कुकुरमुत्ते की तरह फैले प्राइवेट पैथोलाजी

फतेहपुर। न्यूज़ वाणी नफीस जाफरी इन दिनों शहर सहित जनपद के ग्रामीण आंचलों व कस्बों में कुकुरमुत्ते की तरह पैथोलाजी संचालित की जा रही हैं इन पैथोलाजी के मानक को बला-ए-ताक पर रखा जाता है। इतना ही नहीं पैथोलाजियों में गैर डिग्री प्राप्त लोगों को सीरम लेने के नाम पर बैठाला जाता है। साथ ही यदि रिपोर्ट में सबंधित चिकित्सक का नाम गलत होने के बाद यदि संचालकों से कहा जाता है तो मरीजों व तीमारदारों को इनके कोपभाजन का शिकार भी बनना पड़ता हैं बुलंद हौसलों के चलते दिनों दिन पैथोलाजियों की बाढ़ से जनपद में देखने की मिलती हैं उच्चाधिकारियों द्वारा किशोर ठोस कदम न उठाए जाने के चलते पैथोलाजी की संख्याओं में इजाफा होता जा रहा है। बताते चले कि शहर सहित समुचे जनपद में इन दिनों बड़े पैमाने पर जगह-जगह पैथोलाजी का संचालन किया जा रहा है। कुकुरमुत्ते की तरह फैली इन पैथोलाजियों में यदि विभाग कड़ा रूख अख्तियार करें तो शायद ही कोई पैथोलाजी मानक पर खरी उतरे। आलम यह है कि पैथोलाजी संचालक जिला चिकित्सालय सहित विभित्र निजी चिकित्सालयों में तैनात चिकित्सकों के साथ सेंटिग गेंटिंग का खेल करते है। सूत्र बताते है कि पैथोलाजी संचालाकों द्वारा चिकित्सकों को एक मोटी रकम अदा की जाती है। इतना ही नही मानकविहीन पैथोलजियों व उनमें सीरम के नाम पर बैठाले गए गैर डिग्री पर लोगों द्वारा भेजे गए मरीज का सीरम लेने के बाद उनकी रिपोर्ट बनाई जाती हैं प्रायः पैथोलाजी संचालकों द्वारा गलत रिपोर्ट ही रोगियों को थमाई  जाती है। इन संचालकों द्वारा जगह-जगह बनाए गए कलेक्शन सेंटरों में गैर डिग्री प्राप्त व्यक्ति बैठा देखा जा सकता हैं जब कि नियंत मरीजों का लिया जाने वाला सीरम (खून) केवल टेक्नीशियन ही निकाल सकता है। आलम यह है कि मरीजों को दी जाने वाली रिपोर्ट में यदि भेजने वाले संबंधित चिकित्सक का नाम अंकित नहीं होता तो चिकित्सक द्वारा अपने नाम वाली रिपोर्ट लाने के संचालक के पास मरीज को पुनः भेजा जाता है। जिसके बाद मात्र चिकित्सक का नाम सही कर दी गई दूसरी रिपोर्ट में पहली रिपोर्ट से भित्रपाएं देखी जा सकती है। संचालकों द्वारा किए जा रहे इस खेल से आने वाली गलत रिपोर्ट के बाद चिकित्सक द्वारा रिपोर्ट देख संबंधित बीमारियों की दवाएं शुरू कर दी जाती है। जिससे मरीजों की जान का खतरा भी बना रहता है। यदि कोई मरीज दोनों रिपोर्टो की भित्रताओं के बारे में पैथोलाजी संचालकों से कहता है तो संचालक व उसके गुर्गे मरीज के साथ गाली गलौच से लेकर मारपीट तक करने को उतारू हो जाते है। इस ओर स्वास्थ महकमें के आलाधिकारियों द्वारा कोई भी ठोस कदम न उठाए जाने से इन पैथोलाजी संचालकों के हौसले काफी बुलंद है। विश्रसनीय सूत्रों की माने तो मुख्य चिकित्साधिकारी कार्यालय में तैनात एक बाबू से सेंटिग गेटिंग के चलते दिन-प्रतिदिन पैथालाजिया बढ़ती ही चली जा रही हैं बाबू के रहमों करम पर चलने वाली इन पैथोलाजियों के उपर स्वास्थ महकमें के अधिकारी भी खासे महरबान रहते है। या यूं कहने कि मरीजों में वसूली गई मोटी रकम का एक बड़ा हिस्सा अधिकारियों के जेबों में भी जाता हैं सूत्र बताते हैं कि इन संचालकों द्वारा गरीब व असाहयों की जांचों के नाम पर वसूली गई मोटी रकम का तीस प्रतिशत हिस्सा भेजने वाले संबधित चिकित्सक के खाते में जाता है।

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