लखनऊ के ब्लडबैंक में फर्जी डोनर का बड़ा मामला सामने आया है। डीएम ने खुद ये मामला पकड़ा तो राजधानी में हड़कंप मच गया। डीएम ने शुक्रवार को पुराने शहर के वजीरहसन रोड स्थित स्वास्तिक चैरिटेबल ब्लड बैंक में छापा मारा। रजिस्टर में दर्ज एक रक्तदाता के मोबाइल नंबर पर फोन किया तो होश उड़ गए। फोन उठाने वाले ने कहा कि पीलीभीत से बोल रहा हूं, रक्तदान कौन कहे, मैं तो लखनऊ ही कभी नहीं आया। डीएम ने विधिक कार्रवाई के लिए ड्रग कंट्रोलर को रिपोर्ट भेजी है।
गौरतलब है कि इसके अलावा राजधानी के कुछ अन्य ब्लड बैंकों में गड़बड़ियां सामने आई हैं। खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग (एफएसडीए) की शुरुआती जांच में पता चला है कि ठाकुरगंज स्थित मिडलाइफ चैरिटेबल ब्लड बैंक में ढाई साल से खून का अवैध कारोबार चल रहा था।
स्वास्तिक चैरीटेबल ब्लड बैंक में डीएम को मौके पर मेडिकल अफसर नहीं मिले। रजिस्टर में ब्लड डोनर के नाम दर्ज थे। जांच में शामिल ड्रग इंस्पेक्टर माधुरी सिंह ने उनमें से रैंडम आधार पर 10 नंबरों पर कॉल की। इनमें चार ने कहा कि उन्होंने रक्तदान नहीं किया। चार ने फोन रिसीव नहीं किया तथा दो ने रक्तदान की बात स्वीकार की। ब्लड बैंक में मेडिकल अफसर, टेक्निकल सुपरवाइजर, टेक्नीशियन और नर्स की तैनाती के बारे में एफएसडीए को कोई सूचना नहीं भेजी गई।
‘मिड लाइफ’ शुरू होते ही खून तस्करी में उतरा
ठाकुरगंज स्थित मिडलाइफ चैरिटेबल ब्लड बैंक में ढाई साल से खून का अवैध कारोबार चल रहा था। दिसंबर 2019 में ब्लड बैंक को लाइसेंस मिला। इसके बाद ही खून का अवैध कारोबार शुरू हो गया। राजस्थान और दिल्ली समेत दूसरे राज्यों से खून लाकर मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ किया जा रहा था।
यह तथ्य खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग (एफएसडीए) की शुरुआती जांच में सामने आए हैं। ब्लड बैंक खुलने के बाद दलाली में कूद गया। ब्लड बैंक के दलालों ने अस्पतालों से संपर्क साधा। ग्राहक के बदले अस्पताल को मोटा कमीशन देते थे। अफसरों के मुताबिक मिडलाइफ ब्लड बैंक में रोजाना 20 से 30 मरीजों को खून जारी करता था। रक्तदान पांच से सात लोग करते थे। बाकी जरूरतमंदों को बिना डोनर मुंह मांगी कीमत पर खून दिया जाता था। अफसरों का दावा है कि जो लोग डोनेशन नहीं करते थे, उन्हें आठ से 10 हजार में खून दिया जाता है। डोनेशन वालों को पांच हजार रुपये में एक यूनिट खून मिलता था।
रिटायर होते ही फौजी ने शुरू कर दी दलाली
कृष्णानगर के नारायणी ब्लड बैंक का मालिक अजीत दुबे एक साल पहले तक सेना में नायब सूबेदार था। वह सेना में ब्लड ट्रांसफ्यूजन यूनिट में था। रिटायर होते ही उसने ब्लड बैंक खोलकर खून का काला कारोबार शुरू कर दिया था। एसटीएफ की पूछताछ में अजीत ने ऐसा ही कुबूला। उसने बताया कि ब्लड कैम्प लगाने के लिये ब्लड बैंक का ट्रस्ट से संचालित होना जरूरी है। इस पर अजीत दुबे ने हाथरस के वैष्णवी फाउण्डेशन चैरिटेबल ट्रस्ट से सम्बद्धता दिखायी। बदले में ट्रस्ट संचालक अनिल पिपरोहा को 25 प्रतिशत हिस्सेदारी दी।
आधे खून से खेल
एसटीएफ डिप्टी एसपी प्रमेश शुक्ला ने बताया कि जुलाई, 2021 में अजीत दुबे रिटायर हुआ था। अनिल पिपरोहा आगरा का है। ट्रस्ट से सम्बद्धता मिलते ही अजीत दुबे ने ब्लड कैम्प लगाने शुरू कर दिये थे। कैम्प में रक्तदान से आधा खून लिखापढ़ी में लाया जाता था, बाकी काले कारोबार में इस्तेमाल होता था। एसटीएफ ने बताया कि डॉ. पकंज त्रिपाठी नारायणी ब्लड बैंक में मेडिकल आफीसर था। उसका अपना मानव ब्लड बैंक कृष्णानगर में चलता है। पत्नी मेडिकल आफीसर है। डॉ. पंकज भी वान्टेड है। तलाश जारी है।
ब्लड बैंकों को नोटिस लाइसेंस पर तलवार
मरीजों की जान से खिलवाड़ करने वाले मिडलाइफ और नारायणी ब्लड बैंक को एफएसडीए ने नोटिस कर दिया है। जवाब पर कार्रवाई होगी। रिपोर्ट आकलन के बाद दोनों ब्लड बैंक के लाइसेंस भी रद्द किए जा सकते हैं। ड्रग इंस्पेक्टर माधुरी सिंह ने बताया कि दूसरे राज्यों से खून लाने पर रोक नहीं है। दूसरे राज्यों से खून लाने के लिए नैको की गाइडलाइन पालन नहीं किया गया। जवाब मांगा है। एफएसडीए अफसरों की मानें तो जांच में गड़बड़ी पर ब्लड बैंक का लाइसेंस रद्द होगा।
नए ब्लड बैकों को लालच देकर फांसा
अवैध कारोबार को रफ्तार देने के लिए मिडलाइफ नए ब्लड बैंकों पर जाल फेंकता था। मोटी कमाई का लालच देता था। झांसे में नारायणी चैरिटेबल ब्लड बैंक आलमबाग भी फंस गया। मार्च 2022 में नारायणी चैरिटेबल ब्लड बैंक को लाइसेंस मिले। इसके संचालक से मिडलाइफ ब्लड बैंक के दलालों ने संपर्क किया और ज्यादा कमाने का लालच देकर फंसाया।
मिडलाइफ के दलाल ब्लड बैंकों को इलाकों में बांटते थे। नारायणी को आशियाना, रायबरेली रोड, काकोरी, सरोजनीनगर समेत दूसरे इलाके दे रखे थे। एफएसडीए अफसरों ने बताया कि बेबस तीमारदारों को पकड़कर मनमानी कीमत वसूलते थे।
ब्लड डोनर फार्म में भरी अधूरी जानकारी
जांच में पता चला कि रक्तदान करने वालों के फार्म भी गलत भरे गए थे। रक्तदान करने वालों का विवरण ठीक नहीं भरा गया है। फार्म आधे अधूरे मिले। ब्लड बैंक में दिशा निर्देशों की जानकारी कहीं दर्ज नहीं मिली।
जो लखनऊ नहीं आया, उसका यहां खून बेच डाला
हैलो…डीएम लखनऊ बोल रहा हूं, क्या आप ने हाल-फिलहाल ब्ल्ड डोनेशन किया है।…दूसरी तरफ से जवाब मिला नहीं सर, कभी नहीं।…मैं तो पीलीभीत में रहता हूं।
शुक्रवार को स्वास्तिक चैरिटेबल ब्लड बैंक में डीएम ने छापेमारी कर जब ब्लड डोनर रजिस्टर में लिखे नम्बर पर कॉल की तो जवाब सुनकर हैरान रह गए। आठ नम्बर दर्ज थे जिनमें एक भी सही ब्लड डोनर नहीं मिला। ब्लड बैंक के पुराने रिकॉर्ड भी मौके पर नहीं मिले। डीएम ने विधिक कार्रवाई के लिए ड्रग कंट्रोलर को अपनी जांच रिपोर्ट भेज दी है। डोनर रजिस्टर जब्त कर लिया गया है।
निलम्बित हो सकता है ब्लड बैंक का लाइसेंस: एफएसडीए के औषधि अनुभाग के एक अधिकारी ने बताया कि ऐसे में सबसे पहले ड्रग कंट्रोलर की ओर से ब्लड बैंक को नोटिस भेजा जाएगा। यदि नोटिस पर यदि तर्क संगत जवाब मिलता है तो चेतावनी देकर छोड़ा जा सकता है। यदि जवाब संतोषजनक नहीं हुआ तो ब्लड बैंक का लाइसेंस निलम्बित कर आगे की कानूनी कार्रवाई शुरू हो जाएगी। इस मामले में जितनी गड़बड़ियां मिली हैं उस लिहाज से बचने की गुंजाइश काफी कम है।
जानकारी ऑनलाइन करने का निर्देश
निरीक्षण के दौरान डीएम ने ब्लड एक्सपायरी के लिए ऑनलाइन पोर्टल शुरू करने का निर्देश दिया। इस पोर्टल पर ब्लड की उपलब्धता और एक्सपायरी के बारे में सूचना रहे। डीएम ने ब्लड बैंक स्टॉक की जानकारी गूगल फार्म पर दर्ज करने को भी कहा। निरीक्षण में सहायक आयुक्त औषधि बृजेश कुमार भी थे।
स्वास्तिक ब्लड बैंक पर छापा मारा गया था। रजिस्टर में ब्लड डोनेशन करने वालों के नंबर पर बात की गई। कई ने कहा कि वे रक्तदान करने नहीं गए। कार्रवाई के लिए रिपोर्ट ड्रग कंट्रोलर को भेजी गई है।