ऐसा पहली बार होगा जब घर पर ही पढ़ी जाएगी नमाज, चांद दिखने पर 24 या 25 मई को मनेगी ईद,हज के निरस्त होने की भी आशंका
आज से रमजान महीने की शुरुआत हो गई है। कोरोना संक्रमण के कारण जारी लॉकडाउन में मुस्लिम पहली बार तरावीह की नमाज घर में ही अदा करेंगे। तरावीह रमजान में पढ़ी जाने वाली खास नमाज को कहते हैं। सऊदी अरब सरकार ने मक्का-मदीना बंद कर रखा है। इस कारण वहां उमराह के लिए भी लोग नहीं जा सकेंगे। जून-जुलाई में हज के निरस्त होने की भी आशंका है।
25 अप्रैल यानी आज से एक महीने तक रोजे रखकर पांच वक्त की नमाज व तरावीह घर पर ही पढ़ी जाएंगी। लॉकडाउन व सोशल डिस्टेंसिंग के कारण मसजिदों में नमाज पढ़ने पर रोक लगी है। इस महीने रोजेदार करीब 15 घंटे भूखे-प्यासे रहकर इबादत करेंगे। रमजान के खास दिन शब-ए-कद्र 20 मई को और रमजान का अलविदा जुमा 22 मई को रहेगा। चांद दिखने पर ईद-उल-फितर 24 या 25 मई को मनाया जाएगा।
तीस दिन तक अदा की जाएगी तरावीह की नमाज
हर मुसलमान को दिन में 5 बार नमाज पढ़ने का नियम है, लेकिन रमजान में 6 बार नमाज पढ़ी जाती है। छठी नमाज रात में होती है, इसे ही तरावीह कहा जाता है। इस नमाज में हर दिन थोड़ा-थोड़ा कर के पूरी कुरान पढ़ी जाती है। रमजान में मुस्लिमों के द्वारा फितरा और जकात अपनी हैसियत के मुताबिक देना होता है। ये एक तरह का दान होता है।
सार्वजनिक जगहों पर नमाज और इफ्तार नहीं
अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने अपील कि है कि मस्जिदों और सार्वजनिक जगहों पर नमाज और इफ्तार का आयोजन नहीं करें। घरों में ही नमाज पढ़ें। उन्होंने कहा कि हमें इस महीने खुदा से दुआ करनी चाहिए कि हमारे मुल्क और पूरी दुनिया को कोराना से निजात मिले और इंसानियत की रक्षा हो सके।
घर में रहकर ही करें इबादत
जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने देशभर के मुस्लिम समुदाय से अपील की है कि सभी लोग घर पर ही नमाज पढ़ें। उन्होंने कहा इस बात का ख्याल रखा जाना चाहिए कि एक साथ तीन या चार से अधिक लोग तरावीह नहीं पढ़ें क्योंकि महामारी को देखते हुए ज्यादा लोगों का इकट्ठा होना समाज और परिवार के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
रोजे रखने के कायदे
रोजे का खास कायदा यह है कि सूरज निकलने से पहले सहरी कर के रोजा रखा जाता है। जबकि सूरज डूबने के बाद इफ्तार होता है। जो लोग रोजा रखते हैं वो सहरी और इफ्तार के बीच कुछ भी नहीं खा-पी सकते।
रोजे का मतलब सिर्फ अल्लाह के नाम पर भूखे-प्यासे रहना ही नहीं है। इस दौरान आंख, कान और जीभ का भी रोजा रखा जाता है। इसका मतलब ये है कि कुछ बुरा न देखें, न बुरा सुनें और न ही बुरा बोलें।
रोजे के दौरान मन में बुरे विचार या शारीरिक संबंधों के बारे में सोचने की भी मनाही होती है। शारीरिक संबंध बनाने से रोजा टूट जाता है।
रोजा रखने वाले को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि दांत में फंसा हुआ खाना जानबूझकर न निगलें। नहीं तो रोजा टूट जाता है।
इस्लाम में कहा गया है कि रोजे की हिफाजत जुबान से करनी चाहिए। इसलिए किसी की बुराई नहीं करनी और किसी का दिल न दुखे इसलिए सोच-समझकर बोलना चाहिए।