नई दिल्ली । ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित मां का इलाज करा रहे विधि छात्र ने अस्पताल द्वारा महंगी दर पर दवा देने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। शीर्ष अदालत में दायर याचिका में ऐसे सभी अस्पतालों और वहां मौजूद दवा दुकानों पर रोक लगाने की मांग की गई है, जो मरीजों पर पास से दवा खरीदने के लिए दबाव डालते हैं। जस्टिस एसए बोबडे और जस्टिस एल नागेश्वर राव की पीठ याचिका पर विचार के लिए तैयार हो गई है।
सुनवाई के समय मौजूद अधिवक्ता विजयपाल डालमिया और उनके बेटे सिद्धार्थ डालमिया ने कहा, पूरे देश के निजी अस्पतालों में वहां मौजूद दवा दुकानों से दवाइयां और उपकरण खरीदने के लिए दबाव डाला जाता है। सिद्धार्थ ने बताया कि एक साल पहले मां के कैंसर के इलाज के दौरान उन्हें इस बात का अनुभव हुआ। कीमोथेरैपी के दौरान हर 21 दिन में लगने वाला इंजेक्शन उन्हें अस्पताल के भीतर की दुकान से 61,132 रुपये का खरीदना पड़ा। जबकि वही इंजेक्शन खुले बाजार में महज 50,000 रुपये में उपलब्ध था। इतना ही नहीं एक साथ चार इंजेक्शन लेने पर पांचवां इंजेक्शन मुफ्त देने की भी निर्माता कंपनी ने स्कीम चला रखी थी। बावजूद इसके अस्पताल कर्मियों के दबाव के चलते उन्हें वह इंजेक्शन लगातार 61,132 रुपये का ही खरीदना पड़ा। तब एहसास हुआ कि निजी अस्पताल किस कदर मरीजों को लूट रहे हैं।
अस्पतालों का यह रुख मानवता, नैतिकता और नागरिक के अधिकार का खुला उल्लंघन है। याचिका में केंद्र और प्रदेश सरकारों से भी अस्पतालों की इस तरह की अंधेरगर्दी पर तत्काल रोक लगाने की मांग की गई है। याचिकाकर्ता सिद्धार्थ ने बताया कि उनकी मां के इलाज पर अभी तक 15 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं, पूरे इलाज में यह व्यय बढ़कर 30 लाख रुपये होने का अनुमान है। इतना महंगा इलाज आम भारतीय नहीं वहन कर सकता है। यहां तक कि उच्च मध्यम वर्गीय परिवार के लिए भी यह इलाज बहुत मुश्किल है।