आमतौर पर नौ महीने पूरे होने के बाद बच्चे का जन्म होता है, लेकिन कई मामलों में बच्चों का जन्म समय से पूर्व ही हो जाता है। ऐसे बच्चों को बचा पाना बेहद मुश्किल होता है। हाल ही में कुछ काबिल डॉक्टरों की वजह से हैदराबाद में एक मां ने गर्भावस्था के पांचवें महीने में ही अपनी बच्ची को जन्म दिया है। 375 ग्राम की बच्ची और उसकी मां दोनों स्वस्थ्य हैं। अस्पताल ने इसकी जानकारी दी। हैदराबाद के रेनबो अस्पताल ने हाल ही में दावा किया कि उनके यहां एक दंपति ने दक्षिण पूर्व एशिया की सबसे छोटी बच्ची को जन्म दिया है। अस्पताल में जिस वक्त बच्ची का जन्म हुआ, तब उसका वजन मात्र 375 ग्राम था। बच्ची का जन्म 25वें हफ्ते में हुआ। जन्म के समय उसकी लंबाई सिर्फ 20 सेंटीमीटर थी, जबकि एक नवजात बच्चे की औसत लंबाई 45 से 50 सेंटीमीटर तक होती है। यानी कि बच्ची इतनी छोटी कि वह किसी इंसान की हथेली में समा जाए। हैदराबाद में जन्मी इस बच्ची को नाम चेरी है। जीवित रहने की संभावनाएं कम अस्पताल ने चेरी के माता-पिता के साथ मीडिया को बताया कि अमूमन बच्चे गर्भ में आने के बाद 36वें से 40वें हफ्ते में पैदा होते हैं। इससे पहले पैदा होने वाले बच्चों को प्री-मेच्योर बेबी कहा जाता है। समय से पूर्व जन्म लेने वाले बच्चों के अंग पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं। बच्ची का जन्म उम्मीद से चार महीने पहले ही हो गया था। ऐसे बच्चों के जीवित रहने की संभावना 0.5 फीसदी यानी कि न के बराबर होती है। ऐसे बच्चों को कई तरह के इंफेक्शन का खतरा रहता है। नतीजतन ऐसे बच्चों के शरीर के अंग काम करना बंद कर देते हैं और उनकी मौत हो जाती है। हालांकि, डॉक्टर की टीम ने असंभव को संभव कर दिखाया। चेरी और उसकी मां स्वस्थ्य हैं। अब बच्ची का वजन 2.5 किलोग्राम हो गया है। कम वजन के बच्चे – 15 जून 2017 को राजस्थान में उदयपुर के जीवांता हॉस्पिटल में 400 ग्राम की बच्ची सीता का जन्म हुआ था, जिसकी जन्म के समय लंबाई 22 सेंटीमीटर थी। सात महीने तक अस्पताल में इलाज के बाद वह स्वस्थ्य हुई थी। डॉक्टरों को दावा था कि सीता एशिया की सबसे छोटी और सबसे कम वजन वाली बच्ची है। – वर्ष 2012 में पंजाब के मोहाली में एक मां ने 450 ग्राम वजन के शिशु जन्म दिया था, जिसे उपचार करके बचाया गया था। – उत्तराखंड के काशीपुर में रामनगर रोड स्थित डॉ. वीना जोशी नर्सिंग होम में जसपुर निवासी कुलदीप सिंह की पत्नी वंदना ने 600 ग्राम के बच्चे को जन्म दिया था। औसत नवजात बच्चे जन्म के समय – 2.5 से 3.5 किग्रा होता है औसत नवजात बच्चे का जन्म – 45 से 50 सेंटीमीटर लंबाई होती है नवजात बच्चे की – 36वें से 40वें हफ्ते में पैदा होते हैं अमूमन बच्चे चेरी के जन्म के समय – 375 ग्राम था चेरी का वजन जन्म के समय -20 सेंटीमीटर लंबाई थी चेरी की जन्म के समय -25वें हफ्ते में हुआ बच्ची का जन्म – चार महीने पहले ही हो गया बच्ची का जन्म 2.5 किलोग्राम हो गया है अब चेरी का वजन
आयुष विभाग में पहली बार नर्सों के लिए सेवा नियमावली तैयार हो गई है। इसमें नियुक्ति, सेवा शर्तों व प्रमोशन आदि में सहूलियतें मिल सकेंगी। पहली बार इस तरह की व्यवस्था आयुष विभाग में की गई है। प्रस्ताव शासन में स्वीकृति के लिए भेजा गया है। इसके लागू होने पर निजी संस्थानों से नर्सिंग कोर्स करने वालों को भी आयुर्वेदिक व यूनानी कॉलेजों में नौकरी का मौका मिल सकेगा।
आयुष विभाग के सचिव मुकेश मेश्राम ने बताया कि यूनानी एवं आयुर्वेदिक स्टाफ नर्सों की नियुक्ति के लिए कोई नियमावली नहीं बनी थी। राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय लखनऊ में एकमात्र ट्रेनिंग सेंटर है। अभी तक राजकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालयों से ही कोर्स करने वाली नर्सों को ही सेवा में आने का मौका मिल रहा था। अब इस नियमावली के बनने के बाद निजी मान्यता प्राप्त संस्थानों से डिप्लोमा प्राप्त नर्सों को भी मौका मिल सकेगा। इससे आयुर्वेदिक एवं यूनानी कालेज में नियुक्ति के लिए अभ्यर्थी योग्य हो सकेंगे। साथ में नर्सों का प्रमोशन भी सात वर्षों में हो सकेगा।
सचिव ने बताया कि आयुर्वेदिक कालेज में 479 नर्स और 94 सिस्टर के पद हैं। वहीं यूनानी कालेज में 37 स्टाफ नर्स, तीन सिस्टर व एक सहायक मैट्रन का पद है। जिसमें से कई सिस्टर हर वर्ष रिटायर हो जाती हैं जिससे वे पद रिक्त हो जाते हैं। इन्हीं पदों को भरने के लिए लोक सेवा आयोग से नियुक्तियां कराई जाएंगी।
आयुर्वेदिक -यूनानी शिक्षक सेवा नियमावली में संशोधन
उन्होंने बताया कि नर्सों की नियमावली के साथ ही उत्तर प्रदेश के आयुर्वेदिक एवं यूनानी अध्यापक सेवा नियमावली में भी संशोधन कर नई नियमावली तैयार की जा रही है। आयुर्वेदिक अध्यापकों की भी नयी नियमावली जल्द तैयार हो जाएगी। इस नई नियमावली में बड़ा बदलाव करते हुए शिक्षकों को वैयक्तिक प्रोन्नति का प्रावधान किया जा रहा है। इससे आने वाले समय में आयुर्वेदिक एवं यूनानी कालेजों में रीडर एवं प्रोफेसर की कमी दूर हो सकेगी। वहीं केंद्रीय आयुष मंत्रालय के निर्धारित मानकों को भी पूरा किया जा सकेगा। इससे आयुष कालेजों की शैक्षणिक सत्र की मान्यता भी प्रभावित नहीं होगी।