28 साल के ऋषिकेश गुरुग्राम में एक मल्टीनेशनल BPO में काम करते हैं। 6 वर्षों के उनके करियर की शुरुआत में ही लगातार लैपटॉप स्क्रीन पर समय बिताने की वजह से आंखों में जलन, खुजली जैसी समस्याएं आने लगीं। डॉक्टर ने उन्हें ड्राई आई डिजीज यानी DID का शिकार बताया और आई ड्रॉप प्रिस्क्राइब कर दी। मगर 6 वर्षों तक आई ड्रॉप्स का इस्तेमाल करने के बाद भी उनकी समस्या खत्म होने के बजाय बढ़ती ही गई। आई ड्रॉप्स का इस्तेमाल दिन में 4 बार से बढ़कर 8 बार तक पहुंच गया। यह कहानी सिर्फ ऋषिकेश की नहीं, कंप्यूटर या मोबाइल पर ज्यादा समय बिताने वाले हर चौथे शख्स की है।
ऋषिकेश और उनके जैसे लाखों लोगों को यह नहीं पता कि ड्राई आईज से राहत के लिए वे जिस आई ड्रॉप का इस्तेमाल कर रहे हैं, उसमें मौजूद प्रिजर्वेटिव्स ही इस बीमारी को और बढ़ा रहे हैं। कनाडा की वाटरलू यूनिवर्सिटी में हुए एक शोध में इन आई ड्रॉप्स के लंबे समय तक इस्तेमाल के दुष्परिणाम और उसके कारण सामने आए हैं। यही नहीं, लगातार लंबे समय तक इन ड्रॉप्स का इस्तेमाल बीमारी को इतना गंभीर बना सकता है कि आपको सर्जरी की जरूरत पड़ जाए।
जिस तेजी से कंप्यूटर या लैपटॉप हर नौकरी का हिस्सा बनते जा रहे हैं और जिस गति से मोबाइल स्क्रीन पर समय बढ़ रहा है, उसी रफ्तार से भारत में ड्राई आई डिजीज के मामले भी बढ़ रहे हैं। इंडियन जर्नल ऑफ ऑप्थेल्मोलॉजी की 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर भारत के 32% लोग ड्राई आईज से पीड़ित थे। अब यह आंकड़ा और भी बढ़ गया है। मगर इस बीमारी की पहचान और इसके इलाज में लापरवाही घातक हो सकती है। जानिए, ड्राई आईज क्या हैं और क्यों इनके लिए आई ड्रॉप्स चुनने में सावधानी जरूरी है।
दिक्कत ड्रॉप्स में नहीं…इनके प्रिजर्वेटिव्स से
ड्राई आईज में इस्तेमाल होने वाले आईड्रॉप्स के तत्वों से आंखों को नुकसान नहीं पहुंचता। मगर इन ड्रॉप्स की शीशियों में बैक्टीरियल ग्रोथ रोकने के लिए कुछ प्रिजर्वेटिव्स का इस्तेमाल किया जाता है। यह प्रिजर्वेटिव्स आई ड्रॉप्स की उम्र बढ़ाते हैं, लेकिन इनके लगातार इस्तेमाल से कॉर्निया की झिल्ली यानी TEAR FILM को नुकसान पहुंचता है। कनाडा की वाटरलू यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर ऑक्युलर रिसर्च एंड एजुकेशन की शोधकर्ता कैरेन वॉल्श और लिंडन जोन्स के मुताबिक ड्राई आई डिजीज में कॉर्निया की सतह को नुकसान पहुंचता है और साथ ही इसके ऊपर की TEAR FILM भी अस्थिर हो जाती है। प्रिजर्वेटिव्स की वजह से यह लक्षण घटते नहीं, बल्कि और बिगड़ते जाते हैं।
39% लोग बीमारी नहीं आई केयर के लिए ड्रॉप्स लेते हैं…ये बीमारी को बुलावा
इंडस्ट्री आर्क के एक अध्ययन के मुताबिक दुनिया में आई ड्रॉप्स का इस्तेमाल करने की वजह हमेशा बीमारी नहीं होती। उनके अध्ययन के मुताबिक 52% लोग आंखों की बीमारियों के इलाज के लिए ड्रॉप्स का इस्तेमाल करते हैं। जबकि 39% लोग सिर्फ आंखों की देखभाल के उद्देश्य से आई ड्रॉप्स ले लेते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक स्वस्थ आंखों में लंबे समय तक आई ड्रॉप्स का इस्तेमाल हो तो प्रिजर्वेटिव्स की वजह से ड्राई आई डिजीज के लक्षण दिखने लगेंगे।
हो सकती है कॉर्नियल इपीथिलियल टॉक्सिसिटी…सर्जरी ही इलाज
आई सर्जन डॉ. सुरेश पांडे बताते हैं कि यदि प्रिजर्वेटिव्स वाले आई ड्रॉप्स का इस्तेमाल लंबे समय तक करते रहें तो कॉर्नियल इपीथिलियल टॉक्सिसिटी नामक बीमारी हो सकती है। वैसे तो स्वस्थ व्यक्ति में यह बीमारी दुर्लभ है, मगर आई ड्रॉप्स के प्रिजर्वेटिव्स की वजह से लंबे समय में यह बीमारी हो सकती है। इसका इलाज सिर्फ सर्जरी से ही संभव है।
लगातार बढ़ रहा है आई ड्रॉप्स का बाजार, 2025 तक 18 हजार करोड़ रु. के पार होगा
2017 में दुनिया भर में आई ड्रॉप्स का बाजार 12.47 हजार करोड़ का था। 2022 तक यह 15.66 हजार करोड़ तक पहुंच गया। अब 2025 तक यह 18.06 हजार करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है। इस बाजार में सबसे बड़ी हिस्सेदारी ड्राई आई सिंड्रोम से जुड़ी आई ड्रॉप्स की है। इंडस्ट्रीआर्क की स्टडी के मुताबिक यह बाजार सबसे तेज गति से एशिया पैसिफिक क्षेत्र में बढ़ रहा है।
ड्राई आई सिंड्रोम में इस्तेमाल होने वाली सभी आई ड्रॉप्स बिना प्रिस्क्रिप्शन के आसानी से ओवर द काउंटर उपलब्ध हैं। लोग अक्सर शुरुआती लक्षणों और जान-पहचान के लोगों की सलाह पर आई ड्रॉप लेना शुरू कर देते हैं। जबकि यह जानना जरूरी है कि लक्षण वाकई ड्राई आई डिजीज के हैं या कोई और कारण है। बीमारी होने पर भी उसकी गंभीरता के हिसाब से डॉक्टर बताते हैं कि ड्रॉप्स का इस्तेमाल कितनी बार और कब तक करना है। बाजार में बिना प्रिजर्वेटिव्स वाले आई ड्रॉप्स भी आते हैं, मगर यह शेल्फ लाइफ कम होने के कारण महंगे होते हैं। बेहतर यही है कि कोई भी आई ड्रॉप शुरू करने से पहले डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।