सारी खेती गोरू चरि लेत हैं, केऊ नेता पूछय वाला नही न समस्या-सभी स्थानी मुद्दों पर भारी है चुनाव में आवारा पशुओं की समस्या
खागा/फतेहपुर। विधानसभा चुनाव में सभी दल अपना प्रचार युद्ध स्तर पर कर रहे हैं। सभी प्रत्याशी मतदाताओं का समर्थन बटोरने की पूरी कोशिश में लगे हुए हैं। सभी दल अपने-अपने संकल्प पत्र और घोषणा पत्र को फोकस करते हुए मतदाताओं से संवाद कर रहे हैं। सभी स्थानीय मुद्दों पर छुट्टा जानवरों की समस्या भारी है। क्षेत्र में भ्रमण के दौरान जनता की नब्ज टटोलने की कोशिश की गई। चाय व पान की दुकान में किसानों और खेतिहर आवारा पशुओं के आतंक के बारे में बातचीत करते हुए देखने को मिला कि ग्रामीणों में आवारा पशुओं की समस्या को लेकर काफी विरोधाभास है। शिक्षकों और कर्मचारियों के बीच में पुरानी पेंशन का मामला खासी चर्चा में है। पुरानी पेंशन के मामले में कौन क्या बयान दे रहा है यह खबर लोग बड़ी गंभीरता से पढ़ रहे हैं। रायपुर भसरौल, चातर का डेरा, कुमारन डेरा, गढ़ा, थुरियानी, पहाड़पुर, जालंधरपुर, रामपुर आदि जगहों पर लोग काफी चर्चा करते हुए देखे गए बदलती राजनीति और दल बदल से किसी भी दल के कार्यकर्ता खुश नहीं दिखाई दिए। रायपुर भसरौल के महेश निषाद अपनी व्यथा सुनाते हुए बोले सारी खेती गोरू चर लेत अहै केऊ नेता पूछय वाला नहीं न, सब ही नेता ललका व पियरका रंग का अंगौछा, केसरिया गमछा लैके आपन जेब भरय का आय गा अहैं। भैया ई सब आपस में एक साथ बैठ के चाय पियत हैं। गरीब जनता का मूरख समझत हवैं। जनता अब सब जान गई है। जिनका जहां वोट देते का है वह वहीं देई। सभी विकास खंड के गांवों में आवारा पशुओं के आतंक से किसान परेशान हैं। आवारा पशु से खेत की फसल चरने से रोकने के लिए खेत के मालिक दिन-रात खेत में ही चारपाई लगाकर रखवाली कर रहे हैं। आवारा पशुओं से फसल को नष्ट होने से बचाने के लिए कड़ाके की ठंड में खेतों में सोने को मजबूर हुए हैं। आवारा पशुओं के आतंक से छोटे किसान खेतिहर मजदूर खून के आंसू रो रहे हैं। आवारा पशुओं का झुंड दिन रात सड़क को खेतों व गांवों में टहल रहा है रायपुर भसरौल के एक गांव में खेतों में गायों को चरते हुए देखा गया किसान ने बताया कि आवारा पशुओं की समस्या बहुत बड़ी है। पशुओं के चरने से फसलें बर्बाद हो रही हैं। किसान अपने घर की रोजी रोटी नहीं चला पा रहा है। आवारा पशुओं को कृषक अपनी फसल में से भगाते हैं तो वहीं दूसरे कृषक की फसल में चरने के लिए जाते हैं। कृषक दिनभर छुट्टा जानवरों को इसी तरह भगाते रहते हैं और दिन बीत जाता है। इसके चलते कृषक कोई रोजगार नहीं कर पा रहे हैं।