केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर में स्मार्ट ग्लास पहनकर प्रवेश करने की कोशिश कर रहे एक शख्स को पकड़ा गया है। श्रद्धालु की पहचान 66 वर्षीय सुरेंद्र शाह के रूप में हुई है, जो मूल रूप से गुजरात का रहने वाला है। सुरेंद्र शाह को रविवार शाम मंदिर के सुरक्षाकर्मियों ने हिरासत में ले लिया।
पुलिस के मुताबिक: मंदिर में कैमरा लगे चश्मे जैसे उपकरण प्रतिबंधित हैं। इसके बावजूद सुरेंद्र स्मार्ट ग्लास पहनकर मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश कर रहा था। शाह मुख्य प्रवेश द्वार से मंदिर में दाखिल हुआ। उसके हावभाव से सुरक्षाकर्मियों को उस पर शक हुआ और उन्होंने उसे वापस बुलाया। जांच करने पर पता चला कि उसके चश्मे में छिपे हुए कैमरे लगे थे।
मंदिर प्रशासन ने सुरेंद्र शाह के खिलाफ: बीएनएस धारा 223 (लोक सेवकों के वैध आदेशों की अवज्ञा) के तहत मामला दर्ज करवाया है। पुलिस ने कहा कि इस स्तर पर किसी गलत इरादे का संदेह नहीं है, लेकिन विस्तृत जांच चल रही है। उन्होंने बताया कि शाह को पूछताछ के लिए उपस्थित होने का नोटिस दिया गया है।
यह ऐतिहासिक मंदिर केरल के पर्यटन और धर्मिक आस्था का केंद्र: भारत के वैष्णव मंदिरों में शामिल यह ऐतिहासिक मंदिर केरल के पर्यटन और धर्मिक आस्था का केंद्र है। मंदिर में अत्यंत कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के साथ- साथ यहां श्रद्धालुओं के प्रवेश के नियम भी हैं। पुरुष केवल धोती पहनकर ही प्रवेश कर सकते हैं और महिलाओं के लिए साड़ी पहनना अनिवार्य है। अन्य किसी भी लिबास में प्रवेश यहां वर्जित है। मंदिर में एक स्वर्ण स्तंभ बना हुआ है, जिसकी सुंदरता देखते ही बनती है। मंदिर का स्वर्ण जड़ित गोपुरम सात मंजिल का, 35 मीटर ऊंचा है। कई एकड़ में फैले मंदिर में महीन कारीगरी भी देखते ही बनती है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की बड़ी मूर्ति रखी है। इसमें भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजे हुए हैं। भगवान विष्णु की विश्राम अवस्था को ‘पद्मनाभ’ कहा जाता है। इसी वजह से मंदिर को पद्मनाभस्वामी और भगवान के ‘अनंत’ नाग के नाम शहर को तिरुअनंतपुरम नाम मिला था। अपनी भव्यता के लिए मशहूर मंदिर में जाने के लिए पुरुषों को धोती और महिलाओं को साड़ी पहनना जरूरी है।
इसका जिक्र 9 सदी के ग्रंथों में मिलता है: भगवान विष्णु को समर्पित पद्मनाभस्वामी मंदिर को त्रावणकोर के राजाओं ने बनाया। इसका जिक्र 9 सदी के ग्रंथों में मिलता है, लेकिन मंदिर के मौजूदा स्वरूप को 18वीं शताब्दी में बनाया गया। मान्यता है कि इस जगह भगवान विष्णु की मूर्ति मिली थी, इसके बाद राजा मार्तण्ड ने यहां मंदिर बनवाया। सन् 1750 में महाराज मार्तण्ड ने खुद को पद्मनाभ दास बताया। इसके बाद त्रावणकोर शाही परिवार ने खुद को भगवान के लिए समर्पित कर दिया। माना जाता है कि इसी वजह से त्रावणकोर के राजाओं ने अपनी सारी दौलत पद्मनाभ मंदिर को सौंप दी। हालांकि त्रावणकोर के राजाओं ने 1947 तक राज किया। आजादी के बाद इसे भारत में मिला लिया, लेकिन पद्मनाभस्वामी मंदिर को सरकार ने कब्जे में नहीं लिया। इसे त्रावणकोर के शाही परिवार के पास ही रहने दिया। तब से मंदिर का कामकाज शाही परिवार के अधीन एक प्राइवेट ट्रस्ट चलाता आ रहा है।
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