इंदौर की महू उपजेल में 2007 में हुए विष्णु उस्ताद हत्याकांड मामले में जिला कोर्ट ने सोमवार को दो आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। शहर के बड़े इंटक नेता और पहलवान विष्णु उस्ताद काशिद की हत्या में गैंगस्टर जीतू ठाकुर महू जेल में बंद था। यहां हम आपको बता रहे हैं कैसे फल बेचने वाला साधारण सा अपराधी गैंगस्टर बना और अपने गॉडफादर का बीच चौराहे पर मर्डर कर दिया।
इंदौर में एक साधारण सा फल बेचने वाला जीतू ठाकुर लड़ाई-झगड़े जैसे छोटे अपराधों में लिप्त रहता था। एक बार जेल से निकल कर 22 साल के जीतू ठाकुर ने विष्णु उस्ताद का हाथ थाम लिया। अपराध की दुनिया में नाम कमाने के लिए विष्णु उस्ताद के साथ रहने लगा। जीतू कम समय में उस्ताद की गैंग का खास गुर्गा बन गया। यह बात गैंग के कई अन्य लोगों को पसंद नहीं थी।
जीतू ने ली हत्या की सुपारी
एरोड्रम क्षेत्र में प्लॉट के विवाद में अर्जुन त्यागी ने 4 जून को नान गुरु की हत्या कर दी। 15 दिन बाद उसने सरेंडर कर दिया। नान गुरु के बेटे जितेंद्र अवस्थी की जीतू से दोस्ती थी। अवस्थी ने जीतू से कहा कि, पिता की मौत का बदला लेना है। जीतू तैयार हो गया। अवस्थी ने कोर्ट का खर्च उठाने और लाखों रुपए देने की बात कही। जीतू ने सेंट्रल जेल में बंद शूटर अर्जुन त्यागी की हत्या कर दी। उसने पांच गोलियां दागी थीं। जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया।
इंदौर में था विष्णु उस्ताद दबदबा
इंदौर में 2000 के दशक में विष्णु उस्ताद काशिद शहर के बड़े इंटक नेता और पहलवान थे। शहर में शिवाजी जयंती पर यात्रा निकालने की शुरुआत विष्णु उस्ताद ने की। इसके साथ ही अहिल्या माता की पालकी यात्रा और पंढरपुर तक यात्रा की शुरुआत भी विष्णु उस्ताद ने ही की थी। वे मजदूरों के मसीहा कहे जाते थे। शहर में इंटक के प्रभावी नेता थे। परिवार में तीन बच्चे थे, जिसमें बड़ा बेटा युवराज, मझली बेटी और छोटा बेटा अजय काशिद था। विष्णु उस्ताद की हत्या के समय युवराज की उम्र 15 साल थी। विष्णु उस्ताद की गैंग में सबसे अधिक मराठा लोग थे।
क्या हुआ कि जीतू ने गैंग छोड़ी
10 साल तक जीतू ठाकुर विष्णु उस्ताद की गैंग में था, लेकिन उसके तेज व्यवहार के कारण उसे गैंग के सदस्य पसंद नहीं करते थे। जीतू और विष्णु उस्ताद में मन मुटाव रहने लगा। जिसके बाद जीतू ने गैंग छोड़ दी।
दूसरी गैंग से मिलाया हाथ
गैंग से अलग होने के बाद जीतू को यह डर सता रहा था कि विष्णु उस्ताद उसकी हत्या कर देंगे। इसलिए उसने तुरंत सतीश भाऊ की गैंग जॉइन कर ली। यहां कद बढ़ा तो जीतू ने सतीश भाऊ और पप्पू डकैत के साथ मिलकर विष्णु उस्ताद की हत्या की प्लानिंग की। उसने सतीश भाऊ को इस बात के लिए राजी कर लिया कि यदि विष्णु की हत्या कर दी जाती है, तो उनकी गैंग का नाम हो जाएगा। इसके बाद शहर के सभी बड़े मामले वह सेटल कर सकते हैं। इसके चलते उन्होंने विष्णु की हत्या की प्लानिंग की।
बीच सड़क पर विष्णु उस्ताद की हत्या
12 फरवरी 2002 को शाम 7:30 बजे रामनगर में समाज की मीटिंग में शामिल होने के लिए विष्णु उस्ताद अपनी गैंग के कुछ सदस्यों के साथ पहुंचे। वहां से मीटिंग खत्म करके लौट रहे थे। तभी अनूप टॉकीज के पास बाइक पर चल रहे विष्णु उस्ताद को आकर एक मारुति वैन ने टक्कर मारी। जिससे विष्णु उस्ताद नीचे गिर गए। तभी 12 बदमाशों ने उन पर लगातार चाकू से वार किए। सूचना मिलते ही परिवार और गैंग के सदस्य तुरंत अनूप टॉकीज पहुंचे। विष्णु उस्ताद को उठाकर एमआइजी थाने ले गए, लेकिन पुलिस ने उन्हें बाइक पर ही एमवाय अस्पताल ले जाने को कहा। रास्ते में ही विष्णु उस्ताद की मौत हो गई।
एक है सतीश भाऊ, जिस पर हत्या, आर्म्स एक्ट और अपहरण के 13 से ज्यादा मामले दर्ज थे। वर्तमान में सतीश भाऊ शहर में शराब सिंडिकेट में हुए गोलीकांड में जेल में बंद है। भाऊ के साथ 55 से ज्यादा बदमाशों की गैंग थी। कुछ सालों से सिर्फ शराब के अहातों और बड़ी शराब की दुकानों से हफ्ता लेते हैं। दूसरी गैंग थी शाकिर चाचा की। जबकि तीसरा है, युवराज उस्ताद जो बंसी प्रेस की चाल से गैंग चलाता है। इन्होंने पहले इलाके बांट कर सुलह भी की थी। मगर कई बार इन तीनों के गुर्गों में टकराव की स्थिति बनती रहती है। वर्तमान में सभी शहर के बाहर हैं। फिलहाल तीनों की गैंग शहर में सक्रिय हैं। तीनों ने इलाके बांट रखे हैं।