धनबाद। दो वक्त की रोटी की कीमत वह व्यक्ति अच्छी तरह से जानता है जो भूखा रहने को अभिशप्त है। उसे यदि कोई दो वक्त की रोटी मुहैया करा दे तो वो उसके लिए ईश्वर तो नहीं, लेकिन उससे कम भी नहीं होता। भूखे और लाचार लोगों का पेट भरने के लिए कुछ युवाओं ने न सिर्फ सार्थक पहल की है, बल्कि इसे अमलीजामा भी पहनाना शुरू कर दिया है। झारखंड स्थित धनबाद के युवक सन्नी सिन्हा, नितिन मुकेश, शिव कुमार, अविनाश और उनके साथियों ने भूखे रह रहे लोगों के दर्द को समझ कर गरीबों का पेट भरने का वीणा उठाया है। जब शहर सो रहा होता है, तब भूखे पेट करवट बदल रहे लोगों की भूख मिटाने ये युवा निकलते हैं। इनका रोटी बैंक देर रात तक गरीबों को निवाला देता है। इस बैंक में रुपये-सिक्के नहीं, रोटी-चावल जुटाया जाता है। ये युवक धर्म और जाति नहीं देखते, हर दर पर दस्तक देकर भोजन लेते हैं। छह माह पहले शुरू हुई यह अनूठी पहल आज गली मुहल्लों तक पहुंच चुकी है।
इस काम में सक्रिय भूमिका निभा रहे सन्नी ने बताया कि हम 30 युवाओं की टीम ने गरीबों का दर्द बांटना अपना मकसद बनाया है। गरीबों की सबसे बड़ी पीड़ा भूख है, तो हमारा जुनून भूखों को भोजन कराना है। हर रोज हमारी टोली आठ बजे के बाद रोटी जुटाने के लिए लोगों के दरवाजे पर जाती है। रात दस बजे तक रोटी-चावल, सब्जी जुटाई जाती है। इसके बाद हम सब रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड आदि स्थानों पर जाते हैं। यहां जो गरीब भूखा मिलता है, उसे भोजन कराते हैं। हमें इसके बदले दुनिया की अनमोल नेमत ‘दुआएं’ मिलती हैं।
सन्नी ने बताया कि मैं स्वास्थ्य विभाग में नौकरी करता हूं। अविनाश भी प्राइवेट नौकरी करता है। इसी तरह रोटी बैंक के अन्य सदस्य भी कोई न कोई नौकरी या व्यापार करते हैं। नौकरी और व्यापार से हम लोगों की जीवन की गाड़ी दौड़ती है। पर, गरीबों की सेवा भी हमारेजीवन का अब हिस्सा बन चुकी है, क्योंकि इस काम में आत्मिक सुकून मिलता है। छह माह में ही 50 से अधिक नियमित दानदाता रोटी बैंक से जुड़ चुके हैं। जो रोज रोटी बैंक में रोटी-चावल, सब्जी, अचार, खीर-खिचड़ी देते हैं। इसके लिए युवाओं की टोली धनबाद के श्रमिक चौक, ऑफिसर्स कॉलोनी, मनोरम नगर, पुराना बाजार, बेकारबांध, सिटी सेंटर, हाउसिंग कॉलोनी तक की दौड़ लगाती है। रोटी बैंक के सदस्य सन्नी कहते हैं कि यह न तो सरकारी संस्था है न गैरसरकारी। यह तो कुछ लोगों की सोच है। ताकि कोई खाली पेट न सोए।