दिल्ली में कचरे के पहाड़ों से निपटने के लिए शुरू हुई ‘ग्रीन’ क्रांति योजना राजधानी के 10 लाख लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा बनती जा रही है। बता दें कि सरकार ने बढ़ते कचरे के पहाड़ों को खत्म करने के लिए आधुनिक योजना लाई थी। इसके तहत कचरे को जलाकर बिजली उत्पादन का प्लान था। तिमारपुर-ओखला वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट को इस समस्या के समाधान के रूप में प्रस्तुत किया गया। लेकिन यह योजना कई घातक परिणाम लेकर आई है।
इस प्लांट से निकलने वाली राख और धुएं में आर्सेनिक, लेड, कैडमियम और अन्य खतरनाक कैमिकल निकल रहे हैं। जो लोगों के लिए घातक साबित हो रहे हैं। प्लांट के पास बसे लोग हर दिन जहरीले कणों की चपेट में आ रहे हैं। आसपास की बस्तियों में लोग सांस की तकलीफ, अस्थमा, कैंसर और त्वचा संबंधी बीमारियों से पीड़ित हो रहे हैं। दिल्ली में प्लांट से निकले कचरे की राख को खुले में बस्तियों के पास फेंका जा रहा है। इन राख के ढेरों पर बच्चों के खेलने के लिए पार्क बना दिए गए हैं।
डॉक्टर्स का कहना है कि खुले में राख फेंके जाने से बच्चों में सांस संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं। राख में पाई जाने वाली धातुएं बच्चों के विकास पर नकारात्मक असर डाल रही हैं। दिल्ली का प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और अन्य संस्थाएं इस प्लांट पर कड़ी नजर रखने में विफल साबित हुई हैं। तिमारपुर-ओखला वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट के आसपास रहने वालों में अस्थमा, कैंसर और त्वचा रोग के मामलों में खतरनाक बढ़त हुई है। बच्चों से लेकर बूढ़ों तक, हर आयु के लोग बीमारियों की चपेट में हैं।
डॉ. शैलेंद्र भदौरिया, जो इस प्लांट के पास ही रहते हैं, बताते हैं कि उनके परिवार के कई सदस्य अब गंभीर अस्थमा के शिकार हो गए हैं। सरकारी रिपोर्ट्स भी यह मानती हैं कि प्लांट द्वारा छोड़े गए रसायन स्वास्थ्य के लिए घातक हैं।