अभिभावकों को नहीं भा रहे सरकारी स्कूल, आंकड़े कर रहे तस्दीक

देहरादून सूबे के सबसे बड़े महकमे शिक्षा का सालाना 62 अरब का बजट, नीति नियंताओं व माननीयों में नए सरकारी विद्यालयों को खोलने और उनके उच्चीकरण की होड़। गैर सरकारी व निजी विद्यालयों के शिक्षकों की तुलना में सरकारी शिक्षकों को मोटी तनख्वाह और सुगम में तैनाती की जद्दोजहद। इस सबके बावजूद सरकारी शिक्षा गुणवत्ता की कसौटी पर खरा नहीं उतर रही है। उत्तराखंड बोर्ड के दसवीं और बारहवीं के रिजल्ट की गुणवत्ता में सुधार इतना धीमा है कि सरकारी विद्यालयों के सामने अभिभावकों के भरोसे पर खरा उतरने की चुनौती खड़ी हो गई है। वर्ष 2014 से 2018 तक आते-आते पांच वर्षों में दसवीं में आश्चर्यजनक ढंग से 24235 और बारहवीं में करीब साढ़े छह हजार परीक्षार्थी घटे हैं। टॉप टेन मेरिट सूची में स्थान पाने की दौड़ से सरकारी विद्यालय तकरीबन बाहर हैं।महज एक विद्यालय ने ही टॉप टेन में जगह बनाई। वहीं शिक्षकों की संख्या के मामले में सरप्लस होने के बाद भी छात्रों की मेधा को धार देने और आम छात्र को परीक्षा पास करने की चौखट तक पहुंचाने में हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर व देहरादून जैसे मैदानी जिले पर्वतीय जिलों बागेश्वर, रुद्रप्रयाग, पौड़ी, पिथौरागढ़ से पिछड़े साबित हुए हैं।  उत्तराखंड बोर्ड के दसवीं और बारहवीं के परीक्षा परिणामों ने आंकड़ों के लिहाज से कुछ राहत बंधाई है, लेकिन गुणवत्ता की पटरी पर तेजी से दौड़ने में सरकारी विद्यालयों को कामयाबी नहीं मिल पा रही है। सरकारी विद्यालयों ने सरस्वती विद्या मंदिरों और निजी विद्यालयों से प्रतिस्पर्धा में लगातार कई वर्षों से पिछड़ने का सिलसिला इस साल भी जारी रखा। ऐसे में इन विद्यालयों के सामने गिरती छात्रसंख्या को थामने की चुनौती से जूझना पड़ रहा है। राज्य बनने के सत्रह वर्षों में प्राथमिक विद्यालयों में छात्रसंख्या तकरीबन 50 फीसद तक घट चुकी है। उच्च प्राथमिक विद्यालयों में छात्रसंख्या में तेजी से कमी आई है। अब यह समस्या माध्यमिक विद्यालयों के लिए भी नासूर बनती जा रही है। ये हाल तब है, जब नए और उच्चीकृत सरकारी विद्यालयों की संख्या कई गुना बढ़ी है। बारहवीं में वर्ष 2014 में 1,36,571 परीक्षार्थियों ने परीक्षा दी, जबकि वर्ष 2018 तक यह संख्या 1,30,094 तक सिमट गई। इसीतरह दसवीं में वर्ष 2014 में 170401 परीक्षार्थी थे, जो वर्ष 2018 में घटकर 1,46,166 रह गए। बोर्ड परीक्षा परिणाम पर्वतीय जिलों के लिए सुकूनदेह रहे हैं। शिक्षकों की कमी से जूझ रहे इन विद्यालयों ने दसवीं और बारहवीं दोनों परीक्षाओं में पासिंग प्रतिशत और प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण रहने के मामले में मैदानी जिलों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया। पर्वतीय जिला बागेश्वर दसवीं और बारहवीं दोनों परीक्षा में अव्वल तो रुद्रप्रयाग दूसरे स्थान पर रहा। वहीं हरिद्वार जिला दोनों ही परीक्षाओं में फिसड्डी रहा है।

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