पवित्र व इबादत गुजारी का महीना है रमजान: कारी फरीद

 

फतेहपुर। रमजान का महीना मुसलमानों का पवित्र व इबादत का महीना होता है। रमजान अरबी भाषा के शब्द रम्ज से बना है। जिसका अर्थ है आग। उर्दू में इसे रोजा कहते हैं। जिस तरह आग की लौ से सोने को शुद्ध चमकीला बनाया जाता है इसी तरह इंसान को इस महीने रोजे रखकर उसकी तमाम बुराईयों को निकाल कर पाक इंसान बनाया जाता है। ताकि वह समाज में एक नेक इंसान बन सके और दुनिया में कामयाब रहे।
काजी शहर मौलाना कारी फरीद उद्दीन कादरी ने कहा कि यह महीना इबादत गुजारी का महीना माना गया है। जिसमें मुसलमान रोजा रखते हैं। दिन रात अल्लाह की पवित्र इबादत में पाबंद रहते हैं। रमजान माह में तीन भाग हैं। पहला रहमत, दूसरा मगफिरत व आखरी बक्शिश का होता है। रमजान के पवित्र माह में अल्लाह अपने बंदों को कामयाबी एवं भाईचारा को अपने जीवन में लाने के लिए रमजान के महीने को तीन भागो में वितरित किया है। रमजान महीने के पहले दस दिन रहमत, दूसरे दस दिन मगफिरत तथा अंतिम दस दिन दोजख से छुटकारा पाने के लिए बनाए गए हैं। यह महीना आते ही दुनिया भर के मुसलमान अल्लाह के सामने उसके हुक्म के मुताबिक नेकी कमाने के लिए रोजा नमाज और कुरआन पढ़ते हैं। अल्लाह ने इस महीने की इबादत का सवाब सत्तर गुना ज्यादा रखा है। काजी शहर श्री कादरी ने कहा कि इस्लामी कैलेंडर के बारह महीनो में एक माह रमजानुल मुबारक का होता है। इस माह में तीस रोजे रखे जाते हैं। जो परहेज व इबादत से दिल को साफ करने का एक जरिया है। इस महीने की फजीलत का महत्व इसलिए ज्यादा है कि इसी माह में कुरआन पाक हजरत मोहम्मद साहब पर नाजिल हुआ और शबेकदर की फजीलत वाली रात भी इसी महीने में होती है। जो हजारों रातों से अफजल बताई गई है। धार्मिक पुस्तकों व हदीसों में रमजान के महीने को रहमत व बरकत वाला महीना कहा जाता है। हजरत मोहम्मद साहब खुद रहमत थे उन्होने समाज को सही रास्ता दिखाया इसलिए उनकी उम्मत को एक माह के रोजे रखने का हुक्म हुआ और इसी माह में खास नमाज बीस रकात तरावीह भी पढ़ी जाती है। उन्होने कहा कि रमजान का चांद निकलते ही अल्लाह तआला शैतान व उसकी जमाअत को कैद कर देता है। ताकि वह बंदों को नेक काम करने से रोक न सके। हदीसों में आया है कि रोजेदार की इफ्तार के वक्त की दुआ अल्लाह तआला कबूल फरमाता है और बंदों के लिए इबादत आसान कर देता है। साथ ही अपने बंदों पर रहमत की बारिश करता है। रमजान के खत्म होते ही ईद का चांद देखकर पूरी दुनिया के मुसलमान नमाज ईदुल फितर अदा करके एक-दूसरे को बधाई देकर खुषी का इजहार करते हैं। देष व समाज की उन्नति के लिए मांग करते हैं तथा खुषियां मनाते हैं व लोगों की खुषियों में शरीक होते हैं।

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