टूटते ख्वाब गिरता हौसला कैसा भारत चाहते है युवा: रियाजुल्ला खान

न्यूज वाणी ब्यूरो
लखीमपुर/खीरी। भारत में सब कुछ ठीक-ठाक है, गुलाबी-गुलाबी है, बढ़िया दिखता है, लेकिन सिर्फ तब अगर हम शीर्षासन करें, उलटे होकर देखें वरना तो यही समझना मुश्किल है कि ठीक करना कहां से शुरू करें। स्वास्थ्य, परिवहन, रोजगार, गवर्नेंस, कहीं भी ऐसा कुछ नहीं है जिस पर हम गर्व कर सकें। भ्रष्ट नेता, असंवेदनशील नौकरशाही, अक्षम कार्यकारी, नकारा संसद, महंगा न्याय, कायर बुद्धिजीवी, पूर्वाग्रहगस्त मीडिया और भक्तों या चमचों में बंटे अधिकांश नागरिक। यह सूची अंतहीन है। कहना मुश्किल है कि हम भारतीय अपने नेताओं से और खुद से क्या चाहते हैं?हम अपने देश को भविष्य में कैसा बनते देखना चाहते हैं। नेतागण सिर्फ तभी सुनते हैं जब उन्हें लगे कि फरियादी किसी वोट बैंक का हिस्सा है। शासन-प्रशासन में जनता की कोई भागीदारी नहीं है। परिणाम यह है कि चुनाव के समय तक मतदाता इतना खीझा हुआ होता है कि वह तत्कालीन सरकार के भ्रष्टाचार और निकम्मेपन के खिलाफ वोट देता है। मतदान के समय एंटी-इन्कंबेंसी का यही कारण है। हम अपनी मर्जी से अपने जनप्रतिनिधि चुनते हैं लेकिन दलबदल कानून और पार्टी ह्विप से बंधे जनप्रतिनिधि अपनी मर्जी से वोट नहीं दे सकते, कानून बनवा नहीं सकते, रुकवा नहीं सकते, बदल नहीं सकते। नौकरशाही इतनी ताकतवर है कि मंत्रियों तक को उनकी चिरौरी करनी पड़ती है। छोटे-बड़े हर काम के लिए लोग सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रह जाते हैं। जान-पहचान न हो तो सरकारी कर्मचारियों को भी अपना काम करवाने के लिए रिश्वत देनी पड़ती है। कहा जाता है कि भगवान की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता, लेकिन भारतवर्ष का सच यह है कि यहां रिश्वत दिये बिना पत्ता भी नहीं हिलता। पुलिस हमारी रक्षक नहीं है। एक आम आदमी पुलिस से सिर्फ डरता है। हम भरसक कोशिश करते हैं कि पुलिस, पटवारी और अदालतों से बचे रहें। हम गर्व से कहते हैं कि भारत एक युवा देश है जहां युवाओं की संख्या सबसे ज्यादा है। लेकिन क्या हम इसे समग्रता में देख पा रहे हैं? जब हम युवा वर्ग की बात करते हैं तो युवा वर्ग के साथ उसके सपने खुद-ब-खुद जुड़ जाते हैं। युवा वर्ग के साथ आज सबसे बड़ी समस्या रोजगार है। पढ़े-लिखे युवाओं में इतनी हताशा है कि चपरासी के पद के लिए एमए, एमकॉम और एमएससी ही नहीं, इंजीनियर तक भी लाइन में लग जाते हैं? आखिर इस हताशा का कारण क्या है? आज हमें सोचना होगा कि हम कैसा भारत चाहते हैं? क्या हम चपरासियों-क्लर्कों का देश बनना चाहते हैं? क्या हम नशे और अपराध में डूबे बेरोजगार युवाओं का देश बनना चाहते हैं? क्या हम सिर्फ राजनीतिक तिकड़मबाजियों और जुमलों का देश बनना चाहते हैं? क्या हम विकास के नाम पर धर्म के नाम,दल के नाम पर भीड़तंत्र होना चाहते हैं? क्या हम स्वार्थी राजनीतिक नेताओं का वोट बैंक बने रहना चाहते हैं? आज आवश्यकता इस बात की है कि हमारे देश में प्रयोगधर्मी वातावरण बनने, बच्चों को प्रयोग करने और असफल होने की इजाजत हो, असफलता को दाग मानने के बजाए सफलता की सीढ़ी माना जाए। असफलता को सम्मान दिया जाए, वरना असफलता से हम इतना डर जाएंगे कि सफलता के लिए प्रयत्न ही बंद कर देंगे। यह कोई राजनीति नहीं है, यह देश की समस्या है और हमें मिलकर सोचना होगा कि हम अपनी शिक्षा व्यवस्था में ऐसे क्या सुधार करें कि समाज प्रयोगधर्मी हो सके, हमारे बच्चों का भविष्य सुनहरा बन सके और देश विकसित हो सके। यह आज ही जरूरी है, अभी ही जरूरी है। बच्चे सजग होंगे तो वे सजग नागरिक बन पायेंगे। नागरिक सजग होंगे तो नेता शिक्षित योग्य होंगे तभी देश का विकास होगा। आखिर हम यही तो चाहते हैं कि भारत एक विकसित देश हो और शासन व्यवस्था में नागरिकों की सुनवाई हो, तो आइये, इस दिशा में सोचना शुरू करें। योग्य और शिक्षित ,विजनरी,नेता चुने न कि धर्मांध,कट्टरता में किसी भी अयोग्य अशिक्षित को नेता मान ले।

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