पांच लाख के टेंडर में चला कलम का जादू*– राजेश यादव

अपराधी को संत बताकर इमेज सुधारने का उठा ठेका*

 

*फ़तेहपुर । वैसे तो सही को सही और गलत को गलत कहने व लिखने की क्षमता विशुद्ध कलमकारों की हमेशा से रही है मगर पत्रकारिता में ब्यवसायीकरण के दौर ने उसे निचले स्तर पर पहुंचा दिया है। कहीं नेता की गुलामी करते, कहीं अधिकारियों की चाटुकारिता करते तो कहीं माफियाओ के तलवे चाटकर उन्हें संत और मासूम बताने वाले आसानी से जगह जगह आपको देखने को मिल जाएंगे। यह वह दौर है जब अपराधी खुलेआम अपराध करके मीडिया के ठेकेदारों के केबिन में बैठता है और अपने आप को मासूम बताने व पीड़ित को ही अपराधी बताने का टेंडर दे देता है। टेंडर उठते ही प्रायोजित कलमकारों का जादू सिर चढ़कर बोलने लगता है वह एक हिस्ट्रीशीटर को जनसेवक/धर्मात्मा बताकर समाज को भ्रमित करने का कुचक्र शुरू कर देते हैं। लेकिन यह वही जनता है जो सरकारें बनाती है और गिराती भी है इसे आसानी से बेवकूफ नही बनाया जा सकता। जनता स्वयं यह जानती है कि टेंडर किस ठेकेदार द्वारा लिया गया है और जिले की प्रत्येक बड़ी घटना को घटना न मानकर हमेशा मौके के रूप में भुनाने का प्रयास किन ठेकेदारों द्वारा किया जाता है। इस दौर में जनता को स्वयं सही गलत का निर्णय करना होगा कि कौन समाजसेवी है या माफिया.
*हालांकि लोकतंत्र में सभी को अपनी बात कहने व विचार रखने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है जरूरी नहीं कि जिस खबर को मैने जिस नजरिये से देखा उसे सभी उसी नजरिये से देखें। बस उम्मीद यह है कि सबकी कलम स्वतंत्र व निष्पक्ष हो तभी एक स्वस्थ लोकतंत्र का निर्माण हो सकेगा। और हां जब तक टेंडर ब्यवस्था जनपद की पत्रकारिता से नहीं समाप्त होगी तब तक आपको/जनता को सजग रहकर ठेकेदारों को पहचानकर उनकी रिपोर्ट से सावधान रहना होगा अन्यथा आप भी माफियाओ को संत समझकर उनके मायाजाल में फंस जाएंगे।*

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