47 डिग्री पारा पहुंचने से पसीना-पसीना रहे लोग – गर्मी से बचाव के प्रयास हो रहे नाकाफी – रेलवे स्टेशन सहित बस स्टाप में पानी के लिए मचती मारामारी
फतेहपुर। गर्मी का प्रकोप दिन प्रतिदिन विकराल रूप धारण करता जा रहा है। शनिवार को पारा 47 डिग्री पहुंचने से लोग पसीना-पसीना रहे। गर्मी से बचाव के प्रयास भी नाकाफी साबित हो रहे हैं। गर्मी अधिक बढ़ने से पेयजल की दरकार भी बढ़ गई है। रेलवे स्टेशन, बस स्टाप सहित अन्य सार्वजनिक स्थानों में पीने के पानी के लिए मारामारी देखी जा सकती है। उधर व्यापारी भी दोपहर के समय अपने-अपने प्रतिष्ठान बंद कर घरों को रवाना हो जाते हैं। दिन के समय मार्गाें पर सन्नाटा दिखाई दे रहा है।
वैसे तो गर्मी का मौसम है तो गर्मी पड़ना लाजिमी है, किंतु भीषण गर्मी ने सभी का मिजाज बिगाड़ दिया है। घर-घर बीमारियों ने जहां पैर पसारने शुरू कर दिए हैं। वहीं इसके प्रकोप का शिकार सबसे ज्यादा बच्चे हो रहे है। जिन्हें थोड़ी देर में गर्मी तो कूलर एवं एसी के समीप थोड़ी ही देर में ठंड का एहसास होता है। ठंडी-गर्मी का एहसास होने का कारण ही बीमारी को जन्म देता है। इस मौसम में बच्चे ज्यादातर चेचक, दिमागी बुखार, हैजा, कालरा सहित अन्य बीमारियों की चपेट में अधिक आ रहे है। वहीं गर्मी का प्रकोप ज्यों-ज्यों बढ़ रहा है उसी प्रकार से शहर ही नही पूरे जनपद में ठंडे पेय पदार्थो की दुकानें भी सजी हैं। ठंडे पेय पदार्थों में कोल्ड ड्रिंक, लस्सी, आम का जूस, गन्ने का जूस, आईसक्रीम सहित अन्य पदार्थो की बिक्री में काफी तेजी आई है। जहां गर्मी ने लोगों को अपने प्रकोप का एहसास करा दिया है। गर्मी के प्रकोप को देखते हुए लोग दिन के समय घरों में दुबक जाते हैं। जिससे रोडों पर सन्नाटा दिखाई देता है। सुबह दस बजे तक एवं शाम छह बजे के बाद बाजारों में रौनक लौटती है। गर्मी में पशुओं को समुचित व्यवस्था न होने से पशुपालकों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। दर्जनों जानवर लू की चपेट में है। अधिकांश पशु अस्पतालों में नियमित चिकित्सक तैनात नहीं है तो कुछ कम्पाउंडर के सहारे काम चल रहा है। इन हालातों में एक बड़ी दिक्कत यह भी है कि कई पशु अस्पताल बंद पड़े हैं। नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इस समय पशुओं को सबसे अधिक लू से बचाने की आवश्यकता है। लू से पशुओं का स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित होता है। बताया गया कि अगर पशु दुधारू है तो उसका दूध सूख जाएगा। गर्मी का प्रकोप केवल मानव को ही प्रभावित नही कर रहा है, अपितु उसका सबसे अधिक शिकार पशु-पक्षी हो रहे है। पड़ रही भीषण गर्मी में तालाबों से उड़ती धूल, कुओं का सूखना एवं हैण्डपंपों की समय से रिपेयरिंग न होना बड़ी वजह है।