सरकारी नौकरियां ठुकराने वाला बैतूल का किसान, इतनी गोबर गैस बनाते हैं कि 900 घरों के चूल्हे जल जाएं, जानिए पूरी कहानी…

 

 

बैतूल में एक  जयराम गायकवाड़  3 सरकारी नौकरियों को ठुकराने वाले गायकवाड़ ने पारंपरिक खेती को छोड़कर ऑर्गेनिक फार्मिंग की ओर रुख किया। कुछ ही सालों में कमाई लाखों तक पहुंच गई। उन्होंने खेती के साथ 2 गायों से डेयरी की शुरुआत की और आज 50 से अधिक गायों के मालिक हैं। 30 एकड़ भूमि पर जैविक खेती और दुग्ध उत्पादन करने वाले इस किसान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के सीएम रहते हुए भी सम्मानित कर चुके हैं।  

54 साल के MA पास किसान जयराम बैतूल से 11 KM दूर बघोली गांव के रहने वाले हैं। उनके पास 30 एकड़ पुश्तैनी जमीन है, जिस पर उनके पिता पारंपरिक खेती किया करते थे। पढ़ाई के दौरान उन्हें CRPF में नौकरी का मौका मिला, इसके बाद आर्मी और फिर रेलवे में क्लर्क…। जयराम का मन नौकरी करने का तो हुआ, लेकिन वे अपनी माटी को छोड़ नहीं पाए। उन्होंने नौकरी छोड़कर खेती करने का निर्णय लिया। उनका एक बेटा लोकेश गायकवाड़ है जो उन्हीं की राह पर चलते हुए रीवा वेटनरी कॉलेज से ग्रेजुएशन कर रहा है।

35 लाख की सालाना आय
जयराम ने बताया कि खेती को जैविक तरीके से आधुनिक बनाने का आइडिया उन्हें कृषि विभाग के टूर प्रोग्राम और खुद की जिज्ञासा से आया। वह अपने भाइयों के साथ 30 एकड़ खेत में केमिकल्स और फर्टिलाइजर्स का बिल्कुल इस्तेमाल नहीं करते। गाय के गोबर से बनी वर्मी कंपोस्ट खाद से ही खेती करते हैं। 30 में से 9 एकड़ में तो सिर्फ गेहूं और गन्ने की खेती होती है। जैविक खेती की वजह उनका गेहूं 30 से 35 रुपए किलो बिकता है। वहीं, गुड़ की कीमत 60 रुपए किलो है। इसके अलावा वे बाकी खेत में टमाटर, बैंगन समेत अन्य फल और सब्जियां उगाते हैं।

 

ऐसे करते हैं खेती
जयराम ने खेती के साथ-साथ गोपालन को अपना जुनून बना लिया। साल 2012 में 2 गायों से गजानन डेयरी की शुरुआत की। महज 10 सालों में वह 50 से ज्यादा हाइब्रिड और देशी गाय सहित कई बछड़ों के मालिक बन गए। वे गोबर गैस के जरिए घरेलू गैस और बिजली बनाते हैं। साथ ही गोबर से वर्मी कम्पोस्ट खाद बनाकर अपनी फसलों में जान डालते हैं।

उन्होंने गायों के लिए शेड का निर्माण कुछ इस तरह से कराया है कि जानवरों का वेस्ट नालियों के जरिए सीधे शेड के पीछे बने गोबर गैस प्लांट में जमा होता है। गैस प्लांट से बचा वेस्ट आगे बने टैंकों में चला जाता है, जो वर्मी कम्पोस्ट की प्रारंभिक प्रक्रिया है। यहां से यह वेस्ट जैविक खाद के रूप में तैयार हो जाता है। यही खाद उनकी फसलों के लिए रामबाण औषधि बन जाती है। उन्होंने अपने यहां 8 लड़कों को भी रोजगार दिया है।

 
डेयरी में शंकर नस्ल की कई गायें जयराम और उनके परिवार के लिए खेती से इतर आय का बड़ा जरिया है। सुबह शाम मिलाकर 1.5 सौ लीटर से ज्यादा दूध उनकी आय का बड़ा माध्यम है। वहीं, वेस्ट से बनी जैविक खाद अतिरिक्त कमाई का जरिया है।

खेती के साथ दूध आय का बड़ा साधन
जयराम की पत्नी ने बताया कि रोज 150 लीटर दूध होता है। इससे वह मावा, पनीर, दही और घी सहित अन्य डेयरी प्रोडक्ट्स बनाते हैं। उन्हें डेयरी से 1 लाख 80 हजार की आय होती है, लेकिन खर्चा निकालकर प्रति महीने 1 लाख रुपए दूध से उनकी बचत होती है।

जयराम गोबर गैस प्लांट से ही इतनी गैस बना लेते हैं कि 900 घरों के चूल्हे जल जाएं, लेकिन सीमित संसाधनों की वजह से यह फिलहाल संभव नहीं है। गोबर गैस से वह बिजली का उत्पादन कर जनरेटर चलाते हैं। जिससे मावा मशीन चलती है। दाना बारीक करने के लिए चक्की चलाते हैं। बाकी गैस का इस्तेमाल मावा बनाने के लिए भी करते हैं। जयराम का कहना है कि उनके यहां 50 गायों से रोज 15 क्विंटल गोबर निकलता है, जिससे रोज 10 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट बनता है और महीने में 300 क्विंटल खाद तैयार करते हैं।

लोग इसी तरीके के कायल हैं
बड़े भाई पुंडलिक गायकवाड़ कहते हैं कि जयराम के नवाचारों ने उनकी खेती के तरीके को ही बदल दिया। यही वजह है कि सालों से पारंपरिक खेती करने वाले छोटे भाई के सभी कायल हैं। इसी वजह से दूसरे गांव के किसान भी उनसे जैविक खेती की राय लेने के लिए आते हैं और उनकी बातों को खेती में अपनाकर फायदा उठा रहे हैं। वहीं, किसान काश भोपते का कहना है कि उन्हें जब भी फसलों से लेकर मवेशियों तक कि कोई सलाह लेनी होती है तो वह जयराम की शरण में ही आते हैं।

 

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