निश्चित तौर से पाॅलीथिन प्राकृतिक और स्वास्थ्य के लिए अभिशाप बन चुका है। लेकिन इसके विपरीति यही पाॅलीथिन आम जीवन का हिस्सा भी बन चुका है। दूसरी तरफ अपनी जीवन की रक्षा और दोपहिया सड़क दुघर्टना में होने वाली मौतों का मुख्य कारण सवार एवं सहसवार का हेल्मेट न लगाना मुख्य कारण बनकर सामने उभर है। अब ऐसे में योगी सरकार के इन दोनों निर्णयों पर ऊगली तो कतई नही उठाई जा सकती। लेकिन इन दोनों ही साहसिक निर्णयों के बीच इस बात पर भी चर्चा होनी चाहिए कि क्या केवल पाॅलीथिन प्रतिबंध से सबकुछ सम्भव हो पाएगा। यानि गुड़ खाओं और गुलगुल से परहेज करों जैसी स्थिति सामने नही आ रही है। इससे पहले भी पाॅलीथिन प्रतिबंध लगाया जा चुका है और उसका परिणाम चंद माहों के बाद सामने आ चुका है। ठीक ऐसा ही मामला हेल्मेट को लेकर सामने आ रहा है। इससे पूर्व भी सरकारें इस तरह के निर्णय ले चुकी है लेकिन इसका अनुपालन कराने वालों को ही देख ले अनुपालन कराने वाले 60 प्रतिशत पुलिस आपकों हेल्मेट विहिन मिलेगे। लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से उनक पास वर्दीधारी लाइसेंस है। नौकरशाही का दिमाग इतना तेज होता है कि वह बड़े बड़े मामलों को दबाने के लिए छोटों छोटों मामलों को इतना तूल दिला देती है कि लोग बड़े बड़े मामलों के बारे में सोचते ही नही और छोटों मामलों में उलझ कर रह जाते है। लोगों को याद होगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सांसदों को एक एक गाॅव गोद लेने को कहा था। आज लम्बा अरसा बीत गया है। लेकिन उन गोद लिए गाॅवों की तस्वीर कितनी बदली ? ठीक यही हाल स्वच्छता अभियान का रहा। अभियान के चलते मंत्री,संत्री और आला अफसर फोटो खिचवाने के बाद धीरे धीरे इस अभियान से अलग होते चले गए। परिणाम यह कि आज विकास मंत्री उत्तर प्रदेश जिस जगह का दौरा करते हुए उन्हें गंदगी नजर आती है। लखनऊ की मेयर को लोग शिकायते मिल रही है। यही नही योगी सरकार के आने बाद मंत्रियों ने अपने अपने विभागों में छापेमारी की और उस दौरान उन्हें खामिया भी मिली अब न तो छापे मारी हो रही है ही खामियाॅ मिल रही है यानि व्यवस्था पुराने ढ़ंर्रे पर चल रही है। प्रदेश में पिछले पन्द्रह दिनों से चली आ रही लेखपालों की हड़ताल से लोगों का काम पिछड़ा गया काफी विकास के काम प्रभावित हुए अततः नौकरशाहों के इशारे में सरकार ने उनकी मांगों पर सहमति दी और हड़ताल समाप्त हो गई। अब प्रश्न उठता है कि क्या यही निर्णय हड़ताल केएक दो दिन के भीतर नही लेना चाहिए था आखिर इतनी लम्बी हड़ताल के लिए कौन जिम्मेदार था। प्रदेश में सौ से अधिक कर्मचारी संगठन काम कर रहे है। आए दिन हड़ताल, धरना प्रदर्शन, चेतावनी का दौर चल रहा है। काफी संगठन आने वाले समय में आन्दोलन की धमकी दिये पड़े है। सरकार ने कर्मचारियों का एचआरए बढ़ा दिया है। इसके बाद भी क्या कर्मचारी सरकार के विकास कार्यो में बराबर सहयोग शुरू कर देगें या फिर प्रदेश की जनता और सरकार को कर्मचारियों के विरोध प्रदर्शन का सामना करना पड़ेगा। इसी तरह विकास की बाॅत करे तो ंपिछली सरकार ने कराये कई काम ऐसे है जिन पर अरबों रूपये खर्च हो चुके है, अब उनमें दस से बीस प्रतिशत काम बांकी है लेकिन वे अब भी लम्बित है यानि अरबों खर्च होने बाद भी वह जनता के काम के योग्य नही हो पाए है। राजधानी के ही चार प्रोजेक्ट की बाॅत करे तो शहर की कई बड़ी परियोजनाएं बजट के अभाव में बदहाल हैं। गोमती नदी के किनारों को संवारने के लिए जो काम और प्रयास हुए थे, अब वे भी फीके पड़ गये हैं। करीब 2000 करोड़ रुपये विकास तथा सुन्दरीकरण के कामों में लगाए गए लेकिन अब दो सौ करोड़ रुपये के लिए ये सभी आधे-अधूरे पड़े हैं। जेपी इंटरनेशनल सेंटर का 90ः से ज्यादा काम पूरा हो चुका है। 150 करोड़ रुपये मिल जाएं तो जेपी सेन्टर का उपयोग शुरू हो जाएगा। इसी तरह हुसैनाबाद क्षेत्र के सुन्दरीकरण तथा जनेश्वर मिश्र पार्क के पास बंधे पर सड़क बनाने की परियोजना भी बजट के अभाव में फंसी हुई है।गोमती नगर में बने जेपी इंटरनेशनल सेंटर पर अब तक शासन का 716 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। इसकी फिनिशिंग, एयर कंडीशनिंग सिस्टम, लाइटिंग, लिफ्ट, एस्केलेटर तथा फायर फाइटिंग सहित कुछ और काम बचे हुए हैं। इस काम को पूरा करने के लिए पिछले साल से ही 150 करोड़ रुपये की मांग की जा रही है। निर्माण में लगी एजेन्सी का कहना है कि अगर पैसा मिल जाए तो तीन महीने के भीतर जेपी सेन्टर का काम पूरा हो जाएगा। काम पूरा न होने से इस बिल्डिंग का कोई इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है।.जनेश्वर मिश्र पार्क के पास की सड़क डेढ़ साल से अधूरी पड़ी है। शहीद पथ से गोमती नदी के किनारे जनेश्वर मिश्र पार्क होते हुए गोमती नगर की तरफ जाने के लिए बनाई जा रही सड़क का काम करीब डेढ़ साल से बंद है। इसके लिए भी करीब 40 करोड़ रुपये की जरूरत है। सड़क का काम एक साल से बंद पड़ा है। जो सड़क बनी थी वह भी बारिश में बह जा रही है। इसी तरह किसानों के बारे में तमाम दावें करने के बाद सिंचाई विभाग ने योगी सरकार के कार्यकाल में कितना काम किया वह उगलियों पर गिना जा सकता है। लोक निर्माण विभाग सड़कों को कितना गड्डा मुक्त करा पाई यह भी प्रदेश की जनता से छूपा नही है। ऐसे में योगी सरकार को इस बाॅत को ध्यान में रखना होगा कि हेल्मेट और पाॅलीथिन अभियान में उसे पर्याप्त पुलिस और अन्य अधिकारियों की जरूरत पड़ रही है। एक तरफ जहाॅ पुलिस चालान पेट्रोल पम्पों की रखवाली में जुटी है वही दूसरी तरफ यातायात व्यवस्था और कानून व्यवस्था प्रभावित हो रही है। पाॅलीथिन अभियान में जुटे आला अफसर अन्य काम छोड़कर पाॅलीथिन अभियान में जुट गए है। यही नही पाॅलीथिन प्रतिबंध से नाराज व्यापारी अन्य प्लास्टिक और प्लास्टिक पर प्रतिबंध की मांग कर रही है। उत्तर प्रदेश प्लास्टिक ट्रेड वेलफेयर एसोसिएशन के पदाधिकारी मंगलवार को जिलाधिकारी आवास पहुंचे और अपनी मांग रखी। बुधवार को एसोसिएशन, मंडलायुक्त और जिलाधिकारी से मिलकर एक ज्ञापन सौंपेगा। एसोसिएशन के अध्यक्ष रवि जैन ने बताया कि पॉलीथिन के साथ-साथ प्लास्टिक क्राकरी कप, गिलास, प्लेट, चम्मच और थाली पर प्रतिबंध लगाया जाए। प्लास्टिक रैपर, चिप्स, पान मसाला, दूध की थैलियां, बिस्कुट पैकिंग, चाय, डिटर्जेट और खानपान की सामग्री की पैकिंग से जुड़े तमाम उत्पादों को भी रोका जाए। इन्हें रीसाइकिल किए जाने में दिक्कत आती है। बावजूद इसके इनका खुलेआम उपयोग किया जा रहा है। लिहाजा इन्हें भी बंद किया जाए। यानि एक बड़ा प्रश्न सरकार के सामने रखा है अब सरकार की मर्जी वह जबाब दे या न दे। इसी तरह हेल्मेट योजना मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों और बनारस समेत यूपी के दूसरे जिलों में भी यह व्यवस्था कई बार लागू की जा चुकी है। लखनऊ में भी यह अभियान कई चरणों में चलाया जा चुका है। सुबह दस बजे से शाम छह बजे तक चलने वाले इस अभियान की सफलता को लेकर पुलिस आशावान भी है। कुछ पेट्रोल पंपों पर सीसीटीवी से नजर भी रखी जा रही है कि पुलिस और पेट्रोलपंप कर्मी अपनी ड्यूटी ईमानदारी से निभा रहे हैं कि नहीं। सवाल यहां यह उठता है कि बार-बार चलाया जाने वाला यह अभियान अपने मूल उद्देश्य को हासिल करने में सफल क्यों नहीं हो पा रहा। .निश्चित तौर से सरकार की सोच बिलकुल सही है,उसका नजरिया बहुत साफ है। लेकिन इसके बावजूद सरकार को यह जरूर सोचना और समझना पड़ेगा इसके चलते उसके अन्य विकास कार्य, कानून व्यवस्था तो प्रभावित नही हो रही है।