गरीबी में टूट चुकी विधवा ने बच्चों को मिली रोटी के बाद दी जान

 

 

एटा जिले से दिल को झकझोरने वाली खबर सामने आई है। यहां आठ सदस्यों के परिवार के भरण-पोषण का पूरा भार पति की मौत के बाद पत्नी सुमन पर था। स्कूल जाते थे तो मध्याह्न भोजन से पेट भर जाता था लेकिन रविवार को स्कूल बंद होने पर बच्चे भूखे ही रह गए।  घर में जितना आटा था, उससे कुल छह रोटियां बनीं। सभी आठ सदस्यों में ये रोटियां टुकड़ों में बंटी तो मां का कलेजा भर आया। यहीं से उसके जीने की चाह खत्म हो गई।

नगला पवल निवासी रामबेटी ने बताया कि बेटे की दो वर्ष पूर्व हुई मौत के बाद पुत्रवधू सुमन काफी परेशान रहने लगी थी।  घर पर काम करने के बाद दूसरों के खेतों पर मजदूरी कर बच्चों को पालती थी। छह बच्चों में सबसे बड़ी बेटी छाया ने बताया कि पापा की मौत बाद घर का गुजारा करना मुश्किल हो रहा था। हम लोगों के खाने के लिए पर्याप्त भोजन तक नहीं मिल पा रहा था। जिसकी वजह से मां मानसिक रूप से परेशान रहती थी।

मेरे साथ ही छोटी बहनें मोहिनी, सुधा, संतोषी और भाई कन्हैया सरकारी विद्यालय में पढ़ने जाते हैं। छोटा भाई विवेक घर पर रहता है। छाया ने बताया कि रविवार होने के कारण हम लोग स्कूल नहीं गए थे, तो दिन में खाना नहीं मिला। सुबह के नाश्ते के बाद शाम को घर पर मुट्ठीभर आटा था जिससे छह रोटियां बन पाईं।  खाने वाले लोग आठ थे, टुकड़ों में रोटी बांटी गईं और किसी का पेट नहीं भरा। रोते हुए रामबेटी ने बताया कि मेरे पास सिर्फ एक रोटी का टुकड़ा आया था। बच्चों की भी यही स्थिति थी।

इसी बात से सुमन बहुत दुखी हो गई और अगले दिन सोमवार को उसने जान दे दी। छाया ने बताया कि दादी के नाम राशनकार्ड है और उसमें आठ में से पांच लोगों के नाम ही दर्ज हैं। शेष तीन लोगों के नाम दर्ज कराने के लिए मां सोमवार को एटा शहर गई थी। शाम को लौटते समय खेत में लगाने के लिए कीटनाशक दवा लेकर आई थी। हम लोगों को क्या पता था कि मां स्वयं खाने के लिए दवा लाई है।

दवा खाने के बाद मां ने मुझे बुलाया और कहा कि बेटी तुम सबसे बड़ी और समझदार हो, मैं तो जा रही हूं, अब तुम अपने साथ ही इन सबका ख्याल रखना और परिवार संभालना। वहीं सुमन की विधवा पेंशन भी हाल ही में बनी थी, जिसके सिर्फ 3000 रुपये ही पहली किस्त के रूप में आए थे।

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