दो साल तक के कोरोना काल ने आम जनजीवन के साथ ही शिक्षा जगत की तस्वीर भी काफी हद तक बदल दी है। स्कूल खुले तो छात्रों को एक अलग अनुभव मिला। इससे पहले छात्रों ने स्कूलों में सैनिटाइजर थर्मल स्कैनर का न तो कभी नाम सुना था और न कभी देखा था। सामाजिक दूरी और मास्क जरूरी का पाठ भी छात्रों ने पहली बार सीखा। स्कूल खुले आठ माह से ज्यादा का समय हो चुका है और सरकार ने पाबंदियां भी हटा ली हैं लेकिन छात्रों व स्कूलों ने कोविड प्रोटोकॉल को अपने व्यवहार में शामिल कर लिया है। स्कूलों में पाठ्यक्रम की पढ़ाई से पहले कोविड प्रोटोकॉल की शिक्षा दी जा रही है।
कोरोना से पहले बच्चे बेधड़क मुख्य गेट से प्रवेश कर अपनी कक्षा में बैठ जाते थे। लेकिन लॉकडाउन के बाद स्कूल खुले तो सैनिटाइजेशन व थर्मल स्कैनिंग के बाद ही प्रवेश देने का सिलसिला शुरू हुआ जो अब नियम बन चुका है। झुंड की जगह कतार बनाकर प्रवेश करने की आदत डालने व खड़े होने के लिए चिन्ह बनाने आदि नियमों से बच्चों में अनुशासन का भाव पैदा हुआ। उन्होंने सोशल डिस्टेंसिंग का पाठ पढ़ा। पॉयनियर मॉन्टेसरी इंटर कॉलेज, लखनऊ पब्लिक कॉलेज, सेंट जोसेफ इंटर कॉलेज जैसे तमाम स्कूलों ने सेनिटाइजर टनल की स्थापना की। अवध कॉलेजिएट जीडी गोएनका पब्लिक स्कूल डीपीएस, लखनऊ पब्लिक स्कूल जयपुरिया समेत तमाम बड़े स्कूलों ने इसके लिए सेनिटाइजर की अन्य मशीनों का भी सहारा लिया। स्कूलों ने इसे अपने जरूरी संसाधनों में शामिल कर लिया है। भले ही सरकार ने पाबंदियां हटा ली हैं लेकिन अधिकांश स्कूलों में अब भी यह प्रक्रिया अनिवार्य है। बच्चे अब अपने साथ सैनिटाइजर की छोटी शीशी साथ लेकर चलते हैं। बिना मास्क के प्रवेश करने से मना किया जाता है।
स्कूल ऐसी जगह है जहां बच्चे एकसाथ बैठकर विभिन्न तरह का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करते हैं जो किताबी पढ़ाई से ग्रहण नहीं किया जा सकता। लेकिन कोरोना ने इसमें भी बदलाव करने पर मजबूर कर दिया। बच्चों के बीच थोड़ी दूरी को तरजीह दी जाने लगी है। कक्षाओं में सीट पर बच्चों के बैठने को सीमित कर दिया गया है। यही नहीं दो छात्रों के बीच दूरी जरूरी कर दी गई है। बच्चे बात करते हैं तो मुंह पर मास्क पहने रहते हैं। यही नहीं जहां पहले लंच ब्रेक में बच्चे एकसाथ बैठकर भोजन करते थे अब वे अपनी-अपनी बेंच पर बैठकर लंच करते हैं। कोविड प्रोटोकॉल और सोशल डिस्टेंसिंग ने बच्चों के व्यवहार में बड़ा बदलाव किया है।
असेंबली से होने लगा परहेज
कोरोना ने शिक्षण संस्थानों की एक पुरानी परंपरा असेंबली पर ब्रेक लगाने का काम किया है। आठ महीने से स्कूल पूरी तरह से ऑफलाइन मोड में चल रहे हैं लेकिन यह परंपरा अब भी अधिकतर स्कूलों में दोबारा शुरू नहीं की गई। अब छात्र अपनी-अपनी कक्षा में अपने-अपने बैठने के स्थान पर खड़े होकर प्रार्थना करते हैं।
स्कूलों को कोविड प्रोटोकॉल का पालन करने के लिए अतिरिक्त संसाधन जुटाने पड़े। सैनिटाइजर मास्क थर्मल स्कैनर आदि अब अनिवार्य हैं। सरकार के निर्देश पर जब विद्यालय खुले तो इनका जमकर इस्तेमाल किया गया और अब भी किया जा रहा है। – अनिल अग्रवाल, एमडी, सेंट जोसेफ इंटर कॉलेज
लॉकडाउन खत्म हुआ तो 50 फीसदी छात्रों की उपस्थिति के साथ स्कूल खुले। सोशल डिस्टेंसिंग के साथ छात्रों को बैठाया गया। सैनिटाइजर मशीन अतिरिक्त मास्क थर्मल स्कैनिंग व पल्समीटर की व्यस्था की गई। अब यह सभी संसाधन रोजमर्रा की जरूरत में शामिल हो गए हैं।
सरकार के निर्देश पर जब स्कूल खुले तो उससे पहले सारे अनिवार्य संसाधन जैसे सैनिटाइजर मशीन, थर्मल स्कैनर आदि जुटाए गए। इनका इस्तेमाल कर ही प्रवेश दिया जा रहा है। सोशल डिस्टेंसिंग मास्क आदि का कड़ाई से पालन कराया जा रहा है। हर छात्र के पास सैनिटाइजर होता है।