नई दिल्ली। सरकार ने साफ कर दिया है कि न्यूज़प्रिंट पर लगने वाले 5 प्रतिशत जीएसटी को फिलहाल वापस लेने का कोई इरादा नहीं है। जी हां 21 जुलाई को दिल्ली में होने वाली जीएसटी परिषद की बैठक में कोई ऐसा प्रस्ताव नहीं है जिसमें न्यूज़ प्रिंट पर लग रहे 5 प्रतिशत की जीएसटी को हटाया जाए। जबकि लघु और मध्यम समाचारों के प्रकाशक लंबे समय से न्यूज़ प्रिंट पर से जीएसटी को हटाने की मांग करते आ रहे हैं।
कई बार इन समाचार पत्रों के प्रकाशक नेताओं से मिले लेकिन नेताओं ने सिर्फ प्रकाशकों को लॉलीपॉप देने के अलावा और कुछ नहीं किया। यानि जीएसटी की मार को बुरी तरह से झेल रहे इन समाचार पत्रों के प्रकाशकों को नेताओं का आश्वासन महज एक जुमलेबाजी के अलावा और कुछ नहीं रहा। हम बता दें समाचार प्रकाशकों के ऊपर थोपे गए न्यूज़ प्रिंट पर 5 प्रतिशत की जीएसटी के खिलाफ जीएनएस समाचार एजेंसी लंबे समय से मुखर होकर आवाज उठा रहा है।
यही नहीं जीएसटी की वजह से देश में प्रकाशित होने वाले विभिन्न भाषाओं के राष्ट्रीय और क्षेत्रीय भाषाओं के तकरीबन साढ़े नौ हजार अखबार बंद होने की कगार पर पहुंच चुके हैं। एक जानकारी के मुताबिक प्रकाशित होने वाले लगभग साढ़े नौ हजार वाले इन अखबारों की लगभग देश भर में रोजाना 27 करोड़ प्रतियां प्रसारित होती हैं।
आंकडों पर नजर डाले तो इन अखबारों पर देश में लगभग ढ़ाई लाख से ज्यादा परिवारों की रोजी रोटी चलती है। इनमें से ज्यादातर परिवार मध्यम और निम्न वर्ग के परिवार आते हैं। अब सरकार द्वारा अखबार छापने के कागज के न्यूज़ प्रिंट पर 5 प्रतिशत का जीएसटी लगाने से सरकार को लगभग सलाना करीब 755 करोड़ रूपए की आमदानी होती है। लेकिन इन अखबारों की रोजी रोटी खत्म होने की कगार पर पहुंच चुकी है।
जब से सरकार ने न्यूज़ प्रिंट पर 5 प्रतिशत का अतिरिक्त कर लगाया तब से तबाही की कगार पर पहुंच चुके हैं लघु एवं मध्यम समाचार उद्योग। जिन अखबारों का सर्क्युलेशन 25 से 30 हजार के बीच है उनका समाचार उद्योग में बने रहना अब मुश्किल हो गया है। जीएसटी आने से पहले अखबारी कागज जिसे न्यूज़ प्रिंट के नाम से जाना जाता है, उस पर कोई कर नहीं लगता था। तब राज्यों और केंद्र सरकार से मिलने वाले सलाना तकरीबन 4-8 लाख रूपए का विज्ञापन समाचार प्रकाशकों के लिए किसी आशीर्वाद से कम नहीं होता था।
इस बीच पिछले दो साल से राज्यों और केंद्र सरकार से मिलने वाले विज्ञापनों में सरकार द्वारा इदातन कटौती किए जाने के कारण मिलने विज्ञापनों की आमदनी सिमट कर तकरीबन 5 लाख हो गयी है। कई अखबारों को सरकारी विज्ञापन ईंद का चांद हो चुका है। जिसकी वहज से प्रकाशकों को अखबार निकालने में भारी दिक्कत हो रही है। कई अखबार बंद होने के कगार पर पहुंच चुके हैं। अब सरकार ने ऊपर से जीएसटी थोप दिया है। जिसकी वहज से लघु और मध्यम अखबारों जिन्हें सरकारी विज्ञापन तो मिल नहीं रहा है ऊपर से उन्हें सालाना तकरीबन 11 लाख तक का कर जीएसटी के रूप में सरकार को अलग से देना पड़ रहा है।
लेकिन इसी जीएसटी की वजह से देश के करीब 6 से 7 हजार अखबार बंद होने की कगार पर है। उसी वजह से बेरोजगार होने वाले 1.5 लाख परिवारों का क्या होगा…? न्यूज़ प्रिंट पर जीएसटी से सरकार को मिलने वाले 755 करोड़ रूपए के सामने देश के गरीब और निम्न मध्यम वर्ग के डेढ़ लाख परिवार 18 सौ करोड़ रूपए की अपनी आग गवां कर बेरोजगारी की कगार पर खड़े हो चुके हैं। सवाल है कि सरकार इनके बारे में क्यों मूकदर्शक बनी हुई है।