नई दिल्ली। इन दिनों लघु और मध्यम समाचार अखबारों की जीएसटी ने कमर तोड़ रखी है। जब से सरकार ने न्यूज़ प्रिंट पर 5 प्रतिशत का अतिरिक्त कर लगाया तब से तबाही की कगार पर पहुंच चुके हैं लघु एवं मध्यम समाचार उद्योग। जिन अखबारों का सर्क्युलेशन 25 से 30 हजार के बीच है उनका समाचार उद्योग में बने रहना मुश्किल हो गया है। जीएसटी आने से पहले अखबारी कागज जिसे न्यूज़ प्रिंट के नाम से जाना जाता है, उस पर कोई कर नहीं लगता था। तब राज्यों और केंद्र सरकार से मिलने वाले सलाना तकरीबन 4-8 लाख रूपए का विज्ञापन समाचार प्रकाशकों के लिए किसी आशीर्वाद से कम नहीं होता था। इस बीच पिछले दो साल से राज्यों और केंद्र सरकार से मिलने वाले विज्ञापनों में सरकार द्वारा इदातन कटौती किए जाने के कारण मिलने विज्ञापनों की आमदनी सिमट कर तकरीबन 5 लाख हो गयी है।
कई अखबारों को सरकारी विज्ञापन ईंद का चांद हो चुका है। जिसकी वहज से प्रकाशकों को अखबार निकालने में भारी दिक्कत हो रही है। कई अखबार बंद होने के कगार पर पहुंच चुके हैं। अब सरकार ने ऊपर से जीएसटी थोप दिया है। जिसकी वहज से लघु और मध्यम अखबारों जिन्हें सरकारी विज्ञापन तो मिल नहीं रहा है ऊपर से उन्हें सालाना तकरीबन 11 लाख तक का कर जीएसटी के रूप में सरकार को देना पड़ रहा है। सरकारी मिलने वाले विज्ञापनों में 5 लाख की भारी कटौती और ऊपर से 11 लाख की जीएसटी की वसूली वजह से जो आंक़े बताते हैं उसके अनुसार देश भर में लगभग ढाई हजार से ज्यादा अखबार बंद हो चुके हैं। हालत यहीं तक खराब नहीं है। एक जानकारी के अनुसार 4-5 हजार लघु और मध्यम अखबार के प्रकाशक जीएसटी की वजह से अपने अखबार बंद करने की तैयारी में हैं। जबकि टीवी और डिजीटल युग के इस दौर में भी देश के जिलों से निकलने वाले अखबार गांवों में पढ़े जाते हैं। सरकार के इस फैसले की वजह से अब बंद होने की कगार पर हैं।
लघु और मध्यम अखबारों के प्रकाशक सरकार से अब भी उम्मीदें लगाए बैठ हैं कि न्यूज़ प्रिंट पर लगे 5 प्रतिशत की जीएसटी हर हालत में हटाए जिससे इस उद्योग से जुड़े लोगों का उनका रोजगार छिनने से बच सके। प्रकाशक सरकार से उनके हित में फैसले करने की उम्मीद में बैठ हुए हैं। हम बता दें कि पिछले दिनों इस मुद्दे को लेकर मीडिया समूह के कुछ प्रतिनिधियों ने केंद्रीय गृहमंत्री से मिलकर न्यूज़ प्रिंट पर से 5 प्रतिशत की जीएसटी खत्म करने के लिए हस्ताक्षेप करने की मांग की थी। राजनाथ सिंह ने इस मुद्दे पर सकारात्मक जवाब मीडिया प्रतिनिधियों को दिया था। लेकिन अभी तक कुछ हुआ नहीं है। राजनाथ के साथ मीडिया कर्मियों की हुई मुलाकात सिर्फ औपचारिक ही साबित हुई है। हम बता दें कि न्यूंज प्रिंट पर 5 प्रतिशत की जीएसटी लगाए जाने से लघु मध्यम वर्ग के मीडिया उद्योग समूहों को अख़बार निकालना काफी मंहगा पड़ रहा है।
पहले ज्यादातर न्यूज प्रिंट के कागज चीन से आयात होते थे। अब चीन से आयात होने वाले न्यूज़ प्रिंट पर लगाम लग चुका है। देश में जीएसटी लागू होने के बाद न्यूज़प्रिंट की कीमत 38 रूपए प्रतिकिलो की जगह अब लगभग 58 रूपए प्रतिकिलो हो चुका है। न्यूज प्रिंट पर जबसे जीएसटी लगा है तब से लघु और मध्यम मीडिया उद्योग जगत की कमर टूट चुकी है। जबकि ज्यादा नहीं कुछ समय पहले सोशल मीडिया पर एक ख़बर वायरल हुई थी। जिसमें कहा गया था कि केंद्र सरकार ने न्यूज़ प्रिंट पर से 5 प्रतिशत जीएसटी हटा ली थी। इस ख़बर के आने के बाद से समाचार मालिकों में आशा की एक किरण दौडी थी। लेकिन सरकार की तरफ से वायरल हुए इस प्रपत्र पर कोई व्यवहारिक कार्रवाई नहीं की गयी, न ही कहा गया कि वायरल हो चुका यह पत्र झूठा था। जबकि जो प्रपत्र वायरल हुआ था और दावा किया गया था कि यह पत्र प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा जारी किया गया है उसका नंबर PMOPG/D/2017/0524256 था।