लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के सातवें और अंतिम चरण की वोटिंग के लिए सोमवार शाम प्रचार थम जाएगा. 11 मार्च को रिजल्ट आने के बाद ही पता चल पाएगा कि यूपी की जनता किसे सरकार चलाने का मौका देगी. पूरे चुनाव प्रचार में सपा-कांग्रेस, बीजेपी और बीएसपी के नेताओं ने विकास, सामाजिक संतुलन, सुरक्षा जैसे मुद्दों के अलावा व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप कर एक-दूसरे को घेरने की कोशिश करते रहे. इन सबके बीच एक सवाल राजनीतिक दलों के अलावा वोटरों के बीच भी चर्चा का विषय रहा, बीजेपी को अगर जनता का समर्थन मिलता है तो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कौन बैठेगा? चुनाव कार्यक्रम की घोषणा से पहले उठे इस सवाल का जवाब वोटिंग के आखिरी दौर में भी नहीं मिल पाया है. राजनीति के जानकार अपने आंकलन से नाम सुझाते रहे तो, बीजेपी के नेता इस सवाल को संसदीय समिति को टालते रहे. ऐसे में हम एक बार फिर से बीजेपी के उन नामों पर आपका ध्यान दिला रहे हैं जो बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं.
केशव प्रसाद मौर्य: बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सहित पार्टी के बड़े नेता इंटरव्यू और भाषणों में कहते रहे हैं कि उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री साफ-सुथरी छवि वाला और उत्तर प्रदेश से जुड़ाव रखने वाला होगा. इस बात पर केशव प्रसाद मौर्य फिट बैठते हैं. इतना ही नहीं, अगर बीजेपी सत्ता में आती है तो स्वभाविक है कि इसका काफी श्रेय केशव प्रसाद को जाएगा, जैसा कि महाराष्ट्र चुनाव में प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते देवेन्द्र फडणवीस को मिला था. केशव पार्टी के पुराने कार्यकर्ता हैं और उनका संघ से भी जुड़ाव रहा है.
झारखंड, महाराष्ट्र, हरियाणा में सरप्राइज चेहरे को मुख्यमंत्री चुनने के ट्रेंड पर नजर डालें तो भी उत्तर प्रदेश में केशव प्रसाद मौर्य बीजेपी के पहले विकल्प हो सकते हैं. इसके अलावा इस बार के चुनाव प्रचार में बीजेपी का ज्यादातर फोकस ओबीसी वोटरों पर दिखा. उस लिहाज से भी ओबीसी बिरादरी से आने वाले केशव विकल्प बन सकते हैं. यहां गौर करने वाली बात यह है यूपी में बीजेपी के स्वर्णिम काल के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के समय में बीजेपी गैर-यादव ओबीसी और ईबीसी के लिए एकमात्र विकल्प के रूप में उभरी थी. बीजेपी की चुनाव प्रचार में भी यही ट्रेंड देखने को मिला, जिससे केशव की दावेदारी मजबूत होती है.
सरप्राइज चेहरों में मनोज सिन्हा विकल्प: अमित शाह और नरेंद्र मोदी की जोड़ी अक्सर बड़ी जिम्मेदारी के लिए नए चेहरे का चुनाव करते रहे हैं. इनके फैसलों से जनता अचंभे में पड़ती रही है. उदाहरण के लिए केशव प्रसाद मौर्य को यूपी प्रदेश का अध्यक्ष बनाना, पड़ोसी राज्य बिहार में नित्यानंद राय को और झारखंड में ताला मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष चुनना जैसे फैसले चौंकाने वाले हैं. ठीक इसी तरह यूपी के मुख्यमंत्री पद के लिए मनोज सिन्हा चौंकाने वाले नाम हो सकते हैं. गृहमंत्री राजनाथ सिंह के करीबी मनोज सिन्हा उस पूर्वांचल से आते हैं, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सबसे ज्यादा फोकस रहता है. पीएम बतौर रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा के काम की तारीफ भी कर चुके हैं.
योगी आदित्यनाथ: वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति में उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ बीजेपी के एकलौते फायर ब्रांड नेता हैं. विधानसभा चुनाव से पहले तक आदित्यनाथ पूर्वांचल तक ही सिमित थे, लेकिन इस बार पार्टी ने उनसे पश्चिमी यूपी में भी जमकर प्रचार कराया है. बीजेपी के स्टार प्रचारक के रूप में उन्होंने सबसे ज्यादा रैलियां की हैं. उन्होंने हर भाषण में वही शब्द कहे, जिससे वोटों का धुर्व्रीकरण हो सके. अगर बीजेपी जीतती है तो इसका काफी श्रेय आदित्यनाथ को भी जाएगा और वे मुख्यमंत्री के दावेदार हो सकते हैं.
दिनेश शर्मा: लखनऊ के राजनीतिक गलियारों में बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के लिए दिनेश शर्मा के नाम की भी चर्चा है. लखनऊ के मेयर व बीजेपी नेता दिनेश शर्मा यूपी के उन गिने चुने नेताओं में से हैं, जिन्हें पार्टी के अच्छे दिनों में सबसे ज्यादा इनाम मिला. सरकार बनने के तुरंत बाद पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की कुर्सी मिली. अमित शाह उन्हें कितना पसंद करते हैं इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि उन्हें पीएम मोदी के ही राज्य गुजरात का पार्टी प्रभारी बनाया गया. नवंबर 2014 में उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय सदस्यता प्रभारी बनाया गया. इस दौरान उन्होंने बीजेपी को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी का दर्जा दिलाया. वे कल्याण सिंह और कलराज मिश्र के भी खास हैं. साल 2006 में अटल बिहारी बाजपेयी ने अपना आखिरी भाषण भी दिनेश शर्मा को चुनाव जिताने के लिए दिया था. 2014 में नामांकन का पर्चा खरीदने के बाद राजनाथ सिंह के लिए वह पीछे हुए.
ये दो पुराने चेहरे भी हो सकते हैं मोदी-शाह की पसंद: अगर बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व मुख्यमंत्री पद के लिए पुराने चेहरे पर दांव लगाने की सोचेगी तो उनके सामने केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह और उमा भारती का नाम सबसे आगे होगा. हालांकि इसकी कम ही संभावना है. इसकी मुख्य वजह यह है वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति में राजनाथ सिंह शायद ही राज्य की राजनीति में लौटना चाहेंगे. वहीं पार्टी में नई जेरनेशन के कार्यकर्ता शायद ही उमा भारती को स्वीकार पाएं.