खागा काण्ड में जलते सवाल 

 

अवधेश कुमार दुबे तहसील संवाददाता न्यूज़ वाणी खागा

3 सितंबर शनिवार को दोपहर गरीब व्यक्ति कामता प्रसाद की मौत चार पहिया वाले ने लापर वाही से दरवाजा खोला तो पास से गुजर रही मोटर साइकिल गाड़ी के दरवाजे से टकराई और फिर कामता प्रसाद की मौत हुई
परिजनों ने चौराहे पर शव को रखकर जाम लगाया क्योंकि जिस गाड़ी से एक्सीडेंट हुआ था वह गाड़ी24 घंटे बाद भी पकड़ी नहीं गई थी
सारा क्रिया कांड यहीं से शुरू हो जाता है और लंबी चौड़ी खबरें छपना भी शुरू हो जाती है सुनने में यहां तक आया कि कोतवाल तथा एसडीएम की सूझबूझ से मामला सुलझ गया
वही 8 ज्ञात तथा 100 अज्ञात लोगों पर एफ आई आर भी दर्ज हो गई
आप सुनिए खागा की जनता ने जो कहा वही हम छाप रहे हैं हम अपनी खबर में ना कुछ जोड़ रहे हैं ना घटा रहे हैं बल्कि हम जनता के द्वारा कही गई बातों को उठा रहे हैं
जे पी साही ने की ताना शाही
हाथ कंगन को आरसी क्या पढ़े लिखे को फारसी क्या
आखिर इन लोगों को न्याय मांगने पर धमकी दे कर मुकदमे में क्यों फंसाया गया
जनता को अपनी हक की लड़ाई लड़ने का भी अधिकार नहीं है क्या
क्या पुलिस अपने फर्ज को भूल गई कि जिस गाड़ी से एक्सीडेंट हुआ वह गाड़ी पकड़ी क्यों नहीं गई और धरना प्रदर्शन शुरू होने के उपरांत ही कुछ ही क्षणों में गाड़ी फिर क्यों पकड़ी गई क्या वह गाड़ी सांठगांठ के लिए छोड़ी गई थी धरना प्रदर्शन ने सारा खेल बिगाड़ दिया
इसके पीछे लंबी मोटी रकम का लेनदेन तो नहीं हो रहा था जिसकी वजह से गाड़ी तुरंत ना पकड़कर मामला को बढ़ता हुआ देखकर गाड़ी को तुरंत पकड़ लिया गया
जब धरना प्रदर्शन हो रहा था तो ठीक उस से 5 मिनट पहले ही पुलिस वीबाजार के पास शिवा रेस्टोरेंट के पास सी सी टी वी के कैमरे खंगाल रही थी
इसका मतलब हुआ कि एक्सीडेंट के बाद पुलिस ने उस गाड़ी को पकड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई एक्सीडेंट दोपहर को होता है तो पुलिस ने उसी दिन शाम तक उन सीसी टीवी कैमरों को क्यों नहीं देखा सबसे बड़ा प्रश्न यही है
यदि मामला सूझबूझ का था तो सूझ बूझ अगर होती तो मामला इतना तूल ही नहीं पकड़ता की शव के पास बैठे लोगों को थाना अध्यक्ष महोदय धमकाते नजर आते तो सहानुभूति होनी चाहिए थी उस गरीब व्यक्ति के लिए जिसके लिए इतनी जनता उमड़ पड़ी थी। धमकी देना क्या सूझबूझ का महान प्रदर्शन है
सूझबूझ तो तब होती जब मृतक को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया था उसी समय उन्हें बताया जाता कि हम अभी जाकर टीवी कैमरों को खंगाल रहे हैं और तुरंत उस गाड़ी को पकड़ कर ला रहे हैं ऐसा नहीं किया गया तो क्या इसे सूझबूझ माना जाए या लापरवाही माना जाए या फिर राजनीतिक दबाव माना जाए या फिर नोट के पीछे गाड़ी को छुपाना समझा जाए जी हां यह जनता के सवाल है श्रीमान जी मेरा इसमें कोई लेना देना नहीं है मैं भी अन्य पत्रकारों की तरफ खड़ा हूं मैं भी आपके सम्मान में आप को खुश करने के लिए मोटे हेड लाइनों में कुछ भी लिख सकता हूं लेकिन जब जनता के बीच में ही रहना उन्हीं के बीच में वक्त बिताना ही है तो क्यों ना जनता के प्रश्नों को निष्पक्ष पत्रकार की तरह आपके पास पहुंचा दूं मैं अपने कर्तव्य को भूला नहीं हूं बस आपके स्वयं के कर्तव्यों को याद दिलाने को जोखिम भरी खबर लिख रहा हूं
जल में रहकर मगर से बैर किसी को अच्छा नहीं लगता
बहुत से लोगों ने इस कार्य को हिंदू मुस्लिम का भी नाम दे डाला है क्योंकि उनमें फंस ने वाला एक सभासद मुस्लिम बिरादरी का भी है जो जनता के साथ खड़े होकर जनता की मांग पर अपनी सहमति जता रहा था उनके सुख दुख में भागीदार बना हुआ था जनप्रतिनिधि का कर्तव्य निभा रहा था
वही कुछ पत्रकार भी थे जो जनता की आवाज उठाने के लिए भीड़ का हिस्सा बने हुए थे
क्या इस प्रकार के शब्द बोलना चौराहे पर वो भी जब कोई मर गया हो न्यायोचित होगा मेरी समझ में तो यह बड़ा ही विरोधाभास एवं गंभीर मसला बन जाता है
यह घटना नहीं बल्कि दुर्घटना थी जो अपने पीछे कई प्रकार के सवाल छोड़ गई
अगर पुलिस त्वरित गति से न्यायोचित कार्रवाई करती तो वह गाड़ी शाम को ही पकड़ी जाती वीडियो वायरल होने की नौबत ही न आती ना 108 लोग फसते और ना जनता इस प्रकार के सवालों के जवाब ढूंढती ना आपकी कर्तव्यनिष्ठा को धक्का लगाया जाता

 

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