फतेहपुर। न्यूज वाणी इस्लाम धर्म मे रमजान के महीने को उत्पन्न पवित्र माना जाता है। माह-ए रमजान हमे अपने भीतर के गुणों और अच्छाइयों को परखने व उन्हें निखराने का अवसर देता है। जब हम रोजा उपवास रखकर अच्छाइयों की राह पर चल देते हैं तो अल्लाह ताला हमसे खुश होता है और शैतान कैद कर दिये जाते हैं। काजी शहर मौलाना कारी फरीदउद्दीन कादरी ने कहा कि इस महीने को अल्लाह ताला ने तीन चरणों में बांटा है। जिसमें अल्लाह ताला बंदे को रिज्क, उम्र, इल्म, सेहत, ईमान व कारोबार आदि मे रहमत नजिल करता है जिसकी वजह से बंदा एक खुशहाल जिन्दगी गुजरता है। दूसरा चरण मगफरत का है जिसमे बंदे को हुक्म है कि वह बंदा परिवार व पूर्ववजों की मगफेरत की दुआकर गुनाहों से तौबा करें इससे अल्लाह ताला उसकी मगफरत फरमाता है। तीसरा चरण जहन्नम से निजात यानी नर्क से मौझ का होता है। इसमें बंदे को चाहिए कि वह रब से जन्नत मांगे ओर जहन्नम से छुटकारा हासिल करें। काजी शहर श्री कादरी ने कहा कि रोजा रखने का मतलब भूखा, प्यासा रहना ही नही है ये मनुष्य के अंतस मे अच्छाइयों और सत्भावनाओं को जगाने की प्रक्रिया है। रोजे के दौरान अपनी इन्द्रयों को वश मे रखना बहुत जरूरी है। इस दौरान बुरी बातों की तरफ जाना तो दूर उनके बारे मे सोंचना भी गुनाह माना जाता है। रोजे के दौरान बूरा कहने बूरा देखने और बूरा करने की हि मनाई नही बलिक बुरा सोंचने झूठ बोलने किसी को तकलीफ पहुंचाने पीठ पीछे बुराई करने की भी मनाई है। उन्होनें बताया रमजानुल मुबारक में हर नेकी का सवाब और महीनों से बड़ा दिया जाता है। हर नेकी के बदले उसका सवाब 70 गुना अधिक मिलता है। रोजा वह इबादत है जिससे बंदे का खुदा से रिश्ता कायम होता है। लिहाजा मुस्लिम समाज के लोगों को चाहिए कि इस माह मुबारक की कर्द करे और ज्यादा से ज्यादा नेकियों वाले काम करे। बुराइयों वाले काम से अपने आप को बचास ताकि इस माहे मुबारक महीने मे गुनाह न हो सके। कुछ परेशानियों व मुसीबत रोजा, नमाज तरावीह मे पेश आए उसको सब्र के साथ बरदाश्त करे। पैगम्बरे इस्लाम ने रमजान के महीने को सब्र का महीना बताया है और सब्र का सवाब जन्नत है।