शिवलिंग पर कलमा खुदा होने के बावजूद भी कम नहीं हुई लोगों की आस्था, पुजारी बोले- यहां हर मुराद पूरी होती है, पहले मुस्लिम भी आते थे

 

 उत्तर प्रदेश सरकार बदलने के साथ सड़कों, इमारतों और शहरों तक के नाम बदलने की परंपरा से अच्छी तरह परिचित है। इलाहाबाद यहां प्रयागराज बन जाता है और अकबरपुर, अंबेडकरनगर बनता है.फिर अकबरपुर पर लौट आता है। विचारधारा के हिसाब से नाम तो सरकारें बदल सकती हैं, मगर गोरखपुर से 30 किलोमीटर दूर खिजनी कस्बे के गांव सरया तिवारी के शिवमंदिर का इतिहास तो यहां शिवलिंग पर ही अमिट है। कोई ऐतिहासिक प्रमाण तो मौजूद नहीं मगर गांव वाले बताते हैं कि महमूद गजनवी ने यहां ऐतिहासिक शिवलिंग पर कलमा खुदवा दिया था।

शिवलिंग पर दो पंक्तियां उर्दू में खुदी हुई हैं। पहली पंक्ति में लिखा है- ‘या अल्लाह’.और दूसरी पंक्ति में लिखा है ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’। हालांकि, लोगों को यहां पूजा करने से रोकने की गजनवी की साजिश काम नहीं आई। कलमा खुदा होने के बावजूद यहां लोगों की आस्था कम नहीं हुई। आज भी यहां विधिवत पूजा होती है।

नीलकंठ महादेव शिव मंदिर के पुजारी अतुल त्रिपाठी कहते हैं कि मंदिर हजारों साल पुराना है। मान्यता है कि यहां शिवलिंग जमीन से प्रकट हुआ था। महमूद गजनवी ने अपने एक आक्रमण के दौरान इस शिवमंदिर की ख्याति सुनी और फौज समेत यहां आ धमका। उसने मंदिर तो गिरा दिया मगर शिवलिंग को नहीं तोड़ पाया। उसकी फौज ने तमाम कोशिशें की शिवलिंग को नहीं उखाड़ पाए। बताते हैं कि उसके सैनिक जितनी जमीन खोदते, शिवलिंग उतने ही गहरे तक मिलता जाता।

पुजारी अतुल त्रिपाठी कहते हैं कि गजनवी के साथ आए मुस्लिम धर्मगुरुओं ने ही उसे आगाह किया था कि वह शिवलिंग को छोड़ दे। वह शिवलिंग को नष्ट नहीं कर पाएगा। हारकर गजनवी ने शिवलिंग पर ही कलमा खुदवा दिया ताकि हिंदू यहां पूजा न कर पाएं।

शिवलिंग पर कलमा खुदा होने के बावजूद यहां लोगों की आस्था नहीं कम हुई। रोज भक्त यहां जल और दूध से अभिषेक करने पहुंचते हैं। सावन मास और नागपंचमी पर खासी भीड़ इकट्‌ठी हो जाती है। पुजारी कहते हैं कि शिवलिंग से कलमा मिटाने का भी कभी प्रयास नहीं किया गया। वे कहते हैं कि यह शिवलिंग खास है। यहां मंदिर की छत नहीं बनाई जा सकती। जब भी प्रयास किया गया छत गिर गई।

 
स्थानीय लोगों का कहना है कि मंदिर में किसी भी उत्सव में मेला नहीं लगता है। मान्यता है कि मेला लगाने वाले की अकाल मृत्यु हो जाती है। हालांकि, सावन के महीने में यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। शिवलिंग का शृंगार होता है और अभिषेक भी। गांव वालों का कहना है कि इतिहास भले कितना ही क्रूर रहा हो आज यह नीलकंठ महादेव आस्था का अटल प्रतीक बनकर खड़ा है।

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