मां ने छोड़ा, ताने सहे मगर हिम्मत नहीं हारी, सरकारी टीचर बनी

 

बाड़मेर के छोटे से गांव रावतसर की बेटी हीरों (25) सरकारी टीचर बन गई है। रीट एग्जाम के लेवल फर्स्ट की मैरिट लिस्ट में हीरों ने 134 (एससी वर्ग) नंबर हासिल किए। लेकिन उसका ये सफर आसान नहीं था। जन्म से 2 महीने पहले ही उसके पिता की मौत हो गई। जन्म देने के एक साल बाद मां भी उसे छोड़कर घर से चली गई थी।

दादा-दादी ने ही खेत में मजदूरी कर पोती को पाला। दादा-दादी को मेहनत करता देखकर हीरों ने भी ठान लिया था कि उसे जिंदगी में कुछ बनकर दिखाना है। पढ़ाई के साथ वह दादा-दादी की खेती में और बकरी चराने में मदद भी करती रही।

हीरों का कहना है, ‘मैं भगवान से यहीं प्रार्थना करती हूं कि मुझे हर जन्म में ऐसे ही दादा-दादी मिलें। आज मैं जिस भी मुकाम पर पहुंची हूं, वो इनकी बदौलत है। इन्होंने दिन-रात मेहनत करके मुझे पढ़ाया। खुद भूखे रहकर मुझे खाना खिलाया। समाज के लोग खूब ताने मारते थे कि बेटी है, बाहर भेजोगे वापस नहीं आएगी। बहुत सुनना पड़ता था। बावजूद इसके मैंने और मेरे दादा-दादी ने हिम्मत नहीं हारी। इन सब तानों को इग्नोर करके मैं हमेशा लक्ष्य हासिल करने का प्रयास करती रहती थी।’

हीरों के पिता कालूराम का देहांत 1996 में हो गया था। उस समय हीरों मां के गर्भ में थी। अपने पिता को कभी नहीं देखा। 1 साल बाद ही जन्म देने वाली मां भी घर छोड़ कर चली गई।

सफलता पहले प्रयास में
विपरीत परिस्थितियों के बावजूद दादा भूराराम ने हौंसला बढ़ाया। बुढ़ापे में खेती व पशुपालन कर पोती को पढ़ाया। बारहवीं तक की पढ़ाई हीरों ने रावतसर की सरकारी स्कूल से की। इसके बाद बीएसटीसी डाइट जैसलमेर से की। मेहनत व जज्बे के कारण पहले ही प्रयास में कामयाबी हासिल की।

घर से 6 किलोमीटर पैदल जाकर की 12वीं
हीरों का कहना है कि मेरी प्रारंभिक शिक्षा गांव में हुई है। गांव की स्कूल दूर होने के कारण 6 किलोमीटर तक पैदल जाना पड़ता था। 2019 में मेरे बीएसटीसी (बेसिक स्कूल टीचिंग सर्टिफिकेट) में नंबर आ गया। मुझे बीएसटीसी कॉलेज जैसलमेर मिला था। 2 साल वहां रहकर पढ़ाई कई। दादा-दादी ने अपने हौसले और हिम्मत से मेरी पढ़ाई कभी रुकने नहीं दी।

अब सलेक्शन होने के बाद पूरे गांव में खुशी का माहौल है। गांव के लोग हीरों व उनके दादा-दादी को बधाई दे रहे हैं। गांव के सरपंच टिकूराम गोदारा, प्रिसिंपल अणदाराम कड़वासरा, टीचर धनाराम मेघवाल, सुरजीतसिंह, पंचायत समिति सदस्य प्रतिनिधि गेना राम मेघवाल, सरपंच प्रतिनिधि करण गोदारा जैसे लोगे घर पहुंच रहे हैं। मुंह मीठा कराकर बधाई दे रहे हैं।

कांस्टेबल में भी हुई थी सलेक्ट
हीरों का कहना है कि मेरा सपना था कि मैं टीचर बनूं। इसके लिए मैंने बीच में कांस्टेबल भर्ती की परीक्षा दी थी। सिलेक्ट भी हो गई, लेकिन पुलिस में नहीं गई। मेरा लक्ष्य टीचर बनना था। इसलिए मैंने अपनी तैयारी जारी रखी। कोरोनाकाल में गांव रहकर ही मैंने पढाई की थी। साथ में बकरियां चराती थी। दादा-दादी के साथ खेत में काम करती थी।

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