कानपुर। वित्तीय भागीदारी में फंसे मेट्रो प्रोजेक्ट के धरातल पर आने की आस जगी है। वित्त मंत्रालय से सैद्धान्तिक सहमति मिलने के बाद अब उम्मीद है कि जल्द ही प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट भी इसे स्वीकृति दे देगी। इसी के साथ यह तय हो जाएगा कि ये प्रोजेक्ट प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप के माध्यम से धरातल पर उतरेगा या फिर केंद्र और राज्य सरकार द्वारा बजट दिया जाएगा।
चार अक्टूबर 2016 को तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मेट्रो प्रोजेक्ट की आधारशिला रखी थी लेकिन आज तक यह तय नहीं हो सका कि बजट कहां से आएगा। भाजपा सरकार बनी तो प्रोजेक्ट को पीपीपी मॉडल पर बनाने का निर्णय लिया गया। डीपीआर को संशोधित कराया गया। प्रोजेक्ट को लाभ में लाने के लिए स्टेशनों पर व्यावसायिक गतिविधियां बढ़ाने का फैसला लिया गया। आइआइटी से मोतीझील तक नौ किमी तक मेट्रो रेल के संचालन कराने के लिए 734 करोड़ रुपये का टेंडर भी किया गया था पर पीपीपी मॉडल को मेट्रो रेल के सलाहकार श्रीधरन ने खारिज कर दिया।
वित्तीय भागीदारी तय न होना मुसीबत
जब इसकी आधारशिला रखी गई थी तब कहा गया था कि केंद्र और राज्य सरकार मिलकर प्रोजेक्ट के लिए धन देंगे। हालांकि यह मॉडल खारिज हो चुका है ऐसे में फिर तय होगा कि यह प्रोजेक्ट के लिए धन कहां से आएगा।
प्रोजेक्ट की स्थिति
2015 में 13721 करोड़ रुपये की प्रोजेक्ट कास्ट आंकी गई
2018 में 18,342 करोड़ रुपये की लागत प्रस्तावित की गई
34 किलोमीटर तक मेट्रो का संचालन होना है
2024 तक दो रूटों पर काम पूरा करने का लक्ष्य
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ढाई साल में मेट्रो यार्ड भी नहीं बना
ढाई साल से मेट्रो प्रोजेक्ट में काम के नाम पर पालीटेक्निक में 30 करोड़ रुपये का यार्ड बन रहा है जो अभी तक चालीस फीसद तक नहीं बन पाया है।
इस काम की लागत- 734 करोड़
टेंडर फार्म पड़ने थे – 30 मार्च
बढ़ी तिथि- 25 अप्रैल