करोड़पति बेटे ने विधवा मां को घर से निकाला,फटे कपड़ों में भीख मांगने को मजबूर महिला

 

मैं सुबह के 6 बजे वृंदावन में बांके बिहारी की ओर जाने वाली सड़क पर खड़ी थी। सड़क पर तीर्थयात्रियों की संख्या कम और विधवाओं की अधिक थी। हल्के रंग की साड़ी, गले में तुलसी की माला, माथे पर चंदन का तिलक और कंधे पर झोली लटकाएं विधवा महिलाएं तेज कदमों से चली जा रहीं थीं। कुछ महिलाओं को रोककर पूछा तो पता ​चला कि 7 बजते ही भजन आश्रम के गेट बंद हो जाते हैं। उससे पहले मंदिर में दर्शन करते हुए भी जाना है, इसलिए वे जल्दी में हैं।  महिला आश्रय सदन समेत कई ​वृद्धा आश्रम पहुंची और विधवा महिलाओं से बातचीत की।

पति के दुनिया से जाते ही छिन जाते हैं अधिकार
वृंदावन के एक आश्रम में रहने वाली 65 साल की झरना सेन पश्चिम बंगाल के कोलकाता से हैं। वह एक रसूखदार परिवार से ताल्लुक रखती हैं। बेटा इंजीनियर है। झरना बताती हैं कि पति नहीं रहे तो घर पर मेरा हक भी नहीं रहा। बेटे-बहू ने गैरों से बदतर रखा। घर से एक पैसा खर्च करने की इजाजत नहीं थी। पेंशन आती थी, वो भी बंद करवा दी। जिल्लत भरी जिंदगी से तंग आकर घर छोड़ना पड़ा। इस बीच गला रुंध आता है। कुछ मिनट वो चुप रहती हैं और फिर बताना शुरू करती हैं- ‘लोगों से पूछते-पूछते कृष्ण नगरी पहुंची। 7 साल मथुरा स्टेशन पर रहीं। भीख मांगकर बमुश्किल दो वक्त का खाना नसीब हो पाता। पैर टूट गया। किसी तरह यहां आश्रम पहुंची, तब से यहीं रह रही हूं।’

करोड़पति बेटा धोखे से मां को छोड़ गया वृंदावन
दिल्ली निवासी 83 साल की सरस्वती जिंदगी का आखिरी पड़ाव वृंदावन में काट रहीं हैं। सरस्वती के दो बेटे है। गांव में अच्छी खासी प्रॉपर्टी है। दिल्ली में दो मकान और एक होटल है। सरस्वती बताती हैं कि एकरोज बेटा-बहू और नाती वृंदावन घुमाने लाए। एक आश्रम में बात कर फटे-पुराने कपड़ों के साथ यहीं छोड़ गए। मैं पीछे दौड़ी। रोई-गिड़गिड़ाई कि साथ ले चलो। वहां घर का सारा काम करूंगी। बेटा बोला- कुछ दिन रह लो मां, जल्दी लेने आऊंगा, लेकिन डेढ़ साल बीत गया। किसी ने सुध नहीं ली। गालों पर लुढ़क आए आंसुओं को पोंछती है। फिर मुस्कुराने की पुरजोर कोशिश हुए कहती हैं कि बेटा सब किस्मत का खेल है।

कई साल स्टेशन पर रही, सड़क पर भीख मांगी
90 साल की मनु घोष वृंदावन के मां धाम में रह रहीं हैं। वह कहती हैं, ’11 साल की उम्र में 40 साल के व्यक्ति से शादी हो गई। पति की मौत के बाद परिवार ने साथ छोड़ दिया। मैं कोलकाता की एक कोठी में बर्तन और कपड़े धोने का काम करने लगी, लेकिन जब उन्हें मेरे विधवा होने की जानकारी मिली तो उन्होंने काम से निकाल दिया। मैं और मेरी बेटी सड़क पर आ गए। भूख के कारण बेटी मर गई। इसके बाद मैं हमेशा के लिए वृंदावन आ गई।’

वह कहती हैं-रास्ता नहीं पता था। हाथ में पैसा नहीं था। कई-कई दिन भूखी प्यासी रही। कई साल सड़क और स्टेशन पर गुजारे। वहां भीख मांगती। अगर कोई कुछ खाने को या फिर चंद रुपए हाथ पर रख देता तो खाना खा लेती। वरना भूखे पेट ही सोना पड़ता। फिर किसी तरह वृंदावन के एक आश्रम में पहुंच गई। उस आश्रम में खाने पीने को नहीं मिलता था। भजनाश्रमों में जाकर भजन करती, जहां कुछ रुपए मिलते थे, जिनसे खाने का गुजारा हो जाता था। यहां रहते हुए 31 से 32 साल गुजर गए।

‘औरत को पति से पहले मर जाना चाहिए’
मनु कहती हैं कि एक औरत को अपने पति की मौत से पहले ही मर जाना चाहिए ताकि नरक वाली जिंदगी न देखनी पड़े। कितनी दफा मेरे मन में जान देने का ख्याल आया। अब मैं विधवाओं के साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ लोगों को मोटिवेट करती हूं।

नेपाल की विधवाओं का भी ठिकाना वृंदावन
वृंदावन में देश भर से आईं करीब 15 से 20 हजार विधवाएं रहती हैं, लेकिन इनमें अधिकांश संख्या पश्चिम बंगाल और ओडिशा से है। जब भजन कुटीर पहुंची तो वहां महिलाओं का एक समूह कीर्तन में मग्न था। उन्हीं में से एक महिला ने आंखों से ही बैठने का इशारा किया। मैं बैठ गई। वे क्या गा रहीं हैं, ध्यान से सुनने की कोशिश कर रही थी। तभी उनमें से एक दादी ने पूछा समझ आ रहा है? मैंने ना में सिर हिलाया। उन्होंने कि भजन में माखन लीला का जिक्र है। कुछ देर बाद जब भजन समाप्त हुआ, तब पता चला कि ये सभी विधवा महिलाएं नेपाल की हैं। बात करने पर पता चला कि वृंदावन नेपाल की विधवा महिलाओं का भी घर है।

दर्द की इन्तहा, फिर भी चेहरे पर उफ्फ नहीं..
इन महिलाओं ने सालों साल से सामाजिक भेदभाव का दंश झेला। वक्त की मार और अपनों की बेरुखी देखी। पेट भरने की खातिर भीख मांगनी पड़ी। भजन करतीं। भजन आश्रम में भजन करने के बदले चंद रुपये मिलते, लेकिन इसके लिए पुजारियों के हाथ-पैर जोड़ने पड़ते ताकि भजन-कीर्तन में उनका नंबर आ सके। इस सबके बावजूद मुख सिर्फ राधे-राधे का जाप करता है। शिकायत का एक लफ्ज नहीं बोलता है। वे जिंदगी में झेले हर दर्द का दोष भी अपनी किस्मत पर मढ़ देती हैं।

 

सुप्रीम कोर्ट एक फैसले ने बदली जिंदगी
सुप्रीम कोर्ट में साल 2012 वृंदावन में मौत के बाद विधवा के अंतिम संस्कार को लेकर एक याचिका दायर की गई। कोर्ट ने विधवाओं की मौत के बाद उचित अंतिम संस्कार सुनिश्चित करने का आदेश दिया। साथ ही विधवाओं की देखभाल की जिम्मेदारी सुलभ इंटरनेशनल संस्था को सौंपी। सुलभ इंटरनेशनल के विधवा प्रोजेक्ट पर काम करने वाली विनीता दीक्षित बताती हैं कि संस्था ने विधवाओं को समाज की मुख्यधारा में लाने और उनके हालात सुधारने के लिए कई प्रोग्राम शुरू किए।

विधवाओं की जिंदगी में रंग भर रही सुलभ संस्था
संस्था ने वृंदावन सरकारी व निजी आश्रमों में रहने वाली महिलाओं को राशन, कपड़े और प्रतिमाह रुपये देने शुरू किए। सड़क पर सोने और भीख मांगने को मजबूर महिलाओं को आश्रय गृह तक पहुंचाया। विधवाओं के लिए एंबुलेंस और हेल्थ सुविधाएं शुरू कीं। होली-दिवाली मनानी शुरू की। विधवाओं को प्रयागराज में कुंभ मेला और कोलकाता में दुर्गा पूजा में शामिल होने ले जाया गया। इसके अलावा, कम उम्र की विधवा महिलाओं का पुनर्विवाह कराने की पहल शुरू की।

वृंदावन में विधवाओं के लिए सरकारी व्यवस्था
साल 2014 में उत्तर प्रदेश सरकार ने विधवाओं को पेंशन देनी शुरू कर दी। महिला आश्रय सदन की संचालिका गीता दीक्षित के मुताबिक, आश्रम में रहने वाली विधवा महिलाओं को महिला कल्याण विभाग की ओर से हर महीने 1850 रुपये, 35 किलोग्राम राशन और मुफ्त आवास की व्यवस्था की गई है। साथ ही 1000 रुपये विधवा पेंशन के अलग से मिलते हैं। इसके अलावा, दान में भी बहुत सारा सामान मिलता है। यहां हफ्ते में दो बार डॉक्टर की टीम चेकअप के लिए आती है।

Leave A Reply

Your email address will not be published.