गुजरे वक्त और बीते लम्हों को फिर जीने की कोशिश हैं मेरी यह कविताएं: रेनू अंशुल

न्यूज वाणी ब्यूरो
आगरा। मौलिकता कविता का सर्वप्रथम धर्म है। नया कुछ लाने के लिए तपस्या करनी पड़ती है। इन दिनों जितना मैंने सुना, उनमें रेनू अंशुल की कविताओं में मौलिक तत्व निहित हैं। यह कविताएं नए प्रयास के प्रयोगों का परिचय हैं। मशहूर फिल्मी गीतकार संतोष आनंद ने यह विचार आगरा की महिला साहित्यकार रेनू अंशुल की तीसरी पुस्तक और पहले काव्य संग्रह लम्हों के दामन में की भूमिका में व्यक्त किए हैं। पुस्तक हाल ही में आई है और इसे देश के बेस्ट सेलर की सूची में अग्रणी प्रकाशक हिंद युग्म ने प्रकाशित किया है। इसका शीघ्र ही विमोचन किया जाएगा। इस पुस्तक और पुस्तक में दर्ज कविताओं को जहां एक ओर देश भर के नए-पुराने पाठकों की व्यापक सराहना मिल रही है, वहीं इन कविताओं को पढ़कर मशहूर गीतकार संतोष आनंद ने भी रेनू अंशुल को कविता के भावी वंश की हकदार बनने का आशीर्वाद दिया है।
54 कविताएं हैं दर्ज-
108 पृष्ठों की पुस्तक में बचपन के झरोखे से, यादें लड़कपन की, चलो कुछ बड़े हो जाएं और मिजाज बुढ़ापे के सहित 4 भागों में विभक्त कुल 54 कविताएं हैं। रेनू अंशुल की बड़ी बेटी अजिता अग्रवाल की खूबसूरत पेंटिंग से सजा पुस्तक का आवरण आकर्षक बन पड़ा है। इन कविताओं के बारे में रेनू अंशुल लिखती हैं कि मेरी यह कविताएं गुजरे वक्त और बीते लम्हों को फिर जीने की कोशिश हैं। जिंदगी के लम्हों को लफ्जों में पिरोने के लिए बार-बार प्रेरित करने वाली छोटी बेटी अनन्या को रेनू जी ने यह काव्य संग्रह समर्पित किया है।
आ चुके दो कहानी संग्रह-
गौरतलब है कि इस संग्रह से पूर्व रेनू अंशुल के दो कहानी संग्रह उसके सपनों के रंग और कहना है कुछ शीर्षक से प्रकाशित और प्रशंसित हो चुके हैं। देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और दूरदर्शन व ऑल इंडिया रेडियो पर आप की कहानी, कविता और नाटक इत्यादि अनवरत प्रकाशित और प्रसारित होते रहते हैं। रेनू अंशुल दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड में उच्च अधिकारी अंशुल अग्रवाल जी की धर्मपत्नी हैं।

Leave A Reply

Your email address will not be published.