लड़की 19 की उम्र तक 5 बार बेची गई, राजस्थान-झारखंड-असम-ओडिशा की बच्चियों की दिल्ली में लगती है 2 से 25 हजार तक बोली

 

सात साल की उम्र। उसकी उम्र के कई बच्चे, टोलियों में भागते-दौड़ते, कभी खेत में छीमी खाते, कभी नदी में कूदते, पहाड़ चढ़ते और न जाने क्या-क्या अठखेलियां करते। उसे कभी याद था महुआ बीनना। बरसात के दिन भी याद हैं जब वह रुगड़ा (एक तरह का मशरूम) चुनती थी। पर कब इस कच्ची उम्र में वह दिल्ली की बड़ी इमारतों के बीच पहुंच गई, पता नहीं चला। 2000 रुपए में बेच दी गई थी। तब सात वर्ष की थी। अब 19 साल की हो गई और इन 12 सालों में पांच बार बेची गई। जैसे-गाय-बैल बेचे जाते हैं वैसे ही बेची जाती रही। अंतिम बार 25 हजार में बेची गई थी। यह कहानी है गुमला के रायडीह ब्लॉक की रहनेवाली उषा (नाम बदला हुआ) की।

दूरदराज के इलाकों की होती हैं लड़कियां

दलाल कैसे महज कुछ हजार रुपए के लिए अपनी ही कम्युनिटी की लड़कियों का सौदा करते हैं इसका पता आरपीएफ की ‘नन्हें फरिश्ते’ और ‘मेरी सहेली’ टीम के चलाए गए ऑपरेशन से चलता है। रांची रेल डिवीजन में आईपीएफ सीमा कुजुर बताती हैं कि मानव तस्कर प्राय: लड़कियों को ट्रेनों से दिल्ली ले जाते हैं। ये लड़कियां दूरदराज के इलाकों की होती हैं। इन लड़कियों के हाव-भाव से पता चल जाता है कि उन्हें मानव तस्करी के लिए ले जाया जा रहा है।

दिल्ली में मिलता डोमेस्टिक हेल्प का काम

सीमा बताती हैं कि इसी 12 जून को रांची रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 1 पर हटिया-आनंद विहार ट्रेन लगी थी। इसके जनरल कोच में एक लड़की सहमी सी बैठी थी। नन्हें फरिश्ते और मेरी सहेली टीम को शक हुआ तो लड़की से पूछताछ हुई। शुरू में उसने संकोच किया, फिर बताया कि उसे दिल्ली में नौकरानी का काम दिलाने के लिए ले जाया जा रहा है।

कमीशन में मिलते पांच हजार रुपए

उसने अपना नाम मीरा टोपनो (नाम बदला हुआ) बताया जो सिमडेगा की रहनेवाली थी। उसकी उम्र 12 साल थी। उसके साथ दो महिलाएं थीं। वो भी सिमडेगा की ही रहनेवाली थीं। मीरा को दिल्ली पहुंचाने के लिए दोनों महिलाओं बिनिता और आशा को पांच-पांच हजार रुपए मिलते। उन दोनों को पकड़ कर एंटी ह्यमून ट्रैफिकिंग यूनिट को सौंप दिया गया।

डोमेस्टिक हेल्प के लिए बेच देते हैं लड़कियां

एंटी ट्रैफिकिंग पर काम कर रही संस्था एटीएसईसी इंडिया (एक्शन एगेंस्ट ट्रैफिकिंग एंड सेक्शुअल एक्सप्लाटेशन ऑफ चिल्ड्रेन) के झारखंड को-ऑर्डिनेटर संजय मिश्रा कहते हैं पूरी दुनिया में आर्म्स और ड्रग्स की तरह मानव तस्करी भी सबसे बड़ा चैलेंज है। उषा या मीरा जैसी हजारों लड़कियां हैं जिन्हें डोमेस्टिक हेल्प या दूसरे कारणों के लिए बेच दिया जाता है।

दिल्ली से बड़ी संख्या में रेस्क्यू करायी जाती हैं लड़कियां

पिछले दो वर्ष के अंदर 508 लड़कियों को केवल दिल्ली से ही रेस्क्यू कराया गया है। इनमें से कई लड़कियों को यह पता भी नहीं कि वो दिल्ली कब लाई गईं। उन्हें अपने माता-पिता का चेहरा तक याद नहीं था। उषा का उदाहरण देते हुए संजय मिश्रा बताते हैं कि जब उसे रेस्क्यू कराया गया तो काफी मशक्कत के बाद गुमला में उसके घर को ट्रेस किया जा सका। न तो उषा को अपने माता-पिता का चेहरा याद था और न ही मां उसे पहचान पा रही थी। उसकी बड़ी बहन जब अपनी मां से मुंडारी में बात कर रही थी, तब उषा उनसे जाकर लिपट गई।

अजमेर से कराया गया रेस्क्यू

लड़कियों को काम दिलाने का ही लालच नहीं दिया जाता। बल्कि शादी करने या सरोगेसी के लिए भी ले जाया जाता है। असम के धुबरी जिले की एक लड़की की कहानी दिल दहलाने वाली है। 18 साल की युवती को 2018 में राजस्थान में एक व्यक्ति को बेच दिया गया। जब उसने एक लड़की को जन्म दिया तो उस व्यक्ति ने युवती को दूसरे के हाथों बेच दिया। वह व्यक्ति बेटा चाहता था। दुर्भाग्यपूर्ण यह कि दूसरे व्यक्ति के यहां रहने पर भी उस युवती को बेटी ही हुई। इस पर उसने युवती को छोड़ दिया। 2020 में उसे दो छोटी बच्चियों के साथ अजमेर से रेस्क्यू कराया गया। वह वापस अपने होम टाउन धुबरी में है।

लॉकडाउन के बाद बढ़ गए तस्करी के मामले

महिला और बाल विकास मंत्रालय के अनुसार, 2018 से 2020 के बीच ह्यमून ट्रैफिकिंग के मामलों में कमी आई। 2018 में जहां 18 वर्ष से ऊपर 1064 युवतियों की तस्करी हुई, वहीं 2019 में यह घटकर 923 और 2020 में घटकर 784 हो गई। लेकिन ट्रैफिकिंग पर काम करने वाली संस्थाओं ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि लॉकडाउन के बाद नाबालिग बच्चों की तस्करी में बढ़ोतरी हुई है।

नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, देश के तीन-चार राज्यों में ही ट्रैफिकिंग के सबसे अधिक मामले हैं। इनमें असम, महाराष्ट्र, तेलंगाना, झारखंड, आंध्र प्रदेश जैसे राज्य हैं। असम के कोकराझार में एंटी ट्रैफिकिंग पर काम कर रही एनजीओ निदान फाउंडेशन के अनुसार, कोविड के कारण लोगों के जीवन पर काफी असर पड़ा है।

गरीब परिवारों की होती हैं लड़कियां

गरीब परिवारों के लोगों के पास इतना पैसा नहीं है कि वे अपने बच्चों की पढ़ाई जारी रख सकें। इसलिए वे बच्चों को काम पर लगाना चाहते हैं। इसका फायदा ट्रैफिकर्स उठाते हैं। ये इनके कम्युनिटी के ही लोग होते हैं जो पेरेंट्स को झांसा देते हैं। बहला-फुसला कर, नौकरी दिलाने का लालच देकर बड़े शहर ले जाते हैं। इनमें से कई को वेश्यावृत्ति तक में झोंक दिया जाता है। कुछ को हरियाणा, राजस्थान में शादी के लिए तो कुछ को सरोगेसी के लिए ले जाया जाता है।

50 हजार बच्चों को कराया गया है रेस्क्यू

रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स ने 2018 से लेकर अब तक 50 हजार बच्चों को रेस्क्यू कराया है। आरपीएफ की टीम ने 2018 से अब तक 50000 बच्चों को रेस्क्यू कराया है। आरपीएफ की एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट ने ट्रैफिकर्स को भी पकड़ा है। देशभर के 740 जगहों पर टीम मानव तस्करी रोकने के लिए काम करती है।

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