल की आग की तरह फैलेगा। कतर में कर्मचारियों की मदद के लिए सरकार ने 80 करोड़ डॉलर की व्यवस्था की है। हालांकि कर्मचारियों का कहना है कि इस तरह की पॉलिसी लागू नहीं होती।
कतर में काम करने वाले केन्या के तेल कर्मी ने बताया कि वो 60 लोगों की भीड़ से भरी बस में सफर कर काम पर जाता है। शिकायत करने के बाद कंपनी ने यात्री कम कर 30 कर दिए। वो अब भी एक कमरे में तीन अन्य लोगों के साथ रहता है, जहां 450 लोगों के लिए केवल 6 बाथरूम हैं। कंपनी में उसे खाना मिलता है, लेकिन एक हॉल में भीड़ बैठकर खाना खाती है। यहां सोशल डिस्टेंसिंग जैसा कुछ नहीं है, लोगों को भगवान बचा रहा है।
जेद्दाह के एक कमरे के अपार्टमेंट में 7 लोगों के साथ फंसे मिस्र के मोहम्मद अल सईद बताते हैं कि नौकरी गंवाने के बाद उन्हें कोई भी देखने नहीं आया। मुझे कोरोना का डर नहीं, हम भूख से मर जाएंगे, इसका डर है। खास बात है कि खाड़ी देशों में यूनियन और किसी भी तरह के कर्मचारी संगठन बनाने पर प्रतिबंध है।
सऊदी अरब के एक रेस्टोरेंट में काम करने वाले क्रूज बताते हैं कि उन्हें 16 अन्य कर्मचारियों के साथ काम बंद करने के लिए कहा गया है। उन्हें बताया गया कि काम नहीं तो सैलरी भी नहीं मिलेगी। हालात यह हैं कि लोगों को उनकी आखिरी सैलरी भी नहीं दी गई है। अब तक फूड अलाउंस भी उन तक नहीं पहुंचा है।
ओमान में काम करने वाले पाकिस्तान के इस्लामुद्दी इकबाल ने बाताया कि वो चार और लोगों के साथ एक कमरे में महीनों से फंसा हुआ है। इकबाल ने बताया कि यहां पुलिस सख्त है, इसलिए हम बाहर भी नहीं जा सकते हैं। सप्लाई कम होने के कारण हमने खाना भी कम कर दिया है। घर में काम करने वाली मेड्स के पास भी डोमेस्टिक अब्यूज झेलने के अलावा कोई चारा नहीं है।

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