मोबाइल की लत से प्रभावित स्कूली बच्चों काे अब सरकार की ओर से दिया जाएगा चश्मा, नहीं लगेंगे पैसे

 

कोरोना काल में बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई से लेकर स्क्रीन टाइम में बढ़ोतरी व आंखों पर होनेवाले प्रभाव की जांच होगी। इसमें अगर स्कूली बच्चों की आंख में कोई दृष्टिदोष मिलता है तो उन्हें चश्मा दिया जाएगा।

दृष्टि परीक्षण व चश्मा वितरण के लिए बच्चों से कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा। बच्चों का नेत्र परीक्षण कार्यक्रम होगा। इसके लिए नेत्र विशेषज्ञ से लेकर डीईओ के सहयोग से कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार होगी।

इसमें पहली से दसवीं तक के 18 वर्ष तक के बच्चों का परीक्षण होगा। बच्चों की आंखों की जांच के बाद उन्हें उचित पावर का चश्मा दिया जाएगा। ऐसा करने से  समय बच्चों को दृष्टिदोष से बचाया जा सकेगा। स्कूलों में संचालित स्क्रीनिंग कार्यक्रम में दृष्टिदोष पाए जाने वाले बच्चों को नजदीकी सरकारी अस्पताल में रेफर किया जाएगा।
कितने छात्र-छात्राओं की आंखों की जांच हुई इसका रिकॉर्ड देना है अनिवार्य

स्क्रीनिंग में बच्चों की संख्या, दृष्टिदोष पाए जाने वाले बच्चों की संख्या, दृष्टिदोष के बच्चों का नि:शुल्क वितरण किए गए चश्मों की संख्या, 45 वर्ष के व्यक्ति में पाए गए दृष्टिदोष की संख्या समेत अन्य रिकॉर्ड देना अनिवार्य है। कितने शिक्षकों को दृष्टिदोष की पहचान के लिए प्रशिक्षित किया गया से लेकर अन्य जानकारी हर महीने देनी होगी। इसको लेकर राज्य स्वास्थ्य समिति की ओर से निर्देश जारी किया गया है।

इधर, अंधापन नियंत्रण से बुजुर्गों को भी मिलना है लाभ

राष्ट्रीय अंधापन नियंत्रण कार्यक्रम के तहत 45 वर्ष या उससे अधिक उम्र के व्यक्ति के आंखों में भी दृष्टिदोष पाए जाने पर उन्हें चश्मा दिया जाएगा। सदर अस्पताल से लेकर पीएचसी समेत अन्य स्थान जहां विजन सेंटर का संचालन होता है वहां नेत्र परीक्षा होगा। ओपीडी में आने वाले 45 वर्ष से अधिक के व्यक्ति के आंखों की जांच कर चश्मा दिया जाएगा।

अति कुपोषित स्कूली बच्चों की भी की जाएगी पहचान

सरकारी स्कूलों में 30 सितंबर तक पोषण पखवारा मनाया जाएगा। 25 से 30 सितंबर तक अति कुपोषित बच्चों की पहचान कर स्वास्थ्य विभाग के सहयोग से चिकित्सीय सहायता और पोषण पखवारा मनेगा। इसमें महिला स्वास्थ्य, बच्चा शिक्षा, लिंग संवेदीकरण, जल संरक्षण व जनजातीय क्षेत्रों में महिलाओं व बच्चों के लिए पारंपरिक भोजन को शामिल किया गया है।

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