हाथरस के मामले में आईपीएस एसोसिएशन पुलिस अधिकारियों पर हुई कार्रवाई से नाराज है. एसोसिएशन के सूत्रों की मानें तो एकतरफा कार्रवाई सिर्फ पुलिस वालों पर की गई है जबकि जिम्मेदारी पूरे प्रशासन पर तय होनी चाहिए.
एसोसिएशन का कहना है कि जब एसपी पर कार्रवाई हो सकती है तो डीएम पर क्यों नहीं? अगर कोई लापरवाही हुई है तो अकेले पुलिस महकमा कैसे जिम्मेदार है? जबकि आदेश प्रशासनिक होते हैं और पुलिस महकमा उसे लागू करवाता है.
डीजीपी और होम सेक्रेट्री जब मौके पर गए थे तो डीजीपी हितेश अवस्थी ने यह बात कही थी कि डीएम के आदेश थे. कुल मिलाकर हाथरस मामले ने आईएएस और आईपीएस एसोसिएशन के बीच दरार पैदा कर दी है.
बता दें कि हाथरस मामले में एसपी, डीएसपी पर गाज गिरी थी. दोनों को सस्पेंड कर दिया गया था. इसके अलावा, आदेश दिया गया था कि सभी का नारको पॉलीग्राफ टेस्ट भी कराया जाएगा. इसमें पीड़िता का परिवार भी शामिल है. हालांकि पीड़िता के परिवार ने नार्को टेस्ट का विरोध किया है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्राथमिक जांच रिपोर्ट के आधार पर मौजूदा एसपी, डीएसपी, इंस्पेक्टर और कुछ अन्य के खिलाफ सस्पेंशन की कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे. एसआईटी की रिपोर्ट में हाथरस के पुलिस अधीक्षक विक्रांत वीर पर लापरवाही का आरोप लगा था.
सवालों के घेरे में डीएम
वहीं हाथरस कांड में जिलाधिकारी प्रवीण कुमार भी सवालों के घेरे में हैं. पीड़िता के परिवार ने डीएम पर धमकाने और दबाव डालने का आरोप लगाया है. पीड़िता के भाई का कहना था कि हमने कौन सा जुर्म किया है जो हमारे साथ इतनी ज्यादा बदतमीजी हो रही है. इतनी ज्यादा बदसलूकी हमारे साथ क्यों हो रही है? उन्होंने डीएम को हटाए जाने की भी मांग की है.
न्यायिक जांच की मांग
बहरहाल, हाथरस कांड की जांच की जिम्मेदारी अब सीबीआई करेगी. हालांकि पीड़िता के परिवार का कहना है कि वो न्यायिक जांच चाहते हैं. पीड़िता के भाई ने कहा, ‘हम सीबीआई नहीं बल्कि न्यायिक जांच चाहते हैं. हम चाहत हैं कि सुप्रीम कोर्ट के जज की निगरानी में जांच हो.’ पीड़िता के भाई का कहना था कि हमारे सवालों के जवाब नहीं मिले हैं. जांच आप जिससे चाहें उससे करा लें. सीबीआई की जांच भी अच्छी है. लेकिन हम चाह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट के जज की निगरानी में जांच हो. जो भी जांच करे अच्छे से करे.