UP में खाली हाथ, महाराष्ट्र में भी नहीं 100 पार, कैसे गठबंधन में कांग्रेस हुई लाचार

 

इंडिया गठबंधन में शामिल छत्रप कांग्रेस के लिए बहुत ज्यादा सीटें देते नहीं दिख रहे. यही वजह है कि कांग्रेस को यूपी, महाराष्ट्र और झारखंड में ‘जहर का घूंट पीकर’ सीटों पर समझौता करना पड़ा है. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन यानी महा विकास अघाड़ी की दो दिनों तक चली मैराथन बैठकों के बाद सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय हो गया है. झारखंड में कांग्रेस और जेएमएम के बीच पहले ही सीट बंटवारा फाइनल हो चुका है. इस तरह से सीट शेयरिंग में महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश और झारखंड तक में सबसे बड़ा झटका कांग्रेस को लगा है. उत्तर प्रदेश में पांच सीटों पर उपचुनाव लड़ने की उम्मीद में बैठी कांग्रेस खाली हाथ रह गई है. महाराष्ट्र में कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी के बीच बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने की सहमति बनी है.

कांग्रेस महाराष्ट्र में 100 सीटों का आंकड़ा भी पार नहीं कर सकी है जबकि झारखंड में पिछले विधानसभा चुनाव से कम सीटों पर उसे लड़ना पड़ा. झारखंड और महाराष्ट्र में कांग्रेस इतनी कम सीटों पर कभी चुनाव नहीं लड़ी है. सवाल उठता है कि गठबंधन की सियासी मजबूरी में कांग्रेस किस स्थिति में आज खड़ी नजर आ रही. उत्तर प्रदेश की दस विधानसभा सीटें खाली हुई हैं, जिसमें 9 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं. इंडिया गठबंधन के तहत कांग्रेस ने पांच सीटों पर उपचुनाव लड़ने का प्रस्ताव बनाया था, जहां पर बीजेपी, आरएलडी और निषाद पार्टी का कब्जा था. सपा की तरफ से कांग्रेस को सिर्फ गाजियाबाद और खैर दो सीट दे रही थी. यह दोनों ही सीटें कांग्रेस अपने लिए कम्फर्ट नहीं मान रही है, क्योंकि खैर सीट पर 44 साल से तो गाजियाबाद सीट पर 22 साल से जीत नहीं मिली. सपा के लिहाज से भी ये दोनों सीटें कभी बेहतर नहीं रहीं. ऐसे में कांग्रेस ने खैर और गाजियाबाद सीट पर चुनाव लड़ने से अपने कदम पीछे खींच लिए और सपा सभी 9 सीट पर चुनाव लड़ेगी.

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने बुधवार देर रात एक्स पर पोस्ट कर लिखा कि बात सीट की नहीं जीत की है. इस रणनीति के तहत ‘इंडिया गठबंधन’ के संयुक्त प्रत्याशी सभी 9 सीटों पर सपा के चुनाव चिन्ह ‘साइकिल’ निशान पर चुनाव लड़ेंगे. कांग्रेस और सपा एकजुट होकर, कंधे से कंधा मिलाकर साथ खड़ी है. इंडिया गठबंधन इस उपचुनाव में, जीत का एक नया अध्याय लिखने जा रहा है. कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व से लेकर बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं के साथ आने से सपा की शक्ति कई गुना बढ़ गई है. इस तरह कांग्रेस उपचुनाव में एक भी सीट पर चुनाव नहीं लड़ रही है. महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन की सीट शेयरिंग में कांग्रेस को तगड़ा झटका लगा है. सूबे की कुल 288 सीटों में से 255 सीटों पर इंडिया गठबंधन के बीच सीट-बंटवारे का समझौता किया है. इंडिया गठबंधन में शामिल कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी के बीच 85-85 सीटों पर चुनाव लड़ने का फार्मूला बना है, लेकिन 33 सीटों पर कोई फैसला नहीं हुआ. इंडिया गठबंधन की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में शिवसेना (यूबीटी) सांसद संजय राउत ने कहा कि हम गठबंधन के रूप में चुनाव लड़ने जा रहे हैं.

हमने अब तक 270 सीटों पर बात कर ली हैं और 85-85-85 सीटों के फॉर्मूले पर सहमति बनी. हम कल अपने अन्य सहयोगियों से बात करेंगे जब बाकी सीटें भी साफ हो जाएंगी. लोकसभा चुनाव नतीजों से उत्साहित कांग्रेस इंडिया गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका निभाना चाहती थी, लेकिन उद्धव और शरद पवार के सियासी दांव से सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया. हालांकि, कांग्रेस ने 105 से 110 सीटों पर चुनाव लड़ने का प्लान बनाया था, लेकिन सौ सीट का आंकड़ा भी पार नहीं कर सकी. 2009 में कांग्रेस ने 170 सीटों पर चुनाव लड़ी थी 2014 में 287 सीटों पर किस्मत आजमाया था. 2019 में कांग्रेस 147 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. इस तरह से कांग्रेस अपने सियासी इतिहास में सबसे कम सीटों पर इस बार महाराष्ट्र चुनाव में किस्मत आजमाएगी. झारखंड विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पिछली बार से कम सीटों पर चुनाव लड़ना पड़ रहा है. कांग्रेस साल 2019 में 31 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन इस बार कांग्रेस को 30 सीटें मिली हैं.

कांग्रेस पिछले चुनाव की तुलना में एक सीट पर कम चुनाव लड़ रही है. झारखंड में इंडिया गठबंधन में जेएमएम बड़े भाई की भूमिका में है तो कांग्रेस छोटे भाई के रोल में है. झारखंड की कुल 81 विधानसभा सीटों में से जेएमएम 41 , कांग्रेस 30, आरजेडी 6 सीट और माले 4 सीट पर चुनाव लड़ेगी. कांग्रेस झारखंड में इतनी कम सीट पर कभी चुनाव नहीं लड़ी है. कांग्रेस अपने सियासी इतिहास में अभी तक सबसे कम सीटों पर चुनावी मैदान में उतरी है. 2024 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को गठबंधन के चलते समझौता करना पड़ा था और फिर से विधानसभा चुनाव में भी छत्रपों की आगे कांग्रेस ने सरेंडर कर दिया है. नरेंद्र मोदी के केंद्रीय राजनीति में दस्तक देने के साथ ही कांग्रेस पूरी तरह से कमजोर हो गई है. कांग्रेस के हाथों से देश की ही सत्ता नहीं बल्कि राज्यों से बाहर होती जा रही है. हरियाणा चुनाव की जीती बाजी, जिस तरह कांग्रेस हारी है, उसके चलते इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों ने उस पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए थे. इसी का नतीजा है कि कांग्रेस महाराष्ट्र से लेकर झारखंड और यूपी तक में समझौता करना पड़ा है.

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